MP के बीन्स की सप्लाई अरब देशों तक: दोस्त की सलाह पर शुरू की खेती, अब हर साल कमा रहे 12 लाख

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बैतूलएक घंटा पहले

बीन्स ने एक किसान की किस्मत बदल दी। दोस्त की सलाह पर परंपरागत खेती के साथ बीन्स उगाना शुरू किया। उनके खेत की बीन्स की सप्लाई बैतूल, नागपुर और मुंबई की जाती है। मुंबई के रास्ते अरब देशों तक सप्लाई की जा रही है। अब 12 लाख रुपए हर साल कमा रहे हैं। जानते हैं कैसे शुरू की खेती, इससे होने वाले फायदे भी…

बैतूल के नवनीत वर्मा। परिवार लंबे समय से परंपरागत खेती करता रहा है। पहले मक्का, गेहूं, सोयाबीन, गन्ना, मूंग और अरहर की खेती करते थे, लेकिन इन फसलों की लागत और मुनाफे का अंतर कम होता गया। ऐसे में जरूरी हो गया था कि खेती के तरीकों में बदलाव करें या खेती करना छोड़ दूसरा ऑप्शन अपनाएं। नवनीत ने परंपरागत के साथ वैकल्पिक खेती शुरू की। 10 एकड़ खेत के छोटे से हिस्से में सब्जियां उगाना शुरू कर दिया।

इस दौरान खेत में स्ट्राबैरी, बेर, मौसंबी और मुनगा की खेती करने लगे। इसमें भी उम्मीद के मुताबिक फायदा नहीं दिखा। उनके किसी मित्र ने बीन्स की खेती करने की सलाह दी। कम लागत में अधिक मुनाफा कमाने के लिए एग्रीकल्चर में ग्रेजुएट नवनीत वर्मा ने बीन्स की खेती शुरू कर दी। लगातार तीसरे साल मुनाफा कमाने लगे। पुराने कर्ज को भी चुका दिए। नवनीत कहते हैं कि बीन्स 52 दिन में उपज देने लगती है। एक एकड़ में बीन्स की फसल लगाने पर छह महीने में 6 से 7 लाख रुपए का फायदा मिल जाता है। शेड की वजह से कीटनाशक का खर्च भी बच जाता है।

शेड नेट में लगा रहे पोल बीन्स
नवनीत कहते हैं कि सरकार की योजना के तहत एक एकड़ क्षेत्र में शेड नेट तैयार कराया है। 22 लाख की लागत के इस शेड में पहले टमाटर, गोभी, ककड़ी लगाते थे, लेकिन अब बीन्स की खेती कर रहे हैं। अब तक यही समझा जाता था कि यह फसल परागण (पॉलिनेटेड) के बिना नहीं होती यानि खुले वातावरण में ही होती है। हमने इसे शेड में लगाया। तीन साल से बीन्स उपजा रहे हैं। इसकी फसलों में 80 % जैविक खाद और 20 % रसायनिक खाद का इस्तेमाल करते हैं। जैविक खाद के उपयोग से हानिकारक रसायन से बचाव, जैव विविधता का संरक्षण, जमीन को बंजर होने से बचाव और भूमि की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती है। स्वास्थ्य लाभ कैंसर और अन्य बीमारियों का खतरा कम हो जाता है। फसल और सब्जियों का उत्पादन भी बढ़ता है।

शेड नेट के अंदर बीन्स के बीज की बुवाई करते हैं। जिस मिट्‌टी में बीज रोपते हैं, उसे प्लास्टिक से ढंक दिया जाता है। ऐसा मिट्‌टी के तापमान को बनाए रखने के लिए करते हैं।

शेड नेट के अंदर बीन्स के बीज की बुवाई करते हैं। जिस मिट्‌टी में बीज रोपते हैं, उसे प्लास्टिक से ढंक दिया जाता है। ऐसा मिट्‌टी के तापमान को बनाए रखने के लिए करते हैं।

4 किलो बीज में 18 से 20 टन की उपज

नवनीत ने बताया कि शेड नेट में सेल्फ पॉलिनेटेड (स्व-परागण) फसलें ही लगाई जाती रही हैं। बीन्स का बीज महज 2200 रुपए किलो में मिल जाता है। शेड में सिर्फ चार किलो बुवाई होती है। 52 दिन में उपज आना शुरू हो जाती है। छह से सात महीने के अपने जीवन काल में चार किलो बीज के पौधों से 18 से 20 टन की उपज मिल जाती है। शेड की वजह से कीटनाशक का खर्च भी बच जाता है। बीन्स की बुवाई तब करें, जब मिट्टी कम से कम 48°F (9 ° C) तक गर्म हो गई हो। मिट्टी में अधिक नमी अंकुरण में देरी करेगी और बीज सड़ने का खतरा रहेगा।

नवनीत के खेत में उपजी बीन्स की फलियां की सप्लाई बैतूल, नागपुर और मुंबई के रास्ते अरब देशों तक की जाती है।

नवनीत के खेत में उपजी बीन्स की फलियां की सप्लाई बैतूल, नागपुर और मुंबई के रास्ते अरब देशों तक की जाती है।

लोकल में 60 रुपए किलो तक बिक रही

स्थानीय स्तर पर बीन्स की अच्छी कीमत मिल जाती है। लोकल बाजार में यह 60 रुपए किलो तक बिक जाती है। इसे बाजार में बेचे जाने पर इसकी कीमत और बढ़कर मिलती है। आमतौर पर यह बीन्स बिना रेशा वाली होती है, इस वजह से इसे बेहद पसंद किया जाता है। बैतूल से बीन्स की उपज नागपुर तक भेजते हैं। वहां से मुंबई-पुणे व अरब देशों तक इसे डिब्बे में पैक करके भेजा जाता है। फसल की खास विशेषता यही है कि इसका कीपिंग टाइमिंग अधिक है यानि इसे काफी समय तक रखा जा सकता है। बगैर फ्रीज में रखे भी ताजी रह सकती है। न तो इसकी गुणवत्ता में कमी आती है और न ही रंग, वजन और स्वाद में परिवर्तन आता है।

बींस के अलावा नीबू व मौसंबी के पेड़ भी लगाए हैं।

बींस के अलावा नीबू व मौसंबी के पेड़ भी लगाए हैं।

गमले में भी उगा सकते हैं बीन्स
बाकला या कॉमन बीन (वैज्ञानिक नाम : फैसेयोलस वल्गैरिस) जो कि मीजो अमरीका और एंडीज पर्वत पर मूलतः उगता था। अब सभी देशों में इसकी खेती होती है। इसकी फलियां और बीज ही इसके उत्पाद होते हैं। इसकी पत्तियां कहीं-कहीं हरी सब्जी के काम आती हैं। इसका भूसा मवेशियों के लिए काम में आता है। जैविक दृष्टि से यह एक द्विबीजपत्री पौधा है। बीन्स एक प्रकार की सब्जी है, जो बेल (vined) या झाड़ीदार (bushy) पौधे के रूप में उगती है।

बीन्स वसंत के मौसम में सबसे अच्छी तरह विकसित होती है। ठंडे मौसम में गमलों में भी बीन्स उगा सकते हैं, क्योंकि गमले की मिट्टी का तापमान खेत की मिट्टी के मुकाबले गर्म होता है। यह बीन्स के उत्पादन के लिए उपयुक्त रहता है। इसके अतिरिक्त बीन्स के पौधे को ठंड से बचाने के लिए गमले को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भी स्थानांतरित कर सकते हैं।

एक एकड़ में शेड नेट के निर्माण में 22 लाख का खर्च आया। इसमें 11 लाख रुपए का अनुदान उद्यानिकी विभाग द्वारा दिया गया।

एक एकड़ में शेड नेट के निर्माण में 22 लाख का खर्च आया। इसमें 11 लाख रुपए का अनुदान उद्यानिकी विभाग द्वारा दिया गया।

शेड नेट से मिले फायदे, बींस ने चुकाया कर्ज

एक एकड़ में शेड नेट का निर्माण उद्यानिकी विभाग की योजना के तहत करवाया गया था। 22 लाख में 50 प्रतिशत यानि 11 लाख रुपए का अनुदान दिया गया था। बैंक से इसके लिए ऋण को नवनीत ने महज तीन साल से भी कम समय में चुका दिया। यह ऋण उन्होंने 2018-19 में लिया था। जिसे 2021 में चुका दिया। एक एकड़ में बना शेड 10 एकड़ की खुली खेत के बराबर उपज देने की क्षमता रखता है। नवनीत बताते हैं कि वे जल्द ही इस फसल के साथ वैल्यू एडिशन करने वाले हैं। उपज बढ़ने पर महाराष्ट्र के बलसाड़ में लगे केनिंग बॉटलिंग प्लांट की तरह यहां भी प्लांट लगाने की तैयारी कर रहे हैं। इससे पैकेजिंग कर खाड़ी देशों तक बीन्स की आपूर्ति की जा सकेगी।

मक्का, गेहूं, सोयाबीन, गन्ना, मूंग, अरहर की पारंपरिक खेती भी करते हैं नवनीत वर्मा।

मक्का, गेहूं, सोयाबीन, गन्ना, मूंग, अरहर की पारंपरिक खेती भी करते हैं नवनीत वर्मा।

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