यूपी में शिक्षक अपनी जेब से खिला रहे मिड डे मील, मार्च से नहीं मिला कन्वर्जन कास्ट, जुलाई से अनाज

यूपी के कानपुर जिले में शिक्षक अपनी जेब से मिड-डे मील खिला रहे हैं। मार्च से कन्वर्जन कास्ट नहीं मिला। जुलाई से अनाज भी नहीं मिल रहा है।

मार्च से अब तक कन्वर्जन कास्ट की धनराशि न मिलने और जुलाई से अब तक खाद्यान्न न मिलने के कारण शिक्षक अपनी जेब से खर्च कर मिड डे मील (एमडीएम) खिलाने को मजबूर हैं। शिक्षक लाखों रुपये अपनी जेब से खर्च कर चुके हैं। मजबूरी यह  है कि शिक्षकों को सख्त निर्देश दिए गए हैं कि उन्हें प्रत्येक स्थिति में एमडीएम तैयार कराना है। 

नगर क्षेत्र में एजेंसियों के माध्यम से भोजन परोसा जाता है जबकि ब्लॉकों के ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यालयों यह जिम्मेदारी स्कूलों की है। स्कूल में ही किचन होता है और यहां रसोइयों के माध्यम से भोजन तैयार किया जाता है। सरकार खाद्यान्न उपलब्ध कराती है। अन्य सामग्री के लिए प्रति छात्र कन्वर्जन कास्ट तय है। यह धनराशि स्कूलों को दी जाती है जिससे एमडीएम तैयार होता है।

पहले मिलता था एडवांस, अब लाले
स्कूलों को पहले कन्वर्जन कास्ट की धनराशि एडवांस मिल जाती थी। यह मार्च से अब तक (छह माह) नहीं मिली है। जुलाई से अब तक तीन माह बीत गए लेकिन खाद्यान्न नहीं मिला है। जिन विद्यालयों में छात्र संख्या कम है उन्हें परेशानी कम उठानी पड़ती है। पर जिन विद्यालयों में छात्र संख्या और हाजिरी अधिक है, वहां संकट गंभीर हो चला है। कहीं प्रधान सहयोग करते हैं तो कहीं खुद पूरा खर्चा उठाने को कह देते हैं। जिन दुकानों से शिक्षक उधार लेते हैं, वह भी एक दो माह बाद डरने लगते हैं कि उधार वापस मिलेगा या नहीं।

स्कूल में 100 बच्चे तो इतना खर्च
यदि उच्च प्राथमिक स्कूल में 100 बच्चे हैं तो एक माह में 26 दिवसों के अनुसार प्रति छात्र कन्वर्जन कास्ट (प्रति छात्र 07.45 रुपये) के हिसाब से 19,370 रुपये होते हैं। यदि स्कूल में 200 छात्र हैं तो यही धनराशि 38,740 रुपये होती है। इसके अतिरिक्त 100 बच्चों के लिए प्रति माह 120 किलो आटा, 12 किलो दाल, 180 किलो चावल, सोयाबीन 18 किग्रा आदि की जरूरत होती है। यह सामग्री भी शिक्षक को खरीदना पड़ रही है।

दुकानदारों ने भी किया मना
जिन दुकानों से शिक्षक उधार खाद्यान्न आदि ले रहे हैं, उन्होंने भी देने से मना कर दिया है। ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालयों के आसपास बड़ी पूंजी वाले दुकानदार कम हैं। यह सभी खरीदारी भी शिक्षकों को दूर दराज से करनी पड़ती है। 

दूध और फल का भी खर्च अधिक
सप्ताह में एक बार बच्चों को दूध दिया जाता है। इसी तरह सप्ताह में एक बार फल और माह में पांच बार फल देना पड़ता है। दूध के लिए अलग से धनराशि नहीं दी जाती है लेकिन फल की धनराशि आती है। यह धन भी मार्च से अब तक नहीं आया है।

हाजिरी शत प्रतिशत, खाद्यान्न 60 फीसदी का
दिलचस्प यह भी है कि विभाग किसी भी विद्यालय में अधिकतम 60 फीसदी हाजिरी मानता ही नहीं है। कटरी के चार विद्यालयों में छात्र संख्या अधिक है और यहां 95-100 फीसदी हाजिरी रहती है। ऐसे कई विद्यालय जैसे तिलसहरी, बैकुंठपुर, सोना आदि विद्यालयों में भी है। पर विद्यालयों को कुल छात्र संख्या का 60 फीसदी ही अनाज दिया जाता है। शेष 40 फीसदी का खर्च अकेले शिक्षक या शिक्षक और प्रधान उठाते हैं।

शीघ्र ही विद्यालयों को खाद्यान्न मिल जाएगा
बेसिक शिक्षा अधिकारी सुरजीत कुमार सिंह ने बताया कि खाद्यान्न का संकट जुलाई से था लेकिन अब ऑर्डर हो गया है। शीघ्र ही विद्यालयों को खाद्यान्न मिल जाएगा। मार्च से कन्वर्जन कास्ट नहीं आई है। यह धनराशि शासन स्तर से आनी है। विभाग को स्मरण करा दिया गया है। जैसे ही आएगी वैसे ही स्कूलों के खातों में भेज दी जाएगी। जो समस्याएं हैं उनकी जानकारी है, समाधान कराया जा रहा है।