प्राचीन पांडुलिपियों का संरक्षण भारतीय ज्ञान परंपरा का पोषण

रायपुर। वैभव प्रकाशन स्थित संगोष्ठी कक्ष में भोपाल के दुष्यंत कुमार स्मारक पांडुलिपि संग्रहालय के अध्यक्ष रामराव बावनकर ने कहा कि प्राचीन पांडुलिपियों का संरक्षण भारतीय ज्ञान परंपरा के पोषण के लिए आवश्यक है। संगोष्ठी में उन्हें छत्तीसगढ़ के कवि नारायणलाल परमार की दो पांडुलिपि संरक्षण हेतु उनकी परिवार के सदस्यों ने प्रदान की। समारोह की अध्यक्षता वरिष्ठ इतिहासविद डॉ रमेंद्रनाथ मिश्र ने की। संगोष्ठी का संचालन करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ की सौ से अधिक पांडुलिपियों का संग्रह किया गया है और शीघ्र ही इनका पुनः प्रकाशन किया जा रहा है। इस खड़ी में बलदेव प्रसाद मिश्र की प्राचीन कृति छत्तीसगढ़ परिचय का आज लोकार्पण हो रहा है। श्री वामनकर ने विस्तार से बताया कि भोपाल में दस से अधिक संग्रहालय काम कर रहे हैं। दुष्यंत कुमार स्मारक पांडुलिपि संग्रहालय में एक हजार से अधिक दुर्लभ पांडुलिपियां हैं। डॉ रमेंद्रनाथ मिश्र ने कहा कि छत्तीसगढ़ के रियासतों में आज भी संपन्न ग्रंथालय हैं जिनमें रायगढ़, सारंगगढ, खैरागढ़, जशपुर और बस्तर शामिल हैं। डॉ सुशील त्रिवेदी ने कहा कि विरासत और इतिहास को जानने के लिए प्राचीन पुस्तकें महत्वपूर्ण हैं। गिरीश पंकज ने साहित्य की पांडुलिपियों की महत्ता बताते हुए छत्तीसगढ़ के पच्चीस वर्ष में इस दिशा में कुछ भी काम नहीं होने पर चिंता जताई। गोष्ठी में अशोक तिवारी, स्मिता अखिलेश, सुरेंद्र रावल, राजेन्द्र ओझा, डॉ मृणालिका ओझा, माणिक विश्वकर्मा, निमिष परमार, शुभेंद्र आदि उपस्थित थे।