MP में यहां दिवाली पर नहीं फूटा एक भी पटाखा: देश के टॉप-10 प्रदूषित शहरों में सिंगरौली

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- The Echo Of Firecrackers Did Not Resonate In Singrauli District, Generations Are Being Ruined Due To Pollution Here
सिंगरौली7 घंटे पहले
दिवाली पर पूरे मध्यप्रदेश में जमकर आतिशबाजी हुई। लेकिन एक जिला ऐसा भी जहां त्योहार पर एक भी पटाखा नहीं फूटा। इसका कारण है यहां का प्रदूषण। कलेक्टर ने हाईकोर्ट के आदेश पर यहां पटाखों पर बैन लगा रखा है। दिवाली पर लोगों ने इसका पालन भी किया।
देश में प्रदूषण के मामले में टॉप-10 सूची में सिंगरौली
प्रदेश की उर्जाधानी के नाम से विख्यात सिंगरौली जिला देश में प्रदूषण के मामले में टॉप-10 सूची में शामिल है। इस इलाके का जिक्र देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी होता है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने एक बार इस इलाके को ‘भारत का स्विटजरलैंड’ तक कह डाला था। लेकिन अब खनिज संपदा के लिए लगातार हो रहे प्राकृतिक दोहन से वायुमंडल का भी संतुलन बिगड़ चुका है। हालात यह बन गए है कि इस इलाके में रहना भी मौत के साये में रहने जैसा ही है।

सिंगरौली देश में प्रदूषण के मामले में टॉप-10 सूची में शामिल है। यहां लगातार हो रहे प्राकृतिक दोहन से वायुमंडल का भी संतुलन बिगड़ चुका है।
फ्लोराइड इसकी मुख्य वजह
भास्कर टीम ने विशेषज्ञ से बात की तो उन्होंने कहा कि इस बीमारी की वजह है पानी में मौजूद फ्लोराइड। इसकी वजह से लोगों की हड्डियां कमजोर हो जाती है। इस गांव के इलाके में सुनीता जैसे एक नहीं बल्कि गांव की आधी आबादी प्रदूषण की दंश से विकलांगता, नपुंसकता, जैसी कई बीमारियों से ग्रसित है।
लोगों के लिए लड़ने वाले भी हुए शिकार
जगत नारायण विश्वकर्मा अपनी जमीन और लोगों को बीमारियों से बचाने के लिए प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे, लेकिन वे अब खुद इसकी चपेट में आ गए हैं। वे बताते हैं, ‘मेरी हड्डियां गल रही हैं। अब मैं बैसाखी के सहारे ही चल पाता हूं। डॉक्टर को दिखाया तो पता चला कि मेरे पानी में फ्लोराइड की मात्रा बहुत ज्यादा है, जिस कारण मुझे फ्लोरोसिस नामक रोग हो गया है। हमारे जैसे यहां हजारों लोग मिलेंगे, जो जवानी में बूढ़े हो जा रहे हैं।
मेरे बेटे की उम्र मात्र पांच साल है, उसे अस्थमा है। डॉक्टर कहते हैं, आप जिस जगह रह रहे हैं वहां के ज्यादातर बच्चों को ऐसी बीमारियां हैं। हम शाम होते ही घरों के दरवाजे बंद कर लेते हैं। छतों पर कपड़े नहीं सुखाते क्योंकि वे काले पड़ जाते हैं, सिंगरौली जिले के सीमावर्ती इलाके के चिलकाटाड़ गांव के रहने वाले हीरा लाल (40 वर्ष), इस जगह पर रहने के नुकसान बताते हैं। सुनीता हो या फिर हीरालाल सब की यही कहानी है, ये लोग प्रदूषण की दंश से कई बीमारियों की चपेट में है।
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