बाजार से खरीदी जा रही है आक्सीजन: बिजली बिल ज्यादा आने से नही हो रहा ऑक्सीजन प्लांट का उपयोग, खपत डेढ़ लाख और बिल आ रहा पांच लाख

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हरदा36 मिनट पहले
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जिला अस्पताल में कोरोना काल के दौरान लगाए दोनों ऑक्सीजन प्लांट बंद पड़े हुए है। उधर अस्पताल प्रबंधन का दावा है कि जिला अस्पताल परिसर में कोरोना काल की दूसरी लहर के दौरान लगाए गए 200 व 500 लीटर ऑक्सीजन क्षमता वाले दोनों प्लांट चालू है। लेकिन अस्पताल में आक्सीजन की खपत करीब डेढ़ से दो लाख रुपए प्रतिमाह हो रही है।
दोनों प्लांट को नियमित रूप से चालू रखने में करीब पांच से साढ़े पांच लाख रुपए का प्रतिमाह बिजली बिल आ रहा है, जो व्यवहारिक नहीं है। जिसके चलते बाहर से आक्सीजन क्रय की जा रही है।सिविल सर्जन डॉ. मनीष शर्मा का कहना है कि कोरोना काल के दौरान आक्सीजन की खपत बढ़ गई थी।
लेकिन फिलहाल अस्पताल में आक्सीजन की खपत कम है। जो करीब डेढ़ लाख खर्च करने से पूरी हो रही है। लेकिन परिसर में लगे दोनों प्लांट को लगातार चालू रखने पर बिजली बिल पांच लाख रुपए से अधिक आ रहा है। इसके चलते वरिष्ठ कार्यालय से मिले निर्देश के अनुसार इन्हें चालू किया जाता है।

ऑक्सीजन प्लाट चलाने पर बिजली बिल 60 लाख रुपए तक खर्च आ रहा था। इसी के चलते अब सप्ताह में तीन-चार दिन एक-एक घंट प्लांट चला रहे हैं। इसमें भी बिजली बिल 30 से 35 हजार रुपए माह का औसत बिल आ रहा है। अतिरिक्त भार को जिला अस्पताल को उठाना पड़ रहा है।
जानकारी के मुताबिक 500 लीटर क्षमता का ऑक्सीजन प्लांट 1.02 करोड़ रुपए और 200 लीटर क्षमता के प्लांट की लागत करीब 48 लाख रुपए है। 30 से 50 लाख रुपए लागत में रीफिलिंग प्लांट बन सकता है। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग भोपाल को पत्र लिखा है।
ऑक्सीजन सप्लाई के लिए वार्डों में पाइप लाइन सालाना 60 लाख खर्च,18 लाख रुपए में आ रहे सिलेंडर बिछाई है। इसमें फ्लो की समस्या आती है। ट्रामा सेंटर के प्रथम तल पर बने आईसीयू के अंतिम पलंग तक ऑक्सीजन का फ्लो बनने में समय लगता है, करीब 45 मिनट प्लांट चलाने के बाद पर्याप्त फ्लो में ऑक्सीजन मिलती है। रखरखाव में कर्मचारी भी व्यस्त रहते हैं। इससे जिला अस्पताल की व्यवस्थाएं गड़बड़ाती हैं। दो प्लाटों के रखरखाव के लिए कम से कम चार कर्मचारी की जरूरत होती है।

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