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आशीष पटेल पर बेबुनियाद इल्जामों से बढ़ी यूपी की सियासी सरगर्मी – अतुल मलिकराम (राजनीतिक रणनीतिकार)

उत्तर प्रदेश के प्राविधिक शिक्षा विभाग में डिप्लोमा सेक्टर में विभागध्यक्ष के पदों पर पदोन्नति में गड़बड़ी के आरोपों ने सर्दी के मौसम में यूपी की सियासत को गरमा दिया है। प्रदेश के प्राविधिक शिक्षा मंत्री और अपना दल (एस) के कार्यकारी अध्यक्ष आशीष पटेल पर विभागध्यक्ष के पदों पर पदोन्नति में अनियमितता का दोष लगाया गया है। हालांकि आरोप लगाने के लिए जिस समय का चुनाव किया गया है वह कई तरह के सवाल पैदा करता है। उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारे में यह चर्चा आम है कि अपना दल के दो भागों में बंटने का सारा ठीकरा आशीष पटेल पर फोड़ा जाता है, और विरोधी दल के इन इल्जामों के पीछे की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के असफल रह जाने का मलाल भी साफ़ नजर आता है।

आशीष पटेल भी साफ़ कर चुके हैं कि जब स्वास्थ्य कारणों से वह अस्पताल में भर्ती थे, ऐसे समय में उनकी छवि को धूमिल करने और उनकी लोकप्रियता को प्रभावित करने की साजिश रची गई है। यहाँ तक कि साजिशकर्ताओं को खुली चुनौती देते हुए उन्होंने सीबीआई जांच कराये जाने की सिफारिश भी की है, और तो और पीएम मोदी के आदेश पर पद से इस्तीफा देने तक की बात कह दी है। शायद योगी सरकार और एनडीए हाई कमान में भी यह स्थिति पूरी तरफ साफ़ है कि उपरोक्त आरोप उनकी असमर्थता का लाभ उठाने और राजनीतिक फायदा लेने की कोशिश मात्र है। शायद इसीलिए मीडिया से अधिक इस मामले में केंद्रीय या राजकीय संगठन ने अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। पूरी घटना को महज निम्न स्तर की राजनीतिक साजिश के रूप में आँका गया है।

उत्तर प्रदेश की सियासत में आशीष पटेल को एक ईमानदार और कर्मठ नेता के रूप में पहचाना जाता है। उनके अब तक के कार्यकाल में विभाग के अंदर कई सुधार लागू हुए हैं, जिसका विभागीय कार्यप्रणाली पर सकारात्मक प्रभाव देखने को मिला है। जो यह भी दर्शाता है कि उनका उद्देश्य हमेशा से प्राविधिक शिक्षा विभाग को सशक्त और पारदर्शी बनाना रहा है। हालांकि सब कुछ पानी की तरह साफ होने के बाद भी इस विवाद के पीछे की सच्चाई को जनता के समक्ष लाने की जरूरत है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि यह केवल एक मंत्री पर लगाए गए आरोप नहीं हैं बल्कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में पारदर्शिता और ईमानदारी पर भी बड़ा प्रश्नचिन्ह हैं।

ऐसे समय में जब देश और प्रदेश को समर्पित व युवा नेताओं की जरूरत है, इस तरह की राजनीतिक साजिशें न केवल लोकतंत्र को कमजोर करती हैं, बल्कि जनता के विश्वास को भी चोट पहुंचाती हैं, साथ ही साथ, स्वच्छ राजनीति की राह पर चल रहे राजनेताओं की राह भी बाधित करती हैं।हालांकि ऐसे मामलों में जनता की जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है, कि वह तथाकथित आरोपों के पीछे के असल मकसद को भी समझें और निराधार आरोपों को आँख मूंदकर मानाने और उसी आधार पर नई अवधारणा बनाने से बचें। ———-

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