विंध्याचल-सतपुड़ा नहीं होते तो MP में बारिश को तरसते: इंदौर-उज्जैन में अरावली कराता है बारिश; सेंट्रल में होने से भोपाल पर मानसून ज्यादा मेहरबान

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भोपाल12 मिनट पहलेलेखक: अनूप दुबे
मध्यप्रदेश में अगर पहाड़ नहीं होते तो लोग बारिश को तरस जाते। सुनने में अटपटा लग रहा है, लेकिन सच है। दरअसल, राजस्थान से लेकर उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के तीन पहाड़ कहीं खूब तो कहीं कम बारिश कराते हैं। राजस्थान के अरावली से लेकर उत्तर में विंध्याचल और सतपुड़ा पर्वत मध्यप्रदेश में मानसून को लॉक करते हैं। इन्हीं पहाड़ों की वजह से मध्यप्रदेश में बारिश होती है। वरिष्ठ मौसम वैज्ञानिक वेद प्रकाश से समझते हैं कि आखिर प्रदेश में कहीं कम तो कहीं ज्यादा बारिश क्यों होती है?। इन पहाड़ों का इससे क्या संबंध हैं।
इस तरह समझें प्रदेश में बारिश का मिजाज
मालवा-निमाड़ में अरावली पर्वत का असर
अरब सागर से आने वाली मानसूनी हवाएं खरगोन-बड़वानी जिले के रास्ते मालवा-निमाड़ में प्रवेश करती हैं। यह आगे बढ़ती हैं, तो अरावली पर्वत के सहारे दिल्ली की तरफ चली जाती हैं। अरब सागर मानसून से ही मालवा-निमाड़ में बारिश होती है। इसी कारण अलीराजपुर, झाबुआ और आगर में या तो सामान्य से कम बारिश होती है या फिर ज्यादा बारिश होती है। अधिकांश तौर पर यहां जुलाई-अगस्त में ही अधिकतम बारिश हो जाती है। इससे श्योपुर, नीमच, मंदसौर, रतलाम और बुरहानपुर में जमकर पानी गिरता है। उज्जैन और इंदौर में सामान्य बारिश होती है। अगर अरावली पर्वत नहीं होता, तो अरब सागर से आने वाली मानसूनी हवाएं सीधे निकल जातीं। यह इलाके सूखे रह जाते।

ग्वालियर-चंबल और बघेलखंड
ग्वालियर-चंबल और बघेलखंड में अधिकांश इलाकों में बंगाल की खाड़ी से बारिश होती है। यहां के लिए विंध्याचल पर्वत प्रभावित करता है। इसके कारण ग्वालियर, निवाड़ी, टीकमगढ़, शहडोल, सीधी, रीवा, कटनी और दतिया में बहुत कम बारिश होती है। यहां पर सामान्य तौर पर सामान्य से कम बारिश होती है।

सतपुड़ा-विंध्याचल पहाड़ी के कारण भोपाल में अधिक बारिश
मध्यप्रदेश का मध्य भाग में अरब-सागर और बंगाल की खाड़ी दोनों ही सिस्टम बारिश कराते हैं। सतपुड़ा पर्वत और विंध्याचल के कारण बंगाल की खाड़ी से आने वाला मानसून यहां लॉक हो जाता है। मानसूनी हवाएं बैतूल के रास्ते प्रदेश में प्रवेश करती हैं। यह मंडला, डिंडोरी से लेकर जबलपुर, पचमढ़ी, छिंदवाड़ा, नर्मदापुरम और भोपाल तक बारिश करती हैं। अपेक्षाकृत हरदा निचला इलाका होने के कारण यहां अलग परिस्थिति बनने पर ही बारिश होती है। भोपाल में सबसे ज्यादा बारिश का मुख्य कारण अरब और बंगाल से आने वाले दोनों सिस्टम हैं। भोपाल में वॉटर बॉडी बहुत ज्यादा हैं। लोकल सिस्टम बनने से भी अधिक बारिश का क्षेत्र बनता है।

इन इलाकों में अब ज्यादा बारिश नहीं
प्रदेश भर में 44 इंच से ज्यादा बारिश हो चुकी है। यह सामान्य 36 इंच से 22% ज्यादा है। इसके बाद भी प्रदेश के 8 जिले ऐसे हैं, जहां सूखे का संकट मंडरा रहा है। रीवा, सतना, निवाड़ी, टीकमगढ़, ग्वालियर, दतिया, अलीराजपुर और झाबुआ में 67 से लेकर 79% तक ही बारिश हुई है।
यहां रिमझिम से ही कोटा पूरा
मुरैना, भिंड, शिवपुरी, छतरपुर, दमोह, पन्ना, सतना, सिंगरौली, दमोह, कटनी, उमरिया, शहडोल, अनूपपुर, डिंडोरी, बालाघाट, मंडला, जबलपुर, नरसिंहपुर, खंडवा, खरगोन, बड़वानी, धार, इंदौर और उज्जैन में सामान्य बारिश हुई। यानी यहां या तो सामान्य से 19% कम और या तो 19% ज्यादा पानी गिरा है। ऐसे में यहां अब भी रिमझिम बारिश होते रहने की जरूरत है।
जरा सी बारिश में छलक जाएंगे
भोपाल, राजगढ़, नीमच, मंदसौर, रतलाम, अगर मालवा, शाजापुर, सीहोर, देवास, हरदा, बुरहानपुर, बैतूल, छिंदवाड़ा, सिवनी, नर्मदापुरम, रायसेन, सागर, विदिशा, अशोकनगर, गुना और श्योपुर में अच्छी बारिश हुई है। यहां कोटे से 21% से लेकर 86% तक पानी ज्यादा गिरा है। ऐसे में यहां जरा सी ही बारिश में बांधों के गेट खोलने पड़ सकते हैं।

मध्यप्रदेश में दो सिस्टम कराते हैं बारिश
मध्यप्रदेश में अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से आने वाला सिस्टम बारिश कराता है। अरब सागर से बारिश इंदौर से लेकर उज्जैन और ग्वालियर चंबल के कुछ इलाकों में बारिश कराता है, जबकि बंगाल की खाड़ी से प्रदेश भर में बारिश होती है।
अब बात करते हैं देश की
देश में सबसे ज्यादा मध्यप्रदेश में 22 दिन ज्यादा पानी गिरा
इस बार देश भर में मानसून जमकर मेहरबान रहा। अभी भी सीजन के 13 दिन बाकी हैं, लेकिन अब तक औसत यानी सामान्य से 7% ज्यादा बारिश हो चुकी है। मध्यप्रदेश में तो सामान्य से 22% तक ज्यादा पानी गिर चुका है। यह राष्ट्रीय औसत से 15% ज्यादा है। मध्यप्रदेश में अब तक 44 इंच बारिश हो चुकी है। मध्यप्रदेश में सामान्य 36 इंच से अब तक 8 इंच ज्यादा पानी गिर चुका है। बीते तीन साल में यह सबसे ज्यादा बारिश वाला साल है। इससे पहले वर्ष 2019 में 53 इंच बारिश हुई थी।
जानते हैं कि देश के दिल में सबसे ज्यादा बारिश का कारण क्या है। मध्यप्रदेश में 6 दिन ऐसे रहे जब बहुत ज्यादा बारिश हुई। तमिलनाडु (18), कर्नाटक (15) और तेलंगाना (14) बहुत अधिक बारिश वाले दिन रहे, जबकि मध्यप्रदेश में 22 दिन ज्यादा और 22 दिन सामान्य बारिश दिन रहे। यह प्रदेश में सबसे ज्यादा है। इतने दिन कहीं भी ऐसी बारिश नहीं हुई।
मध्यप्रदेश में बारिश की स्थिति (आंकड़े इंच में)
जिला | बारिश हुई | बारिश होनी थी | बारिश % में |
भोपाल | 68.76 | 35.00 | 185 |
राजगढ़ | 60.51 | 33.03 | 183 |
छिंदवाड़ा | 57.32 | 36.10 | 159 |
आगर मालवा | 51.18 | 32.80 | 156 |
बैतूल | 58.58 | 37.76 | 155 |
गुना | 53.82 | 34.72 | 155 |
विदिशा | 55.79 | 37.87 | 147 |
बुरहानपुर | 38.54 | 26.30 | 147 |
देवास | 48.07 | 32.91 | 146 |
नीमच | 41.14 | 28.50 | 144 |
रायसेन | 56.77 | 39.65 | 143 |
सीहोर | 55.28 | 39.21 | 141 |
सिवनी | 51.81 | 36.93 | 140 |
शाजापुर | 46.14 | 33.07 | 140 |
श्योपुरकलां | 33.86 | 24.84 | 136 |
नर्मदापुरम | 62.91 | 46.54 | 135 |
हरदा | 52.32 | 39.65 | 132 |
खंडवा | 35.31 | 28.15 | 125 |
मंदसौर | 37.83 | 30.63 | 124 |
सागर | 48.07 | 39.06 | 123 |
रतलाम | 41.10 | 33.54 | 123 |
उज्जैन | 38.74 | 32.40 | 120 |
नरसिंहपुर | 44.80 | 38.35 | 117 |
अनूपपुर | 41.69 | 35.94 | 116 |
इंदौर | 35.59 | 31.22 | 114 |
मंडला | 48.82 | 43.86 | 111 |
बड़वानी | 26.10 | 23.62 | 111 |
बालाघाट | 49.92 | 45.28 | 110 |
खरगोन | 27.56 | 25.55 | 108 |
शिवपुरी | 30.00 | 29.09 | 103 |
अशोकनगर | 38.19 | 38.31 | 100 |
निवाड़ी | 28.94 | 29.06 | 100 |
भिंड | 21.97 | 22.52 | 98 |
शहडोल | 35.00 | 36.06 | 97 |
उमरिया | 37.09 | 39.21 | 95 |
जबलपुर | 39.17 | 41.46 | 94 |
पन्ना | 37.24 | 40.00 | 93 |
मुरैना | 21.73 | 23.82 | 91 |
दमोह | 36.22 | 39.96 | 91 |
धार | 25.79 | 28.74 | 90 |
छतरपुर | 30.94 | 34.53 | 90 |
कटनी | 30.47 | 34.49 | 88 |
डिंडोरी | 38.03 | 43.58 | 87 |
सिंगरौली | 26.10 | 31.38 | 83 |
सतना | 28.74 | 34.69 | 83 |
ग्वालियर | 20.79 | 26.18 | 79 |
झाबुआ | 25.12 | 31.89 | 79 |
टीकमगढ़ | 26.50 | 33.66 | 79 |
अलीराजपुर | 22.99 | 31.14 | 74 |
रीवा | 24.57 | 35.75 | 69 |
सीधी | 25.35 | 37.64 | 67 |
दतिया | 18.03 | 27.40 | 66 |
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