MP में यहां दिवाली पर नहीं फूटा एक भी पटाखा: देश के टॉप-10 प्रदूषित शहरों में सिंगरौली; पानी तेजाब जैसा, गल जाती हैं हड्डियां

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सिंगरौलीएक घंटा पहले
दिवाली पर पूरे मध्यप्रदेश में जमकर आतिशबाजी हुई। लेकिन एक जिला ऐसा भी है जहां त्योहार पर एक भी पटाखा नहीं फूटा। इसका कारण है यहां का प्रदूषण। कलेक्टर ने हाईकोर्ट के आदेश पर यहां पटाखों पर बैन लगा रखा है। दिवाली पर लोगों ने इसका पालन भी किया।
दैनिक भास्कर की टीम ने प्रदूषण से कराहते सिंगरौली क्षेत्र में पड़ताल की। यहां औद्योगिक क्षेत्र के लगभग 50 किलोमीटर दायरे में शायद ही कोई गांव, कोई इलाका ऐसा हो, जहां बड़ी संख्या में बच्चे और बड़े गलियों में लाठियों के सहारे चलते और रास्तों पर लुढ़कते न दिख जाएं। डॉक्टरों की मानें तो यहां के पानी में फ्लोराइड है, जो सीधे शरीर की हड्डियों पर वार करता है।
पढ़िए, ग्राउंड रिपोर्ट…
प्रदेश की ऊर्जाधानी के नाम से विख्यात सिंगरौली जिला देश में प्रदूषण के मामले में टॉप-10 सूची में शामिल है। इस इलाके का जिक्र देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी होता है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने एक बार इस इलाके को ‘भारत का स्विटजरलैंड’ तक कह डाला था। लेकिन अब खनिज संपदा के लिए लगातार हो रहे प्राकृतिक दोहन से वायुमंडल का भी संतुलन बिगड़ चुका है। हालात यह बन गए हैं कि इस इलाके में रहना भी मौत के साए में रहने जैसा ही है।

सिंगरौली देश में प्रदूषण के मामले में टॉप-10 सूची में शामिल है। यहां लगातार हो रहे प्राकृतिक दोहन से वायुमंडल का भी संतुलन बिगड़ चुका है।
पांच लोगों के परिवार में चार लोग अपाहिज
भास्कर की टीम कोयला खदानों की कालिख और बिजली कारखानों की राख में डूबी सिंगरौली जिले के छोर चिलकटांड़ गांव की एक ऐसी ही अंधेरी बस्ती में पहुंची। यहां 50 साल की सुनीता पिछले 20 साल में शायद ही कभी अपने घर से बाहर निकली हों। वजह ये कि सुनीता हाथ-पैर टेढ़े हैं, यहीं नहीं उनके पांच लोगों के परिवार में चार लोग अपाहिज हैं।
सुनीता बताती हैं कि जब उनकी शादी हुई थी तो वो सुनहरे सपने लेकर यहां आई थीं, लेकिन 40 की उम्र आते-आते हाथ-पैर बेकार हो गए। पिछले 20 साल से मैं घिसटकर ही एक जगह से दूसरी जगह जाती हूं। बेटा हुआ तो आस बंधी कि बुढ़ापे का सहारा बनेगा, लेकिन उसके हाथ-पैर तो बचपन में ही बेकार हो गए। किसी तरह उसकी शादी हुई, लेकिन अब पोते के पैर भी टेढ़े होने लगे हैं।
फ्लोराइड इसकी मुख्य वजह
भास्कर टीम ने विशेषज्ञ से बात की तो उन्होंने कहा कि इस बीमारी की वजह है पानी में मौजूद फ्लोराइड। इसकी वजह से लोगों की हड्डियां कमजोर हो जाती है। इस गांव के इलाके में सुनीता जैसे एक नहीं बल्कि गांव की आधी आबादी प्रदूषण की दंश से विकलांगता, नपुंसकता जैसी कई बीमारियों से ग्रसित है।
लोगों के लिए लड़ने वाले भी हुए शिकार
जगत नारायण विश्वकर्मा अपनी जमीन और लोगों को बीमारियों से बचाने के लिए प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे, लेकिन वे अब खुद इसकी चपेट में आ गए हैं। वे बताते हैं, मेरी हड्डियां गल रही हैं। अब मैं बैसाखी के सहारे ही चल पाता हूं। डॉक्टर को दिखाया तो पता चला कि मेरे पानी में फ्लोराइड की मात्रा बहुत ज्यादा है, जिस कारण मुझे फ्लोरोसिस नामक रोग हो गया है। हमारे जैसे यहां हजारों लोग मिलेंगे, जो जवानी में बूढ़े हो जा रहे हैं। मेरे बेटे की उम्र मात्र पांच साल है, उसे अस्थमा है। डॉक्टर कहते हैं, आप जिस जगह रह रहे हैं वहां के ज्यादातर बच्चों को ऐसी बीमारियां हैं। हम शाम होते ही घरों के दरवाजे बंद कर लेते हैं। छतों पर कपड़े नहीं सुखाते, क्योंकि वे काले पड़ जाते हैं।
सिंगरौली जिले के सीमावर्ती इलाके के चिलकटांड़ गांव के रहने वाले हीरा लाल (40 वर्ष), इस जगह पर रहने के नुकसान बताते हैं। सुनीता हो या फिर हीरालाल सब की यही कहानी है, ये लोग प्रदूषण की दंश से कई बीमारियों की चपेट में है।

जगत नारायण विश्वकर्मा। चिलकटांड़ गांव में रहते हैं। इस गांव के पानी में फ्लोराइड की मात्रा ज्यादा होने से यहां के लोगों की हड्डियां गल जाती हैं। जगत नारायण के पैरों की हड्डियां भी धीरे-धीरे गल रही हैं, वे लकड़ी के सहारे से चल पाते हैं।
वायु प्रदूषण से क्या है इसका कनेक्शन
फरवरी 2021 में अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के स्वच्छ कोयला केंद्र (IEACCC) के एक अध्ययन के अनुसार भारत में कोयला दहन अत्यधिक वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है। बिना प्रदूषण नियंत्रण तकनीक वाले कोयला आधारित ताप विद्युत स्टेशन देश में आधे सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), कुल नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) के 30%, अन्य मानव-निर्मित उत्सर्जन के बीच कुल पार्टिकुलेट मैटर (PM) के लगभग 20% के लिए जिम्मेदार हैं।
ताप विद्युत स्टेशनों में अप्रत्याशित कोयला दहन और नवीनतम ‘कार्बन कैप्चर स्टोरेज’ (carbon capture storage) तकनीक के एग्जीक्यूशन में देरी, भारत में वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं। वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार परिवहन और अन्य औद्योगिक क्षेत्र, कोयला आधारित ताप विद्युत स्टेशनों के बाद दूसरे स्थान पर हैं।
प्रदूषण के मामले में क्या है एनजीटी की कोर कमेटी की रिपोर्ट
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के निर्देश पर गठित विशेषज्ञ कोर कमेटी की रिपोर्ट भी यहां की मुसीबतों का कुछ ऐसा ही उल्लेख करती है। कोर कमेटी के आंकड़े के अनुसार, इस क्षेत्र में 350 से अधिक उद्योग संचालित है। इसमें 10 थर्मल पावर प्लांट, 16 कोल माइन्स, 10 केमिकल कारखाने, 8 एक्सप्लोसिव, 309 क्रशर प्लांट और स्टील, सीमेंट एवं एल्मुनियम का एक-एक उद्योग है।
इससे करीब 45 लाख टन कचरा हर साल उत्सर्जित होता है। इसमें लगभग 35 लाख टन तो सिर्फ कोयले की राख है। 21 हजार मेगावाट बिजली उत्पादन करने के लिए साल भर में 10.3 करोड़ टन कोयले की जरूरत होती है। इतनी बड़ी मात्रा में कोयले की खपत से हर साल 3.5 करोड़ टन फ्लाई ऐश (राख) पैदा होता है, जिसका सही तरीके से निस्तारण नहीं हो पा रहा है। इसके अलावा 10 लाख टन से अधिक लाल कीचड़ (रेड मड) और अन्य रसायन उत्सर्जित होते हैं। इनका निपटारा के लिए उचित प्रबंध नहीं होने के कारण 20 लाख टन से अधिक कचरा सिंगरौली क्षेत्र में खुले में फेंका जा रहा है।
मानव ही नहीं, पशु-पक्षियों के लिए भी हानिकारक
कमेटी रिपोर्ट के अनुसार, करीब 17 हजार टन सल्फर डाइआकसाइड और नाइट्रोजन आक्साइड जैसी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक गैस हवा में तैरने के साथ ही हर साल 8.4 हजार टन यानी 8.4 लीटर मरकरी भी पावर प्लांट से निकल रहा है। जो इस इलाके की जल संरचनाओं में समाहित हो रही है।
मरकरी की इतने बड़े पैमाने पर मौजूदगी मानव भर ही नहीं बल्कि पशु-पक्षियों के लिए भी अत्यधिक खतरनाक बताया है। राख से खाक होते जिंदगी को बचाने के लिए कमेटी ने कुछ सुझाव भी दिए हैं। पीने के पानी का किसी भी तरह से उद्योगों में इस्तेमाल नहीं हो, बांध के समीप सभी राखड़ बांध हटाया जाए, कोयले की ढुलाई किसी भी स्थिति में सड़क मार्ग से नहीं हो।
सिंगरौली और सोनभद्र जिला निकाय वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाए, वायु प्रदूषण को कम करने के लिए एंवियेंट क्वालिटी सिस्टम लगातार सक्रिय रहने जैसी महत्वपूर्ण सुझाव शामिल है। लेकिन बीते पांच सालों में इस सुझावों पर अमल हुआ होता तो राखड़ बांध फूटने जैसी हादसा से बचा जा सकता था।

सिंगरौली में रोजाना बड़े वाहनों में कोयला और अन्य चीजों का परिवहन होता है। यहां का प्राकृतिक सौंदर्य लगभग खत्म हो चुका है। कई इलाके तो ऐसे हैं जहां सांस लेना भी मुश्किल है।
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