सत्ता परिवर्तन से SECL की बढ़ी उम्मीदें, 13 खदानों के विस्तार की राह होगी आसान

CG News: प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद कोल इंडिया की सहयोगी कंपनी एसईसीएल की उम्मीदें बढ़ र्गई है। खास कर खदान विस्तार को लेकर। कंपनी को उम्मीद है कि केन्द्र और सरकार में एक ही पार्टी की सरकार होने से खदान के लिए जमीन अधिग्रहण और विस्तार की राह आसान होगी। भू- विस्थापितों के विरोध से निपटने में मुश्किल नहीं होगी।

कोरबा, गेवरा, कुसमुंडा और दीपका सहित एसईसीएल की 13 परियोजनाएं विभिन्न कारणों से पीछे चल रही हैं। पर्यावरणी नहीं मिलना भी बड़ा कारण है। मेगा प्रोजेक्ट दीपका के पास कोयला खनन के लिए जमीन नहीं है। कंपनी ने मलगांव में जितनी जमीन का अधिग्रहण किया है, ग्रामीणों के विरोध से उसपर कोयला खनन नहीं कर सक रही है। विरोध इतना अधिक है कि प्रभावित क्षेत्रों में मशीनों को आगे बढ़ाना प्रबंधन के लिए मुश्किल हो गया है। स्थिति यह है कि रोजाना औसत 75 हजार टन ही कोयला खनन हो रहा है, जो पहले रोजाना औसत एक लाख टन हआ करता था।

दीपका में स्थिति इतनी गंभीर है कि प्रबंधन मान रहा है कि दो तीन माह में खदान विस्तार के लिए मलगांव की जमीन नहीं मिली तो मशीनों को दूसरे स्थान पर ले जाने की नौबत तक आ सकती है। कुछ ऐसा ही हाल कुसमुंडा का है। नौकरी, पुनर्वास और रोजगार को लेकर पेंच फंसा हुआ है। यहां से कोयला खनन में बाधा आ रही है। आए दिन होने वाला आंदोलन भी कुसमुंडा प्रबंधन की परेशानी को बढ़ा रहा है। इसके अलावा पाली विकासखंड के अंतर्गत स्थित करतली परियोजना लक्ष्य से पीछे चल रही है। इस खदान को शुरू करने के लिए केन्द्र और राज्य सरकार के बीच तालमेल का होना जरुरी है। रायगढ़ कोल फील्ड की बारौद खदान का विस्तार नहीं हो रहा है। चालू वित्तीय वर्ष में बारौद ने अपने उत्पादन लक्ष्य को प्राप्त कर लिया है। वित्तीय वर्ष खत्म होने में चार माह बचा है। लेकिन यहां अभी से खनन बंद हो गया है।