मोदी-शाह के दौरे में ‘महाराज’ को तवज्जो से खलबली: ‘सरकार’ को कोई टेंशन नहीं, लेकिन प्रतिद्वंद्वियों की बांछें खिली

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मध्यप्रदेश16 मिनट पहलेलेखक: राजेश शर्मा
- हर शनिवार पढ़िए और सुनिए- ब्यूरोक्रेसी और राजनीति से जुड़े अनसुने किस्से
प्रधानमंत्री मोदी के महाकाल लोक का उद्घाटन करने के ठीक 5 दिन बाद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह एमपी के दौरे पर आए। दोनों के कार्यक्रम में एक बात कॉमन रही। वह है- ‘महाराज’। यानी सिंधिया को मिली तवज्जो। सिंधिया महाकाल मंदिर में मोदी के साथ थे, जबकि ग्वालियर में शाह सिंधिया के जयविलास पैलेस पहुंचे। शाह ने एक कार्यक्रम में कहा कि फिर से चुनाव आने वाले हैं। गलती मत करना। प्रधानमंत्री मोदी पर भरोसा करना और कमल पर बटन दबाना।
शाह के इस बयान के सियासी मायने निकाले जाने लगे। ऐसे में ‘सरकार’ को टेंशन होना स्वाभाविक है, लेकिन उन्हें फिलहाल खतरे की घंटी बजती दिखाई नहीं दे रही। वह इसलिए क्योंकि उन्होंने केंद्रीय नेतृत्व के सामने अपनी ताकत का लगातार अहसास कराया है। वे यह भी बताने में लगभग सफल रहे कि दिल्ली ही उनकी मार्गदर्शक है। फिर भी प्रतिद्वंद्वी गदगद हैं।
एक कहावत है- दो की लड़ाई में तीसरे का फायदा। ऐसा नेता प्रतिपक्ष के चयन में हो चुका है। जब कांग्रेस सत्ता में आई थी, तो नेता प्रतिपक्ष बनने में पंडितजी का नाम सबसे ऊपर था, लेकिन ‘सरकार’ ऐसा नहीं चाहते थे। ऐसे में लॉटरी दूसरे पंडितजी की खुल गई थी।
एक ‘कमल’ को साधा तो दूसरे ‘कमल’ ने निपटा दिया
नगरीय निकाय सेवा के एक अफसर के ट्रांसफर आदेश ‘सरकार’ के निर्देश मिलने के आधे घंटे बाद जारी हो गए। स्पीड इतनी.. मानो फाइल को पंख लग गए हों, जबकि किसी भी ट्रांसफर आदेश निकालने में जिन प्रक्रियाओं को पूरा करना पड़ता है, उसमें कम से कम एक दिन से कम समय तो लग ही नहीं सकता। अब आधे घंटे में हुआ यह आदेश राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारे में चर्चा का विषय बना हुआ है।
हुआ यह कि महाकौशल क्षेत्र के एक नगर निगम के कमिश्नर का तबादला कर उन्हें नगरीय विकास एवं प्रशासन विभाग के मुख्यालय में पदस्थ कर दिया। उन्हें अपने तबादले की भनक पहले ही लग गई थी। वे सीधे अपने कार्यक्षेत्र में रहने वाले बड़े कांग्रेसी नेता के दरबार में पहुंचे। अपनी बात रखी, तो नेताजी ने अफसर के सामने स्पीकर ऑन कर ‘सरकार’ के करीबी व भरोसेमंद एक मंत्री से बात की। उस मंत्री ने आश्वासन दिया कि ट्रांसफर नहीं होगा।
कमिश्नर की आंखों में चमक आ गई। वे इतना उत्साहित हो गए कि अगले दिन कांग्रेस नेता के हाथों एक योजना के हितग्राहियों को चेक बंटवा दिए। फिर क्या था, बीजेपी के स्थानीय नेताओं ने जिले के प्रभारी मंत्री से शिकायत कर दी। उन्होंने सीधे ‘सरकार’ को फोन कर कमिश्नर को तत्काल हटाने के लिए कहा। हुआ भी ऐसा ही। फाइल बाद में तैयार हुई, ट्रांसफर आदेश पहले जारी हुआ।
इस पर एक अफसर की टिप्पणी- एक ‘कमल’ को साधा तो दूसरे ‘कमल’ ने निपटा दिया। बता दें कि दूसरे ‘कमल’ एक मंत्री हैं। इधर, आपाधापी वाले इस आदेश की आड़ में चार उन अफसरों के ट्रांसफर आदेश निकल गए, जो कई दिनों से इंतजार में बैठे थे।
मंत्री के मंसूबे पर फिर गया पानी
सरकारी खरीदी से जुड़े एक विभाग के मंत्री के मंसूबे पर दो सीनियर अफसरों ने पानी फेर दिया है। दरअसल, मंत्रीजी चाहते हैं कि 50% खरीदी प्रदेश के ठेकेदारों से हो, जबकि अपर मुख्य सचिव ने 15% से ज्यादा पर असहमति जता दी। फाइल प्रशासनिक मुखिया तक गई। उन्होंने बीच का रास्ता निकालकर 25% खरीदी प्रदेश के ठेकेदारों के माध्यम से करने पर अपनी सहमति दी, लेकिन मंत्रीजी इससे संतुष्ट नहीं है।
मंत्रीजी अपने प्रस्ताव से कतई समझौता नहीं करना चाहते हैं। ऐसे में फाइल मुख्यमंत्री कार्यालय में भेज दी है। ‘सरकार’ भी मंत्रीजी के पक्ष में नहीं है। सुना है कि मंत्रीजी ने प्रदेश के एक बड़े ठेकेदार को 50% खरीदी का काम देने का आश्वासन पहले ही दे दिया था। यह भनक अफसरों को लग गई थी। अब यह ‘सरकार’ के कानों तक पहुंच गई हैं। बता दें कि मंत्रीजी निमाड़ क्षेत्र से आते हैं।
खड़गे अध्यक्ष कांग्रेस के बने, बांछें BJP नेताओं की खिली
आप सोचेंगे ऐसा क्यों? लेकिन यह बिल्कुल सच है। मालवा के कुछ बीजेपी नेताओं ने खड़गे के करीब पहुंचने की जुगाड़ लगाना शुरू कर दिया है। ये वे नेता हैं जो अपने आप को दक्षिण भारत के एक राज्य में संवैधानिक पद पर आसीन बीजेपी के एक नेता का खास होने का प्रचार करते हैं।
दरअसल, खड़गे के उस नेता से संबंध बेहतर है, लेकिन सवाल यह है कि खड़गे क्या मदद कर सकते हैं? सुना है कि मालवा के बीजेपी के ऐसे नेता खड़गे के करीब जाना चाहते हैं, जिन्हें यह डर है कि अगले विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का सामाना कर पड़ सकता है। लिहाजा वे चाहते हैं कि कांग्रेस कमजोर नेता को मैदान में उतार दे। उन्हें लगता है कि खड़गे से जान पहचान हो जाने से यह काम आसान हो जाएगा। सुना है कि एक विधायक दीपावली के बाद खड़गे को अध्यक्ष बनने की बधाई उनके बैंगलुरू स्थित घर पर जाकर देने जाने वाले हैं।
ACS ने उतारी कलेक्टरी की खुमारी
एक अपर मुख्य सचिव ने एक विभाग के अफसरों की मीटिंग बुलाई थी। इसमें विभाग के आयुक्त नहीं गए। उन्होंने अपने स्थान पर जूनियर को भेज दिया। इससे एसीएस नाराज हाे गए। उन्होंने जूनियर से पूछा- आयुक्त मीटिंग में क्यों नहीं आए? जवाब मिला- वे बिजी हैं। फिर क्या था, एसीएस का पारा चढ़ गया। उन्होंने कहा- इतनी महत्वपूर्ण बैठक में आपके सीनियर नहीं आए, उन्हें फोन लगाकर बुलाओ। वे थोडी देर में मंत्रालय पहुंच गए।
ACS ने उनसे पूछा- तुम्हारा नाम क्या है? अफसर ने नाम बताया तो उन्होंने कहा कि ऐसा कौन सा काम कर रहे थे कि मीटिंग में नहीं आए? खैर उन्होंने जो भी जवाब दिया, एसीएस शांत हो गए। सुना है कि ACS ने जीएडी को एक पत्र लिखकर इस अफसर की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा दिए हैं। इस पर एक अन्य अफसर की टिप्पणी- उन्हें कलेक्टरी की खुमारी थी, जिसे ACS ने उतार दी। बता दें कि यह वही अफसर है, जो अपने आप को संघ के करीब होने का ढिंढोरा पीटते हैं। यही वजह है कि ‘सरकार’ ने इन्हें फील्ड पोस्टिंग से हटा कर शिक्षा से जोड़ दिया है। अब आपको ACS के बारे में बता दें- वे जल्दी ही केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने वाले हैं।
और अंत में
दिल्ली से आएंगे नए प्रशासनिक मुखिया
मध्यप्रदेश में नया प्रशासनिक मुखिया दिल्ली से ही आएगा। दो साल पहले प्रतिनियुक्ति पर गए अफसर को ‘सरकार’ अब मुख्य सचिव बनाकर ला रही है। इस पद को पाने के लिए समान कद के अफसर हाथ-पैर मार रहे थे। एक अफसर तो नागपुर वाया दिल्ली घूमकर आ गए। एक अफसर पिछले एक साल से ‘सरकार’ के भरोसेमंद बनने की कवायद कर रहे थे। यह लगभग तय हो गया है कि ‘सरकार’ को दिल्ली वाले अफसर पर ही भरोसा है। एक साल बाद चुनाव है, ऐसे में केंद्रीय नेतृत्व भी मप्र में प्रशासनिक मुखिया का चयन करने में कोई रिस्क नहीं लेना चाहता। सुना है कि पिछले दिनों दिल्ली प्रवास के दौरान मुख्यमंत्री से इस अफसर की मुलाकात भी हो चुकी है। बता दें कि दिल्ली में पदस्थ रहते हुए इस अफसर ने केंद्र सरकार का भरोसा जीता है।
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उज्जैन दौरे पर जिस तरह ‘महाराज’ को तवज्जो मिली, उसने बीजेपी नेताओं की नींद उड़ा दी है। मोदी जब महाकाल मंदिर में पूजा करने गए, तो मुख्यमंत्री और राज्यपाल के अलावा ‘महाराज’ यानी सिंधिया भी उनके साथ गए, जबकि मोदी कैबिनेट में शामिल एमपी के नेता सभास्थल पर पहुंचे। ‘महाराज’ को मिले वेटेज से बढ़ीं BJP नेताओं की धड़कनें

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मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने पहली बार उज्जैन में कैबिनेट बैठक की। इसमें मुख्य कुर्सी पर भगवान महाकाल की तस्वीर रखी गई। सीएम और सभी मंत्री अगल-बगल बैठे। ‘सरकार’ की इस पहल की खूब चर्चा हुई, लेकिन बैठक से पहले एक वाकया ऐसा हुआ, जिसने थोड़ी देर के लिए पुलिस के होश उड़ा दिए। पुलिस अफसर के सामने धर्मसंकट खड़ा हो गया कि ‘सरकार’ को आगे जाने दें या ‘पंडितजी’ को, क्योंकि अपने ‘सरकार’ तो पंडित जी हैं। ‘राजा साहब’ के समर्थकों के टूटे सपने

सियासत में सब कुछ खुलकर नहीं कहा जाता है। इशारों में समझा दिया जाता और समझने वाले समझ जाते हैं। एमपी की राजनीति में पिछले दिनों ऐसा ही हुआ। जो दिख रहा था, हकीकत उससे कहीं अलग थी। पोषण आहार पर एजी (महालेखाकार) की रिपोर्ट लीक होना ‘सरकार’ पर अटैक था, लेकिन सियासत पर बारीक नजर रखने वाले अतीत की घटनाओं को जोड़कर वहां तक पहुंच गए, जहां इसकी स्क्रिप्ट तैयार की गई। ग्वालियर में बन रही ‘सरकार’ के ताले की डुप्लीकेट चाबी!

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‘जहां दम वहां हम’ नेताओं पर यह जुमला बिल्कुल फिट बैठता है। राजनीति की रवायत ही कुछ ऐसी है। बात MP की करें तो पिछले एक साल में जब-जब बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व की नजरें यहां पड़ी, नेताओं में खलबली मच गई। बदलाव की बयार चलने के कयास भर से आस्था डोलने लगी। इस बार भी जब ‘सरकार’ बदलने की हवा उड़ी। ‘सरकार’ बदलने की हवा उड़ी तो आस्था डोलने लगी…
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