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मोक्ष दिलाने वाला श्रीमद्भागवत कथा से अन्य कोई श्रेष्ठ मार्ग नही – पं० भूपेन्द्र मिश्रा

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

नैमिषारण्य – श्रीमद्भागवत कथा को अमर कथा माना गया है , यह कथा हमें मुक्ति का मार्ग दिखलाती हैं। जो जीव श्रद्धा और विश्वास के साथ मात्र एक बार इस कथा को श्रवण कर लेता है उनका जीवन सुखमय हो जाता है और वह सदैव के लिये मोक्ष की प्राप्ति कर लेता है इसके साथ ही उसे सांसारिक बंधनों के चक्कर मे आना नही पड़ता। इस कलिकाल में मोक्ष दिलाने वाला श्रीमद्भागवत महापुराण कथा से कोई अन्य श्रेष्ठ मार्ग नही है।


श्री मद्भागवत महापुराण की उक्त पावन कथा भागवताचार्य पं० भूपेन्द्र मिश्रा ने श्री सत्यनारायण धाम , भागवत भवन तीर्थ क्षेत्र नैमिषासारण्य में आयोजित श्रीमद्रागवत कथा के विश्राम दिवस सुनायी। इस कथा के पारायणकर्ता पंडित रोशन दुबे एवं मुख्य यजमान खुशबू राजेश तिवारी बेमेतरा हैं। महाराजजी ने बताया कि परीक्षित को ऋषि पुत्र द्वारा सातवें दिन मरने का श्राप दिया गया था। उन्होंने अन्य उपाय के बजाय श्रीमद्भागवत की कथा का श्रवण किया और मोक्ष को प्राप्त कर भगवान के बैकुण्ठ धाम को चले गये‌। ऐसे श्रीमद्भागवत कथा श्रवण करने का सौभाग्य केवल श्रीकृष्ण की असीम कृपा से ही प्राप्त हो सकती है। कथा सुनाने के बाद श्रीशुकदेवजी ने राजा परिक्षित को पूछा राजन् मरने से डर लग रहा हैं क्या ? तब राजा ने कहा महाराज मृत्यु तो केवल शरीर की होती हैं आत्मा तो अमर होती हैं , भागवत कथा सुनने के बाद अब मेरा मृत्यु से कोई डर नही हैं औऱ अब मैं भगवत्प्राप्ति करना चाहता हूँ। मुझे कथा श्रवण कराने वाले सुकदेवजी आपकों कोटि-कोटि मेरा प्रणाम कहकर परिक्षित ने श्री शुकदेवजी को विदा किया। परीक्षित की आत्मा तो पहले ही श्रीकृष्ण की चरणारविन्द में समा चुकी थी और कथा के प्रभाव से अंत में उन्हें मोक्ष प्राप्त हो गया। ऋंगी ऋषि के श्राप को पूरा करने के लिये तक्षक नामक सांप भेष बदलकर राजा परिक्षित के पास पहुंँचकर उन्हें डस लेते हैं और जहर के प्रभाव से राजा का शरीर जल जाता है और मृत्यु हो जाती है। लेकिन श्रीमद्भागवत कथा सुनने के प्रभाव से राजा परीक्षित को मोक्ष प्राप्त होता है। परीक्षित को जब मोक्ष हुआ तो ब्रह्माजी ने अपने लोक में तराजू के एक पलडे़ में सारे धर्म और दूसरे में श्रीमद्भागवत को रखा तो भागवत का ही पलड़ा भारी रहा। अर्थात श्रीमद्भागवत ही सारे वेद पुराण शास्त्रों का मुकुट है। महाराजश्री ने बताया कि इस कलयुग में भी मनुष्य श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण कर अपना कल्याण कर सकता हैं। इस कलिकाल में भी वह भगवान के नाम स्मरण मात्र से भगवत् शरणागति की प्राप्त कर अपने जीवन को धन्य बना सकता है। इसके पहले आचार्यश्री ने सुदामा चरित्र की कथा पर प्रकाश डालते हुये कहा कि सुदामा संसार में सबसे अनोखे भक्त रहे हैं। उन्होंने अपने सुख व दुखों को भगवान की इच्छा पर सौंप दिया था। जब सुदामा द्वारिकापुरी पहुंचे तो द्वारपाल के मुख से सुदामा का नाम सुनते ही द्वारिकाधीश नंगे पांव मित्र की अगुवानी करने राजमहल के द्वार पर पहुंचे। बचपन के मित्र को गले लगाकर भगवान श्रीकृष्ण उन्हें राजमहल के अंदर ले गये और अपने सिंहासन पर बैठाकर स्वयं अपने हाथों से उनके पांव पखारे। आचार्यजी ने कहा कि सुदामा से भगवान ने मित्रता का धर्म निभाया और दुनियां के सामने यह संदेश दिया कि जिसके पास प्रेम धन है वह निर्धन नहीं हो सकता। राजा हो या रंक मित्रता में सभी समान हैं और इसमें कोई भेदभाव नहीं होता।

श्रीमद्भागवत कथा का विश्राम राज परीक्षित के मोक्ष प्रसंग के साथ हुआ। इसके पूर्व कथाव्यास ने आज भगवान श्रीकृष्ण के सभी विवाह का प्रसंग एवं दत्तात्रेय का उपदेश व पिंगला वेश्या की कथा के माध्यम से चौबीस गुरुओं का उपदेश भी सुनाया। इस अवसर पर मुख्य रूप से चंद्रकला तिवारी , निक्की तिवारी , वर्षा शर्मा , दीनू शर्मा , हिंगलाज द्विवेदी , रानी शर्मा , मोहन द्विवेदी , सच गौरहा , दीनानाथ स्वर्णकार , आशा स्वर्णकार , शंभूनाथ स्वर्णकार इत्यादि श्रद्धालुगण उपस्थित थे। कथा विश्राम और हवन एवं ब्राह्मण भोज पश्चात श्रद्धालुओं की टोली महाकुम्भ स्नान के लिये प्रयागराज रवाना हुई।

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