प्रभारी मंत्री का लैटर, पैरोकार खंंडवा कलेक्टर: नगर निगम के बाबू का रिलीव न होने का मामला, मंत्री बोलीं- सब फर्जीवाड़ा

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खंडवा28 मिनट पहले

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खंडवा की नगर निगम में पदस्थ एक बाबू को ट्रांसफर के डेढ़ साल बाद भी रिलीव नहीं किया गया। बाबू ने सरकार को हाशिए पर रखकर ट्रांसफर आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दे डाली। कोर्ट ने 7 दिन में निगमायुक्त से जवाब मांगा था, लेकिन आज दिनांक तक जवाब नहीं दिया गया। बाबू शाहीन खान के पास नगर निगम सचिव पद का जिम्मा है।

खास बात यह है कि इसी महीने यह मामला जिले की प्रभारी मंत्री उषा ठाकुर के संज्ञान में आया। उन्होंने कलेक्टर अनूपसिंह से बात करके निगमायुक्त से रिलीव न करने के संबंध में जवाब मांगा। तत्कालीन नगर निगम कमिश्नर सविता प्रधान ने हाईकोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए रिलीव न किए जाना बताया। जवाब मिलते ही प्रभारी मंत्री उषा ठाकुर ने अपने स्तर से पड़ताल की तो पता चला कि पूरा प्रकरण फर्जी है। न तो हाईकाेर्ट ने बाबू शाहीन खान के ट्रांसफर पर रोक लगाई और न ही बाबू वर्ग के कर्मचारी को यह अधिकार है कि उसका ट्रांसफर नगर निगम से नगर निगम में ही होना चाहिए।

दरअसल, शाहीन खान का तबादला 19 फरवरी 2021 को देवास जिले की खातेगांंव नगर परिषद में हो गया था। शाहीन खान ने इस ट्रांसफर आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। वजह बताई थी कि एक नगर निगम के अधिकारी का निचले स्तर की निकाय यानी नगर परिषद में स्थानांतरण करके पदस्थी नहीं दी जा सकती। जबकि इस मामले में जानकारों का कहना है कि, शाहीन खान नगर निगम में सहायक वर्ग- 2 के पद पर है। बाबू का स्थानांतरण कहीं पर भी किया जा सकता है।

कार्रवाई के लिए कलेक्टर को अवगत करा चुकी हूं

प्रभारी मंत्री उषा ठाकुर का कहना है कि, बाबू शाहीन खान के मामले में निगमायुक्त से जवाब मांगा गया था। उनके द्वारा गुमराह किया गया है। बाबू को रिलीव किए जाने की बात कलेक्टर से भी कह चुकी हूं। खंडवा के कलेक्टर से अभी बात करती हूं कि देरी की क्या वजह है।

इधर, भाजपा जिलाध्यक्ष भी उठा चुके मामला, ठंडे पड़ गए तेवर

भाजपा जिलाध्यक्ष सेवादास पटेल ने भी जनवरी 2022 में मुख्यमंंत्री को पत्र लिखकर भृत्य से बाबू बने और अधिकारी का पद संभाल रहे शाहीन खान को हटाने की मांग की थी। लेकिन थोड़े दिन बाद जिलाध्यक्ष पटेल के तेवर भी ठंडे हो गए। बताया जाता है कि, उनके एक राजनीतिक मित्र ने शाहीन खान से सामंजस्य बैठाया था। उस समय चर्चा यह थी कि जिलाध्यक्ष के ड्राइवर को नगर निगम में नौकरी नहीं दी गई इसलिए उन्होंने शिकायत कर दी। जिलाध्यक्ष का तर्क था कि विधायक के घर पर कामकाज करने वाले नौकरों की तनख्वाह नगर निगम से निकल सकती है ताे मेरे ड्राइवर की क्याें नहीं। पढ़िए… पूरा मामला

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