लुप्त हो रहा ‘लोकपर्व संजा’: मोबाइल और कम्प्यूटर के आधुनिक युग में सिकुड़ा, दूर ग्रामीण क्षेत्रों में जिंदा है परंपरा

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खरगोन7 घंटे पहले
खरगोन जिले के समूचे निमाड़ अंचल के गांवों में लोक संस्कृति का संजा पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। श्राद्ध पक्ष में 16 दिन तक मनाये जाने वाला “संजा पर्व” अब मोबाइल और कम्प्यूटर के आधुनिक युग मे लगभग लुप्त होता जा रहा है। शहर में सीमेंट की इमारतें और दीवारों पर महंगे पेंट पूते होने, गोबर का अभाव, लड़कियों के ज्यादा संख्या में एक जगह न हो पाने की वजह, टीवी, इंटरनेट का प्रभाव और पढ़ाई पर ज़ोर की वजह से शहरों में संजा मनाने का चलन खत्म सा हो गया है। लेकिन खरगोन जिले के ठेठ ग्रामीण इलाकों में आज भी संजा माता का पर्व छोटी-छोटी युवतियों और बच्चों द्वारा धूमधाम से मनाया जाता है।
खरगोन शहर में सैकड़ों वर्ष पुरानी इस परंपरा को जीवित रखने के लिए खरगोन के पटेल नगर की महिलाएं निमाड़ के सबसे प्रमुख लोकपर्व “संजा पर्व” के महत्व को बनाए रखने के लिए अपने घरों की पक्की दीवारों पर गाय के गोबर से अलग- अलग प्रकार की आकृतियां बनवाकर संजा माता के रुप में पूजन कर और निमाड़ी भाषा में लोकगीत गाकर इस संस्कृति को बढ़ावा दे रही है। बालिकाएं प्रतिदिन गाय के गोबर से संजा माता बड़ी आकृति बनाकर शाम को संजा माता की निमाड़ी लोकगीत के माध्यम से आरती कर विभिन्न स्वादिष्ट व्यंजनों का भोग लगाकर लोकगीत गा रही है।


महिलाओं का मानना है कि निमाड़ अंचल की यह परपंरा विलुप्त न हो, इसके लिए वे भी बच्चों का साथ देकर इस पारंपरिक पर्व के महत्व को समझा रही है। ताकि गांवों की भांति शहरों में भी संजा माता का पर्व धूमधाम से मनाया जा सकें। मान्यता है कि संजा माता को माता पार्वती का रूप माना जाता है। इसी लिए खासकर कुंवारी युवतियां इस पर्व को उत्साह के साथ मनाती है। इस पर्व का समापन सर्व पितृ अमावस्या को किया जाता है। जहां 16 दिन तक गोबर से बनाई जाने वाली आकृतियों को नदी में धूमधाम से विसर्जन किया जाता है।
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