घोड़े को काबू करने में एड़ी-चोटी का जोर…: 20 साल की विक्रम अवार्डी सुदीप्ति की घुड़सवार बनने की कहानी…

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देवेंद्र मीणा/इंदौर21 मिनट पहले

मैं उस समय कोई दस साल की थी, घोड़े पर बैठना मुझे अच्छा लगता था, फिर यह शौक बन गया, इसके बाद तो पापा ने मेरा हुनर पहचान लिया और मुझे राइडिंग शुरू करा दी। शुरुआत तो हॉबी के रूप में हुई फिर पापा ने मुझे मोटिवेट किया। धीरे-धीरे इंटरेस्ट बढ़ता गया। फिर मप्र की ओर से हॉर्स राइडिंग करने लगी। 2013 में कोलकाता में साल 2013 में मैंने अपना पहला नेशनल शो किया। तब मैंने ब्रॉन्ज मेडल हासिल किया। यहां से मेरी सक्सेस जर्नी स्टार्ट हुई। लेकिन ये एक नई शुरुआत थी, यहां से मुझे पता चला कि इस स्पोर्ट्स का भविष्य उज्ज्वल है और मुझे इसी में करियर बनाना चाहिए।

यहां हम बात कर रहे हैं विक्र अवार्ड प्राप्त घुड़सवार सुदीप्ति हजेला की। वे फ्रांस में रहकर हॉर्स राइडिंग सीख रही हैं। अभी 20 साल की हैं और 10 साल की थीं तब से ही सुदीप्ति ने इसे अपना शौक बना लिया था। बहरहाल सुदीप्ति ने अपनी सक्सेस स्टोरी और फ्यूचर प्लान के बारे में दैनिक भास्कर से खुलकर बातचीत की।

सुदीप्ति ने कहा पिछले एक डेढ़ साल से मैं फ्रांस में हूं। पिछली बार मैंने एशियन गेम का क्वालिफाई किया था लेकिन गेम कैंसल हो गए थे। अब अगले साल फिर से ट्रायल दूंगी। अभी फ्रांस में ही ट्रेनर के साथ आने वाले एशियन गेम के लिए ही तैयारी कर रही हूं। सुदीप्ति बताती हैं कि मेरे कुछ घोड़े मध्यप्रदेश सरकार के पास भी एमपी एकेडमी में रखे हुए हैं। सरकार के पास अभी मेरे 3 घोड़े है। फ्रांस में 1 घोड़ा है। मप्र में मेरे एक मित्र उन घोड़ों पर राइडिंग करते हैं।

सुदीप्ति के घुड़सवारी के टैलेंट को जानने से पहले जानिए उनकी प्रोफाइल

सुदीप्ति इंदौर में महालक्ष्मी नगर स्थित सन सिटी में रहती है। पिता मुकेश हजेला की एक आईटी कंपनी है। मां और बड़ी बहन विधि का स्कूल बुक्स के सिलेबस तैयार करने का बिजनेस है। डेली कॉलेज से सुदीप्ति की स्कूलिंग हुई है। पिछले कुछ सालों से अपनी घुड़सवारी की ट्रेनिंग के लिए सुदीप्ति फ्रांस में ही रह रही हैं। उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद सहित देश-विदेश की कई हस्तियां सम्मानित कर चुकी है।

फ्रांस में प्रैक्टिस करती सुदीप्ति।

फ्रांस में प्रैक्टिस करती सुदीप्ति।

ऐसे हुई घुड़सवारी की शुरुआत

पिता मुकेश हजेला बताते हैं कि सुदीप्ति को जानवरों से प्रेम है। छोटी थी जब शौक में घोड़े पर बैठ कर सवारी करती थी। उसे घोड़े पर बैठना पसंद था। लोग कहते थे कि लड़कियां घुड़सवारी कैसे करेगी। तब मेरा मानना था कि लड़की होकर भी घुड़सवारी की जा सकती है। एनसीसी डे पर परेड में सुदिप्ती ने इंदौर में ही घुड़सवारी देखी और फिर इसके बाद घुड़सवारी सीखने की शुरुआत हो गई।

बैंगलुरु-दिल्ली जाकर भी ट्रेनिंग ली

पिता मुकेश बताते हैं कि सुदीप्ति ने डेली कॉलेज में क्लास 6 में एडमिशन लिया था। लेकिन तब वहां घुड़सवारी बंद हो गई। फिर सुदिप्ती के लिए एक घोड़ा खरीदा था। एपीटीसी के निहार सिंह उसकी कोचिंग करते थे। रिंग रोड स्थित शांति निकेतन में सुदीप्ति घुड़सवारी सीखती थी। इंदौर में कोई व्यवस्था नहीं है। कई बार ट्रेनिंग के लिए बेंग्लुरु जाना पड़ता था। पढ़ाई की चल रही थी, उसे भी मैनेज करना था। शनिवार-रविवार को घर आती थी। दिल्ली जाकर भी ट्रेनिंग करते थे। पिता मुकेश बताते हैं कि सुदिप्ती के पास 52 नेशनल और 7 इंटरनेशनल मेडल हैं। अकेली फ्रांस में रहकर ट्रेनिंग कर रही है। बड़ी बहन विधि ने एमबीए किया है और विधि ने सुदीप्ति का काफी सपोर्ट किया। ट्रेनिंग के दौरान अलग-अलग शहरों में वह उसके साथ रही।

अपने घोड़े के साथ सुदीप्ति।

अपने घोड़े के साथ सुदीप्ति।

घुड़सवारी की विधा ड्रेसाज के बारे में जानिए

सुदीप्ति ने बताया कि घुड़सवारी में तीन मूव होते हैं। शो जंपिंग, इवेंटिंग और ड्रेसाज। मैं ड्रेसाज करती हूं। ड्रेसाज बेसिकली बहुत ही क्लासिकल फॉर्म ऑफ हॉर्स राइडिंग है। जिसमें मुझे और मेरे घोड़े के साथ बेस्ट परफॉर्म करना होता है। टेस्ट के प्रिंट आउट हमारे पास होते है। हमें उसको याद करके एक एरिना में परफॉर्म करना होता है। जजेस हमें 1 से लेकर 10 के बीच के नंबर देते हैं। जिसका हाईएस्ट परसेंटेज होता है वह विजेता होता है। एक डांस फॉर्म की तरह है। जिसमें घोड़े के साथ बंधकर एक ऐसा टेस्ट दिखाना है, जो एफर्टलेस लगे।

हॉर्स राइडिंग को करियर के रूप में चुनने वाले इंडिया में कम

सुदीप्ति का कहना है कि इंडिया में बड़े प्लेटफॉर्म पर अभी आया नहीं है, क्योंकि बच्चे अभी भी इस बारे में समझ रहे हैं लेकिन बाहर इसका बहुत ज्यादा चलन है। इंडिया के राइडर भी बाहर ही बेस्ड हो गए है, क्योंकि इंडिया में अभी कम ही लोग है जो हॉर्स राइडिंग को करियर के रूप में ले रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ सुदीप्ति।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ सुदीप्ति।

सिर्फ दोपहर तक घुड़सवारी फिर फिटनेस पर फोकस

सुदीप्ति ने बताया कि मैं अभी 20 साल की हूं। मैं 10 साल की हूं जब से हॉर्स राइडिंग कर रही हूं। हम लोग सुबह प्रैक्टिस स्टार्ट करते है तो लंच टाईम तक फ्री हो जाते हैं और फिर लंच के बाद शाम तक हमारा फिटनेस को लेकर वर्कआउट पर काम होता है। गर्मी में हम प्रैक्टिस जल्दी स्टार्ट करते हैं करीब 7 बजे और ठंड में 9 बजे का टाईम रहता है।

समझना पड़ता है घोड़े का मूड

चेलेजिंग तो काफी है। आप कुछ भी प्रिडिक्ट नहीं कर सकते हैं। जैसे आज हमारा मूड अच्छा है। कल हमारा मूड अच्छा नहीं है तो ऐसा घोड़े का मूड भी डिपेंड होता है। इंसान एक-दूसरे को बोलकर समझ लेते है लेकिन घोड़े को समझना अपने आप में ही एक बात है। एक तरह से आसान नहीं है लेकिन एक बार आप इसमें मास्टरी कर लेते है तो फिर इतना कठिन भी नहीं है। आज मैं जैसे अपने घोड़े को समझ पाती हूं। अपने बच्चे की तरह रखती हूं। मुझे पता होता है कि उसे क्या चाहिए और क्या नहीं। घोड़े के साथ एक बॉन्ड बनने में भी समय लगता है। जैसे एक बच्चे को डांटकर कुछ सीखाना और दूसरा वो खुद खुशी से आपके साथ आकर कुछ करने लगे इसमें अंतर होता है। वो खुशी से हमारे लिए करें ये महत्वपूर्ण है, क्योंकि हम 40 किलो के वो 1 हजार किलो का तो जंग में तो हम उससे जीत नहीं पाएंगे।

राइडिंग के दौरान सुदीप्ति।

राइडिंग के दौरान सुदीप्ति।

सबसे पुराने घोड़े का नाम क्रिस्पी

एमपी में जो सबसे पुराना घोड़ा है। उसका नाम क्रिस्पी है। उसके जो प्रीवियस ऑनर थे उन्होंने ही इसका नाम क्रिस्पी रखा था। क्रिस्पी के साथ मेरी करीब 5-6 साल पुरानी बॉन्डिंग है। फिलहाल में सबसे पुराना घोड़ा मेरे पास यही है। डेढ़ साल से मैं फ्रांस में ट्रेनिंग ले रही हूं। इसके पहले मैं लंदन में ट्रेनिंग ले रही थी। करीब दो-तीन साल वहां रही। 2013 से लेकर अभी तक जितनी भी गेम होते है ये में एमपी की तरफ से ही खेलती हूं।

अनगिनत कठिनाईयां है

सुदिप्ती का कहना है कि हर घुड़सवार के साथ सुबह उठ कर यही होता है कि हमने क्या अनोखा स्पोर्ट्स चुन लिया है, क्योंकि इसकी कठिनाईयां मैं गिनाना भी शुरू करूं तो अनगिनत है। चाहे वो घर से दूर रहना हो या ऐसी चीज के लिए जुट जाना जिसके बारे में आपको पता नहीं है कि इंडिया में कितना स्कॉप होगा। चाहे इंज्युअरी फिजिकल हो या मेंटल हो, मेरा मानना है कि वो हर दिन ही होता है और हमें उससे जूझना ही पड़ता है।

घोड़े को काबू में करती सुदीप्ति।

घोड़े को काबू में करती सुदीप्ति।

जब नेशनल के पहले हाथ की उंगली टूटी

सुदीप्ति ने बताया कि 2019 जनवरी में नेशनल कॉम्पिटिशन के तीन-चार दिन पहले मेरे सीधे हाथ की उंगली टूट गई थी और डॉक्टर ने कहा था कि मैं शो नहीं खेल पाऊंगी। साथ ही डॉक्टर ने कहा कि पूरे हाथ का प्लास्टर चढ़ेगा। अब प्लास्टर के साथ तो मैं राइडिंग कर नहीं पाती। इसके बाद मैंने तीन दिन प्लास्टर अवॉइड करके अपना गेम पूरा करके फिर अपनी हड्‌डी जुड़वाई थी।

खुद का बिजनेस भी करना है

सुदीप्ति कहती हैं कि इंडिया के लिए खेलना है तो वो अपने आप में बड़ी रिस्पॉन्सिबलिटी है। फ्रांस में ट्रेनिंग बेटर है। मेरा लाईफ में 100 परसेंट गोल ये नहीं रहा है कि मैं राइडिंग ही करूं और बाकि चीजे त्याग दूं। मुझे अपनी बाकि चीजे भी देखनी है। चाहे घर हो, पढ़ाई हो या अपना खुद का बिजनेस खड़ा करना हो। वो सारी चीजे सेकंडरी है, जब तक ओलंपिक तक नहीं पहुंच जाते तब तक हॉर्स राइडिंग छोड़ने को लेकर तो कुछ सोचा नहीं है।

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सुदीप्ति को किया सम्मानित।

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सुदीप्ति को किया सम्मानित।

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