बात बेबाक: शहर सड़क, सड़क गड्ढे, गड्ढे दचके, दचके कमरदर्द, कमरदर्द गुस्सा, गुस्सा बातें… और सिर्फ बातें

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भोपाल5 घंटे पहले
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- दिवाली की रात सीएम हमीदिया रोड से गुजरे, हाल-ए-सड़क देख खासा हैरान हुए, अगले दिन अफसरों की ऑनलाइन ‘सुताई’ लगाई
मुबारक हो। आज सुबह जब आप ये कॉलम पढ़ रहे होंगे, तब तक आपके शहर की वो सड़क बनना शुरू हो चुकी होगी, जिसका चकोर को चांद की तरह इंतजार था। नाम है हमीदिया रोड। नवाब काल में जब शहर में सड़कें बनना शुरू हुईं, तब ये भोपाल की पहली मेन रोड थी। कहा जाता है, 25 साल पहले जब कॉलेज के लड़के टू व्हीलर चलाना सीख लेते थे तो एक दूसरे को चैलेंज देते थे। दम है तो हमीदिया रोड पर चलाकर दिखा…। ये इसलिए क्योंकि शहर का सबसे ज्यादा ट्रैफिक यहीं होता था। आज इस रोड के हिस्से 56 गड्ढे हैं, या यूं कह लें कि इस रास्ते पर सड़क ढूंढना मुश्किल है। ये हाल तब जब पिछले 2 साल में इस पर 6 बार थेगड़े लगाने का पैचवर्क हो चुका है।
बुरा मानने वाली वैसे कोई बात नहीं, गड्ढे तो शहर की लगभग हर सड़क पर है। आधी सड़कों का तो ये हाल है कि सड़क पर गड्ढे हैं कि गड्ढे में टुकड़ा भर सड़क, बताना भी मुश्किल है। लेकिन इस सड़क के चर्चे इसलिए हो रहे हैं क्योंकि दिवाली की रात सीएम परिवार सहित इस पर से गुजरे थे। हाल-ए-सड़क से वो खासा हैरान हुए और अगले दिन उन्होंने अफसरों की जमकर ऑनलाइन ‘सुताई’ लगाई।
पिछले साल भी सड़कें खराब हुई थीं। तब भी मुख्यमंत्री नाराज हुए थे। और सीपीए के किसी देश की तरह दो टुकड़े कर दिए। आधा पीडब्ल्यूडी और बचा-खुचा फॉरेस्ट के हिस्से आया। वरना सड़कों का झगड़ा तीन में होता था, पीडब्ल्यूडी-निगम-सीपीए। अब दो में होता है, निगम-पीडब्ल्यूडी। भाई साहब, शहर में सड़कों को लेकर अलग ही यूक्रेन युद्ध चल रहा है। नगर निगम कहता है- बारिश ने सड़कें खराब कीं। पीडब्ल्यूडी कहता है- निगम की खुदाई में सड़कें खराब हुईं। झगड़ा वैसे और ज्यादा माइक्रो लेवल का है। निगम में पानी वाले कहते हैं कि सीवेज वालों ने सड़कें खराब कीं, सीवेज वाले पानी वालों को गुनहगार ठहराते हैं। नुकसान न पीडब्ल्यूडी का है, न निगम का, न पानी वालों का न सीवेज…।
गाड़ियों के अस्थिपंजर का हिल जाना और नथुनों में कई किमी तक धूल का गृह प्रवेश तो हम बेचारे सड़क पर चलने वालों को झेलना होता है। यहीं तक होता तो हम चुप बैठ जाते। लेकिन अब हालात ये हैं कि दूसरे ग्रहों पर नजर आने वाले खगोलीय गड्ढों की तरह हमारे शहर के गड्ढे ‘कमरतोड़’ हो चुके हैं। ये भी ठीक था, पेन किलर खाकर हम गुजारा कर लेते। लेकिन अब बात जानलेवा हो चुकी है। एक हफ्ते पहले छोला इलाके में एक फोटोग्राफर की सड़क के गड्ढे में गिरने से मौत हो गई। हादसे के 10 घंटे बाद पीडब्ल्यूडी ने सड़क के गड्ढे भर डाले। इसलिए नहीं कि आगे यहां कोई हादसे न हो, बल्कि इसलिए ताकि उस हादसे के सबूत मिटा सकें।
हिसाब-किताब की बात करें तो शहर में 4.5 हजार किमी सड़कें हैं। इन सड़कों के लालन-पालन के लिए हम-आप हर साल 300 करोड़ सिर्फ रोड टैक्स भरते हैं। इसके अलावा प्रॉपर्टी टैक्स और तमाम आय-बांय-सांय टैक्स अलग। इसके बाद भी टूटी-फूटी-जर्जर-खौफनाक-टुकड़े-टुकड़े सड़कों पर आखिर कब तक चलना होगा?
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