‌‌त्रिफला आईवास तथा स्फटिक आईवास कंजक्टिवाइटिस के बचाव एवं उपचार में उपयोगी ‌‍- वैध डॉ नागेंद्र

कोरबा, 02 अगस्त ।कंजंक्टिवाइटिस के प्रकोप से इस वक्त सभी परेशान हैं। इस विषय मे अंचल के सुप्रसिद्ध आयुर्वेद चिकित्सा विशेषज्ञ वैद्य डॉ.नागेन्द्र नारायण शर्मा ने बताया कि इससे घबराने की या डरने की जरूरत नही है, क्योंकि इस रोग के लक्षणों का, इससे बचाव एवं उपाय का विस्तार से वर्णन आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में वर्णित है। कंजंक्टिवाइटिस को आयुर्वेद मे कफाभिष्यंद के रूप मे बताया गया है। जिसमें आंखों में संक्रमण होकर आंखों में लालिमा तथा सूजन आती है। जिसमे हम कुछ जरूरी सावधानियों और आयुर्वेदिक उपायों को अपनाकर इससे न केवल बच सकते है, अपितु रोगग्रस्त होने पर शीघ्र ठीक भी हो सकते है। हमारी आंख में कंजंक्टिवा एक पारदर्शी झिल्ली होती है जो पलकों और आंख के सफेद हिस्से को ढकने का कार्य करती है। जब कंजंक्टिवा की छोटी रक्त वाहिकाओं में सूजन आ जाती है, तो उनका रंग बदलकर लाल अथवा गुलाबी हो जाता है। चूंकि आंख का रंग बदलकर गुलाबी हो जाता है, इस कारण से इस स्थिति को “पिंक आई” भी कहा जाता है। कफाभिष्यंद मुख्यतः आंखों मे होने वाला रोग है। जिसमें आंखों में लालिमा या गुलाबीपन, सूजन, खुजली, आंखों से आंसू तथा गाढ़े स्त्राव का होना, सुबह नींद से जागने पर आंखों को खोलने में मुश्किल होना, आंखों में चिपचिपापन एवं आँखों में कुछ कचरे जैसी चीज़ के होने का अहसास होना जिसके कारण आंखों में कसक का बने रहना जैसे लक्षण पाये जाते हैं। ये सभी लक्षण कंजंक्टिवाइटिस में भी देखने को मिलते हैँ जिसके कारण आयुर्वेद में इसका संबंध कफाभिष्यंद से माना गया है। जैसा की आयुर्वेद का प्रयोजन है की “स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणं, आतुरस्य विकार प्रशमनं च।”अर्थात स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना,एवं रोगी व्यक्ति के रोग को दूर करना। इसी सिद्धांत के अनुसार कुछ सामान्य उपायों जैसे पौष्टिक हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन, अनार, गाजर, अंगूर, हल्का सुपाच्य भोजन कर, आंखों में गुलाब जल डालकर तथा स्वच्छता के नियमों को अपनाकर इस रोग से ग्रसित होने से बचा जा सकता है। साथ ही इस रोग से ग्रसित व्यक्ती को कॉन्टैक्ट लेंस, चश्मा आदि व्यक्तिगत नेत्र देखभाल के उपकरण, तौलिया, चादर आदि वस्तुओं को दूसरे से साझा नहीं करना चाहिये। साथ ही मानसिक तनाव, चिंता, क्रोध आदि से बचना चाहिये तथा भारी भोजन एवं दिन में शयन नहीं करना चाहिये। इसके साथ सर्वांगासन, शीर्षासन, भुजंगासन, सूर्य नमस्कार योगासन तथा भस्त्रिका, कपालभाति, अनुलोम विलोम एवं भ्रामरी प्राणायाम आँखों की मांसपेशियों को मजबूती प्रदान कर ,तनाव और दबाव को दूर कर आंखों में रक्त संचार को बढ़ाकर इस रोग से बचाव एवं उपचार में सहायता करता है। इसके अलावा अपने नजदीकी आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह से सप्तामृत लौह, आईग्रीट, नयनमित्र, आमला रसायन, त्रिफला गुग्गुलु, आई ड्राॅप- दृष्टि, सौम्या, सुनयना, आप्थाकेअर, त्रिफला आईवास, स्फटिक आईवास, आदि आयुर्वेदिक औषधियों का प्रयोग कर इस कंजंक्टिवाइटिस यानि कफाभिष्यंद के प्रकोप से बचा जा सकता है।