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स्त्री से परेशान पुरुष, जान लें अपने ये अधिकार

हर साल 19 नवंबर को दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाया जाता है। यह दिन सिर्फ महिलाओं के अधिकारों पर चर्चा करने का नहीं, बल्कि पुरुषों से जुड़े मुद्दों और उनके अधिकारों पर भी ध्यान देने का है। आज भी समाज में पुरुषों से कई उम्मीदें और जिम्मेदारियां जुड़ी हैं, लेकिन जब उनकी अपनी जरूरतों और अधिकारों की बात आती है, तो उनकी आवाज अक्सर दब जाती है। इस दिन का उद्देश्य पुरुषों के अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाना और उनकी समस्याओं पर खुलकर चर्चा करना है।

कब से मनाया जा रहा है मेंस डे?

भारत में अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस 2007 से मनाया जा रहा है। हालांकि यह संयुक्त राष्ट्र द्वारा आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त नहीं है, फिर भी यह दिवस अपने उद्देश्य में बहुत महत्वपूर्ण है। पुरुषों के स्वास्थ्य, मानसिक दबाव, पारिवारिक जिम्मेदारियों और सामाजिक चुनौतियों के बारे में आज भी पर्याप्त चर्चा नहीं होती। इस दिन का मकसद पुरुषों को उनके योगदान के लिए सम्मान देना और लैंगिक समानता को व्यवहार में लाना है।

समाज में पुरुषों से जुड़ी धारणाएं

समाज में पुरुषों से हमेशा मजबूती की उम्मीद की जाती है। उन्हें बताया जाता है कि वे कभी थक नहीं सकते, हमेशा मजबूत रहने चाहिए और अपनी भावनाओं को छिपाकर रखें। अगर वे कमजोर दिखे, या अपनी समस्याओं के बारे में बात करें तो उन्हें शिकायत करने वाला समझा जाता है। यही मानसिकता अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस को मनाने का प्रमुख कारण है। यह दिन पुरुषों के वास्तविक मुद्दों पर चर्चा करने और उनकी मानसिक और शारीरिक समस्याओं के समाधान की दिशा में एक कदम बढ़ाने का है।

क्यों मनाया जाता है मेंस डे?

अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस का प्रमुख उद्देश्य पुरुषों के स्वास्थ्य और कल्याण पर ध्यान देना है। आंकड़े बताते हैं कि पुरुष अक्सर मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और शारीरिक बीमारियों को छिपाते हैं, जैसे कि कैंसर, हृदय रोग और अन्य गंभीर समस्याएं। इस कारण से इलाज में देरी हो जाती है और स्थिति गंभीर हो जाती है। मेंस डे इस मानसिकता को बदलने का प्रयास है कि पुरुषों को भी अपनी भावनाओं, तनाव और थकान के बारे में खुलकर बात करने का अधिकार है।

पुरुषों के कानूनी अधिकार

अक्सर यह माना जाता है कि कानूनी सुरक्षा केवल महिलाओं या बच्चों के लिए है, लेकिन भारतीय संविधान ने पुरुषों को भी समान मूलभूत अधिकार दिए हैं। पुरुष भी घरेलू हिंसा और उत्पीड़न के मामलों में शिकायत दर्ज कर सकते हैं, जो बहुत से लोगों को पता नहीं होता। पारिवारिक कानूनों में भी पुरुषों के अधिकार स्पष्ट हैं। यदि पति आर्थिक रूप से कमजोर है और पत्नी अच्छी आय वाली है, तो वह कानूनी रूप से गुजारा भत्ता मांग सकता है। इसके अलावा, पुरुषों का भी बच्चों की कस्टडी में उतना ही हक है, और यह केवल “वीकेंड फादर” तक सीमित नहीं है। संपत्ति की बिक्री, वैवाहिक संपत्ति में हिस्सा और झूठे यौन उत्पीड़न या दहेज के आरोपों पर शिकायत करने का अधिकार भी पुरुषों के पास है। कई मामलों में अदालतों ने इस पर सख्त रुख अपनाया है और पुरुषों की सुरक्षा को समान महत्व दिया है।

कानून क्या कहता है?
संविधान का अनुच्छेद 15 लिंग के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है। इसका मतलब है कि कानून पुरुष और महिला दोनों को समान सुरक्षा प्रदान करता है। कई कानून जैसे कि IPC की धारा 406 पूरी तरह से जेंडर-न्यूट्रल हैं और इनका पालन पुरुष और महिला दोनों पर समान रूप से होता है।

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