रेप से जन्मा बेटी नहीं अपनाएगी 15 साल की मां: क्या होगा 11 दिन की मासूम का, जानिए सबकुछ…

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इंदौर8 मिनट पहलेलेखक: संतोष शितोले
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इंदौर में दुष्कर्म के बाद मां बनी 15 साल की नाबालिग अपनी बेटी को नहीं रखना चाहती। वह कह रही है कि मैं इसे क्यों और कैसे पालूंगी। सात महीने में जन्म लेने वाली मासूम SNCU में है और उसकी मां सिर्फ दूध पिलाने आती है। यदि 15 साल की नाबालिग इस बच्ची को नहीं रखती तो इस मासूम का क्या होगा.. कहां पलेगी, कौन दूध पिलाएगा, जानिए कानून क्या कहता है…
पहले मामला जान लीजिए
खंडवा की रहने वाली 15 साल की बच्ची इंदौर में मौसी के घर सात-आठ महीने पहले आई थी। उसका आरोप है कि कॉलोनी में ही रहने वाले 13 साल के लड़के ने अकेला पाकर उससे रेप किया। तब मौसी घर पर नहीं थी। उसे पता ही नहीं चला कि उसके साथ कितना गलत हो गया। राखी पर वह इंदौर से खंडवा लौट गई। यहां दिवाली के दिन सफाई करते समय वह गिरी और पेट दर्द हुआ। अस्पताल ले गए तो वहां उसने बेटी को जन्म दिया। तब रेप का खुलासा हुआ। लड़का इंदौर के सुधारगृह में है, लड़की खंडवा में है और 11 दिन की मासूम एनआईसीयू में। बच्ची प्रीमेच्योर होने से 2.200 किलोग्राम की है। लड़की इस प्रीमेच्योर बच्ची को नहीं रखना चाहती है।
आखिर क्यों अपनाना नहीं चाहती अपने अंश को?
परिवार का कहना है कि यदि ऐसा कुछ करते हैं तो समाज में चेहरा दिखाने लायक नहीं रह जाएंगे। हमारी आर्थिक हालत भी इतनी अच्छी नहीं है। इस बच्ची को लेकर समाज में क्या जवाब देंगे, बेटी की भी आने वाली जिंदगी भी बर्बाद हो जाएगी।
क्या 13 साल का लड़का रेप कर सकता है?
एक्सपर्ट डॉक्टर्स का कहना है कि ऐसे कुछ मामले पहले भी आए थे। निर्भया केस में आरोपी नाबालिग थे। वैसे 13 साल के लड़के के रेप के मामले चौंकाने वाले हैं। लेकिन इसमें DNA सेंपलिंग की रिपोर्ट बहुत जरूरी है। ये सेंपल तभी लिया जा सकेगा जब 11 साल की मासूम SNCU से बाहर आएगी। उसके नॉर्मल हो जाने तक सेंपल नहीं लिया जा सकता था। पर जब मां ने अपनाने से इंकार किया तो डॉक्टर्स ने नवजात के सेंपल दिलवाए और लैब में जांच के लिए भिजवा दिए।

यदि मां रखने को तैयार नहीं, दूध कौन पिला रहा है?
11 दिन की बच्ची को मां का दूध जरूरी है क्योंकि डिलेवरी प्रीमेच्योर है। मां रखने को तैयार नहीं है लेकिन काउंसलिंग के बाद वह इस बात के लिए तैयार हो गई है।
मां के दूध और काउंसलिंग के लिए एक महीने अस्पताल में रहेगी लड़की
डॉक्टरों, चाइल्ड लाइन व बाल कल्याण समिति का मानना है कि मामले में किशोरी व उसके परिवार की लगातार काउंसलिंग जरूरी है। इसके चलते इस नाबालिग मां को अभी एक माह अस्पताल में रखा जाएगा। वजन बढ़ने से उसके खतरे की स्थिति टल जाएगी और किशोरी को भी इस दौरान समझने का समय मिलेगा।


परिवार को 60 दिन का वक्त देती है बाल कल्याण समिति
बाल कल्याण समिति (खण्डवा) के अध्यक्ष विजय सनावा के मुताबिक अनचाहे संबंधों, बलात्कार, नाजायज संबंधों के चलते पैदा हुए नवजात को अगर मां या परिवार अपनाना नहीं चाहते तो उसके लिए कानून है। इसके तहत संबंधित पक्ष को बाल कल्याण समिति (CWC) में अपना पक्ष रखना पड़ता है। उसके माता-पिता या मां या पिता को आवेदन देना पड़ता है कि वह बच्चे को अपनाना नहीं चाहते और सरकार को सौंपना चाहते हैं।
– इसके लिए CWC उन्हें 60 दिनों का समय देती है कि वह अपने फैसले को लेकर पुनर्विचार करें। तब तक बच्चा परिवार या बाल कल्याण समिति के जरिए किसी भी बाल संरक्षण गृह में रखा जा सकता है। इस दौरान अगर परिवार का मन बनता है कि बच्चा परिवार में रहे तो वे रख सकते हैं।
– अगर मां या परिवार मना करते हैं कि वे बच्चे को अपना नहीं सकते तो उसके लिए फिर फाइनल सरेंडर डीड बनाई जाती है। इसके बाद बच्चा शासन को देने का लिखा जाता है। फिर बाल कल्याण समिति से विधि मुक्त घोषित करती है। इसमें करीब 15 दिनों का समय लगता है।
– बच्चा विधि मुक्त होने के बाद किसी और को एडॉप्शन के लिए देने के लिए फ्री हो जाता है।
– इसके बाद गोद लेने के लिए संबंधित पक्ष Central Adoption Resource Authority (CARA) की वेबसाइट पर आवेदन कर सकते हैं। इसमें नवजात से लेकर बड़े बच्चों तक के लिए गोद लेने वाले दंपती की औसत उम्र, वेटिंग, आर्थिक स्थिति, पूर्व की संतान सहित कई बिंदुओं पर शासन द्वारा गहन छानबीन के बाद गोद देने की प्रक्रिया होती है।
सभी अधिकार मिलेंगे इस बच्चे को : एक्सपर्ट
एडवोकेट पंकज वाधवानी के मुताबिक अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर बालकों के अधिकार पर संपन्न हुए विभिन्न अभिसमय एवं प्रोटोकॉल के अनुसार कानून का स्पष्ट मत है कि अवैधानिक विवाह से उत्पन्न हुए बच्चों की वैधानिकता पर प्रश्न नहीं उठाया जाएगा। इसमें पैदा होने वाले बच्चों की कोई गलती नहीं होती। ऐसी स्थिति में बालकों की स्थिति धर्मज अर्थात वैधानिक ही मानी जाएगी। बच्चे भले ही अवैधानिक अवैधानिक विवाह से पैदा हुए हो लेकिन कानून में उनके साथ किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होगा? उन्हें वे समस्त अधिकार मिलेंगे जो अन्य बच्चों को मिलते हैं। ऐसे बच्चों को नाजायज नहीं कहा जा सकता।
– बच्ची का पिता 13 वर्षीय बालक है, इसे साबित होने में DNA रिपोर्ट आ भी गई तो कोर्ट सुनवाई में काफी समय लगेगा। इसके बाद कोर्ट के निर्णय पर सारी स्थिति निर्भर होगी। बालक के एडवोकेट जितेंद्र झाला ने बताया शुक्रवार को उसकी जमानत हो गई है। अब हम सुनवाई में अपना पक्ष मजबूती से रखेंगे।
– नाबालिग लड़की के पिता ने सातवें माह में प्रिमेच्योर डिलीवरी की बात कही है। दूसरी ओर बालक के परिवार का कहना है कि किशोरी इंदौर में पांच माह ही रही तो ऐसी स्थिति में किशोरी व उसके परिवार पर सवाल उठ रहे हैं। जांचकर्ता खुशबू परमार ने बताया डिलीवरी प्रीमेच्योर नहीं बल्कि आठवें महीने में हुई है।
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