3 हजार करोड़ के ई-टेंडर घोटाले का कोई दोषी नहीं: विशेष अदालत ने कहा- सरकारी पक्ष कोई आरोप साबित नहीं कर पाया, सभी छह आरोपी बरी

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- The Special Court Said That The Government Side Could Not Prove Any Allegation, All The Six Accused Were Acquitted.
भोपालएक घंटा पहले
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राज्य की राजनीति में भूचाल लाने वाले बहुचर्चित ई-टेंडर घोटाले में मप्र सरकार लोकायुक्त की विशेष अदालत में यह साबित करने में नाकाम रही कि आखिर टेंडर में छेड़छाड़ किसने की। इसके चलते कोर्ट के स्पेशल जज संदीप कुमार श्रीवास्तव ने सभी 6 आरोपियों को बरी कर दिया। यह मामला 2018 में उस समय उजागर हुआ था, जब तात्कालीन भाजपा सरकार चुनाव में जा रही थी। चुनाव में यह मामला जोर शोर से उछला। इसके बाद कांग्रेस सरकार सत्ता में आई। उसने इस मामले की गहराई से जांच कराने की बात कही। लेकिन लंबी जांच के बाद भी कोई खास प्रगति नहीं हो सकी।
इस मामले में इस मामले में मध्य प्रदेश इलेक्ट्रानिक विकास निगम के ओएसडी नंद किशोर ब्रह्मे, ओस्मो आईटी सॉल्यूशन के डायरेक्टर वरुण चतुर्वेदी, विनय चौधरी, सुमित गोवलकर, एंटारेस कंपनी के डायरेक्टर मनोहर एमएन और भोपाल के व्यवसायी मनीष खरे आरोपी थे। ईओडब्ल्यू ने आरोपियों के खिलाफ कोर्ट में चालान पेश किया था। ब्रह्मे की तरफ से कोर्ट में पेश हुए वकील प्रशांत हरने ने बताया कि 35 गवाहों की सुनवाई के बाद कोर्ट ने सभी 6 आरोपियों को बरी कर दिया। कोर्ट ने अपना निर्णय सुनाते हुए कहा कि सरकारी पक्ष कोई आरोप साबित नहीं कर सका।
मैं तो गड़बड़ी सामने लाया, मुझे ही आरोपी बनाया
एमपीएसआईडीसी के ओएसडी और मामले के आरोपी नंदकिशोर ब्रम्हे ने भास्कर को बताया कि वे इस मामले में व्हिसल ब्लोअर थे। सबसे पहले ई टेंडर में हो रही छेड़छाड़ को वरिष्ठ अधिकारियों के संज्ञान में लेकर आए थे। लेकिन ईओडब्ल्यू ने मुझे ही मामले का आरोपी बना दिया।
9 टेंडर से छेड़छाड़ की गई थी
ई-टेंडर घोटाला 2018 में हुआ। एफआईआर 2019 में दर्ज की गई। प्रारंभिक चरण में इसे करीब 3 हजार करोड़ का घोटाला माना गया। जांच एजेंसी ईओडब्ल्यू का मानना था कि प्रिक्योरमेंट पोर्टल में छेड़छाड़ कर कुल 9 टेंडर से छेड़छाड़ की गई। इसमें जल निगम के 3, पीडब्ल्यूडी के 2, पीएचई के 2, एमपीआरडीसी का एक और पीडब्ल्यूडी का एक टेंडर शामिल था। इस मामले में ईओडब्ल्यू ने हार्डडिस्क के एनालिसिस रिपोर्ट के बाद एफआईआर दर्ज की थी। इसके बाद मामले की सुनवाई कोर्ट में चल रही थी।
3 टेंडरों के रेट बदल दिए थे
लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग (पीएचई) के जल निगम के टेंडरों में गड़बड़ी से घोटाले का खुलासा हुआ। ई-प्रोक्योंरमेंट पोर्टल में टेम्परिंग कर करोड़ों रुपए के विभाग के तीन टेंडरों के रेट बदल दिए थे। यानी ई-पोर्टल में टेम्परिंग से दरें संशोधित कर टेंडर प्रक्रिया में बाहर होने वाली कंपनियों को टेंडर दिलवा दिया। मामला खुला तो तत्कालीन सरकार ने तीनों टेंडर निरस्त कर दिए। फिर लोक निर्माण विभाग, मध्य प्रदेश रोड डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (एमपीआरडीसी), जल संसाधन विभाग और पीआईयू के टेंडरों में भी गड़बड़ी पकड़ी गई थी।
कोर्ट ने माना घोटाला हुआ…
“जांच एजेंसी ने अपना काम ईमानदारी से नहीं किया। उस पर बड़े ब्यूरोक्रेट्स और नेताओं को बचाने का दबाव था। वास्तविक आरोपी वही थे, लेकिन जो आरोपी बताकर पकड़े गए, उनके खिलाफ कोई आरोप साबित नहीं हो सका। खुद कोर्ट ने भी माना है कि ई-टेंडर घोटाला हुआ है, लेकिन यह किसने किया यह साबित करने में सरकार नाकाम रही।” – अजय गुप्ता, वरिष्ठ अधिकवक्ता, भोपाल
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