रीवा में राजसी परंपरा के साथ मनाया गया दशहरा: गद्दी पूजन कर छोड़े गए नीलकंठ, किला परिसर से निकला चल समारोह, एनएससी ग्राउंड में संस्कृति समारोह के बाद हुआ रावण दहन

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रीवा2 घंटे पहले
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रीवा शहर में राजसी परंपरा के साथ दशहरे का पर्व मनाया गया। बताया गया कि बघेल साम्राज्य के 34वें महाराजा एवं पूर्व मंत्री पुष्पराज सिंह ने बुधवार की शाम 5 बजे राजसी अंदाज में गद्दी पूजन किए। किला परिसर में महा राजाधिराज को गद्दी पर बैठाते हुए खुद महाराजा अपने परिवार के साथ जमीन पर बैठकर पूजा-अर्चना की। इसके पश्चात नीलकंठ को आकाश में उड़ाकर पान खिलाने की परंपरा का निर्वहन किया गया। इस अवसर पर युवराज एवं सिरमौर विधायक दिव्यराज सिंह सहित राजघराने समस्त सदस्य और आम जनमानस उपस्थित रहा।
रीवा राजघराने में राम की जगह लक्ष्मण की होती है पूजा
बाघेल राजवंश ने सन 1617 में रीवा को राजधानी बनाई। तत्कालीन महाराजा विक्रमादित्य सिंह जूदेव ने राजसिंहासन पर स्वयं बैठने के बजाय भगवान श्रीराम को राजाधिराज के रूप में स्थापित किया। राजगद्दी श्रीराम के नाम कर वे प्रशासक के रूप में काम करते रहे। राजघराने से जुड़े लोगों ने बताया कि विंध्य का हिस्सा श्रीराम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को सौंपा था। ऐसे में लक्ष्मण भी राजसिंहासन पर नहीं बैठे। वह भी बतौर प्रशासक राज्य का संचालन करते रहे। तब से यह प्रक्रिया लगातार चल रही है।
एनएससी ग्राउंड में मुख्य समारोह
दशहरे का चल समारोह किला परिसर से निकाला गया। बताया गया कि एक रथ में भगवान श्रीराम, लक्ष्मण व सीता मैया विराजमान होकर निकली। दूसरे रथ में महा राजाधिराज की गद्दी निकली। बल्कि तीसरे रथ में बघेल साम्राज्य के 34वें महाराजा पुष्पराज सिंह सवार रहे।
चल समारोह शहर के मुख्य मार्गों से भ्रमण करता हुआ टीआरएस कॉलेज के बगल में स्थित एनएससी ग्राउंड पहुंचा। जहां विभिन्न प्रकार के संस्कृति कार्यक्रम व आरकेस्ट्रा का आयोजन किया गया। इसके बाद भगवान श्रीराम व रावण का युद्ध हुआ। युद्ध के दौरान भगवान राम ने धनुष से एक बाण मारा। जिसके बाद रावण का अंत हो गया। वहीं रावण रूपी पुतला जलने लगा।
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