MP में गधों का अनोखा मेला: सबसे महंगी बोली सलमान-शाहरुख की, रणबीर-ऋतिक सबसे मेहनती

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विष्णुकांत त्रिपाठी, सतना25 मिनट पहले
मध्यप्रदेश में गधों का अनूठा मेला लगा है। सतना जिले के चित्रकूट में मंदाकिनी तट पर लगे दो दिनी मेले का आज दूसरा दिन है। पहले दिन यहां पर करीब सवा करोड़ रुपए का कारोबार हुआ। यहां पहुंचे गधे और खच्चर अपने आप में खास हैं। इनके मालिकों ने कद काठी, रंग-रूप और व्यवहार के आधार पर इनके नाम रखे हैं। कोई शाहरुख है, तो कोई अक्षय। किसी को सलमान कहते हैं, तो कोई कटरीना। इस दौरान खरीदार उनका मुआयना कर रंग-रूप और कद काठी के आधार पर मोल-भाव करते हैं। इस मेले में यूपी और एमपी के पशुपालक अपने-अपने गधे बिक्री के लिए लेकर पहुंचे हैं।
मझगवां के एसडीएम पीएस त्रिपाठी ने बताया कि यह मेला मंगलवार से शुरू हुआ है। इस मेले में लगभग 5 हजार गधे लाए गए हैं। पहले दिन यहां पर सवा करोड़ का कारोबार हुआ है। यहां गधों की एंट्री फीस 300 रुपए है। यह ऑफिशियल गधा मेला है। जिसके आयोजन के लिए शासन से आदेश जारी होता है। यहां दो दिन में लगभग 3 करोड़ रुपए का कारोबार होता है।
फिल्मी सितारों के नाम पर गधे, सलमान सबसे महंगा
गधों और खच्चरों की अच्छी कीमत वसूलने के लिए इनके मालिक इनका नाम फिल्मी सितारों के नाम पर रखते हैं। नाम के हिसाब से उनकी कीमत तय की जाती है। इस बार 2 लाख रुपए की सबसे महंगी बोली सलमान की लगी, तो शाहरुख 90 हजार में बिका। करिश्मा नाम की गधी 20 हजार में बिकी, जबकि सैफ 12 हजार में खरीदा गया। रणबीर 40 हजार, तो ऋतिक नाम का गधा 70 हजार रुपए में बिका। ज्यादा वजन ढोने की क्षमता वाले गधे का नाम रणबीर और ऋतिक रखा गया है।
कोराना के चलते 2 साल बाद लगा मेला
दिवाली के बाद लगने वाला ये मेला कोरोना के कारण इस बार दो साल बाद लगा है। वैसे गधों के इस अनोखे मेले में हर बार करीब 6 से 7 हजार गधे आते थे। इस बार इसकी संख्या घटी है। इस बार के मेले में करीब 5 हजार गधे ही पहुंचे हैं।

पूरे एमपी और यूपी से गधे बेचने के लिए चित्रकूट में लाए जाते हैं। यहां गधों का मेला दो दिन तक लगता है। इस साल भी सैकड़ों की तादाद में गधे और खच्चर यहां लाए गए हैं।
औरंगजेब ने लगवाया पहला मेला
मझगवां के एसडीएम पीएस त्रिपाठी बताते हैं कि चित्रकूट में मंदाकिनी तट पर लगने वाले गधों के इस ऐतिहासिक मेले के आयोजन के संबंध में कोई ऐतिहासिक दस्तावेज तो सामने नहीं आया है लेकिन मेले में आने वाले व्यापारी और यहां के लोग पीढ़ियों से यह मेला देखते आ रहे हैं। उन्हें उनके पूर्वजों से ही यह पता चलता रहा है कि मेले की शुरुआत मुगल शासक औरंगजेब ने कराई थी। इस मेले में एमपी,यूपी,बिहार और छत्तीसगढ़ के व्यापारी गधों और खच्चरों की खरीद-बिक्री करने तभी से पहुंचते रहे हैं। इनका व्यापार करने वाले लोग इस दिन के लिए साल भर तैयारी करते हैं, और अपने गधों का प्रदर्शन इस मेले में करने के लिहाज से उनका पालन-पोषण करते हैं।
पहले की तुलना में कम हुई गधों की बिक्री
गधों की बिक्री में पूर्व के वर्षों की अपेक्षा बेहद कमी आई है, बावजूद इसके परंपरा का पालन करने कारोबारी चित्रकूट पहुंचते हैं। उनका कहना है कि धंधा भले ही कम होता है लेकिन भगवान कामतानाथ के दर्शन, कामदगिरि की परिक्रमा और मंदाकिनी में दीपदान का अवसर भी मिल जाता है, और पीढ़ियों की परंपरा का निर्वाह भी हो जाता है। इसलिए वे मेले में शामिल होने हर वर्ष आते हैं।

चित्रकूट में लगने वाले मेले में गधों का कारोबार लगभग 3 करोड़ का होता है। यहां गधों की कद-काठी के हिसाब से कीमत होती है। इनके नाम भी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र होते हैं।
मेले के लिए जमीन उपलब्ध कराती है नगर पंचायत
मेले का आयोजन एमपी के सतना जिले के हिस्से में आने वाले चित्रकूट में किया जाता है। नगर पंचायत चित्रकूट इसके लिए स्थान उपलब्ध कराती है। गधे लेकर आने वाले कारोबारियों से टैक्स भी वसूला जाता है। यहां जिस स्थान पर यह ऐतिहासिक मेला सजता है, वह अतिक्रमण की चपेट में है। नगर पंचायत चित्रकूट टैक्स तो वसूलती है, लेकिन तमाम तैयारियों के बीच इस मेले की व्यवस्थाओं की अनदेखी की जाती है। यहां पीने के पानी और शौचालय तक का प्रबंध नहीं किया जाता है।
बिहार के खरीदार देते हैं अच्छी कीमत
इस बार यहां गधों के मुकाबले खच्चर भी बड़ी संख्या में लाए गए हैं। खच्चरों को गधे और घोड़ी की क्रॉस ब्रीड माना जाता है। यहां आने वाले व्यापारियों की मानें तो बिहार के खरीदार अच्छी कीमत देते हैं।
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