7 साल की बच्ची का संगीत सुन हैरान लोग: पिता के साथ जाती है स्कूल, हार्मोनियम में है रुचि; सिंगर बनने का सपना

[ad_1]
राजगढ़ (भोपाल)एक घंटा पहले
कहते हैं प्रतिभा शारीरिक दिव्यांगता की मोहताज नहीं होती, ऐसा ही वाकया राजगढ़ के जीरापुर में देखने को मिला है। जहां बचपन से 99 प्रतिशत अंधत्व से जूझ रही 7 साल की बालिका गोरानवीय राठौर की उंगलियां जब हारमोनियम पर चलती हैं तो अच्छे-अच्छे संगीतकार भी दांतों तले उंगलियां दबा लेते हैं।
राजगढ़ से 40 किलोमीटर दूर जीरापुर शहर के बुधवारिया बाजार में रहने वाले रितेश राठौर की शादी 2014 में तलेन निवासी पूजा राठौर से हुई थी। रितेश गवर्मेंट टीचर हैं। उन्होंने बच्चों को लेकर बड़े सपने देखे थे। साल 2015 में बेटी का जन्म हुआ, जिससे घर मे खुशियां छा गईं, लेकिन यह खुशियां ज्यादा दिन ठहर नहीं पाई। जन्म के दो दिन बाद ही डॉक्टरों ने बताया कि बच्ची की आंखों में दिक्कत है, आंखे कमजोर हैं। तमाम तरह की जांचे की गईं। इंदौर, उज्जैन, भोपाल, कोटा सहित कई जगह इलाज कराया। लेकिन सफलता नहीं मिली।

जिला स्तरीय प्रतियोगिता में मिला प्रथम पुरस्कार
गोरानवीयजब 6 साल की हुई तो परिजन उसे लेकर चेन्नई गए। जहां डॉक्टर्स ने बताया कि एक आंख के गुलकोमा का प्रेशर ज्यादा है। जिसकी वजह से अभी ऑपरेशन संभव नहीं है। दूसरी आंख का रेटिना छोटा है, जिसके लिए ड्राप चल रहा है। गोरानवीय बड़ी होकर बड़ी सिंगर बनना चाहती है। जिसको लेकर वह मेहनत कर रही है। जिसमें पूरा परिवार उसकी मदद कर रहा है। गोरानवीय ने जीरापुर विकासखंड की बाल प्रतियोगिता में संगीत में प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया है। जिला स्तरीय बाल प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार मिला। कुछ दिनो पहले संभागीय बाल रंग प्रतियोगिता में गोरानवीय ने अपनी प्रस्तुति दी है। इसकी घोषणा होना बाकी है।

एक घंटा रोज रिहर्सल करती है बालिका
बच्ची को लेकर परिवार परेशान था। बच्ची जब 5 साल की हुई उसी दौरान पिता रितेश रोजाना बेटी को लेकर घर के सामने बने राममंदिर पर दर्शन करने जाते थे। जहां पिता भजन गाते थे। बेटी को भी धुन लग गई कि मुझे संगीत सीखना है। रितेश ने संगीत शिक्षक से बात की। उसी दौरान बच्ची के नाना ने हारमोनियम गिफ्ट कर दिया। बेटी गोरानवीय कोचिंग के साथ ही एक घंटा रोज रिहर्सल करती है। महज एक साल में उसकी उंगलियों से स्वर लहरियां निकलने लगी।

पिता के स्कूल में ही पढ़ती है
पिता रितेश ने बताया कि वह कोडक्या गांव में प्रधान शिक्षक हैं। बच्ची को महज 1 प्रतिशत दिखता है। चश्मा पहनने के बाद वो नजदीक से गौर करके देखती है। तब कुछ डार्क कलर पहचान पाती है। बेटी को जीरापुर में ही अन्य स्कूल में भर्ती करने गए थे, लेकिन आखों की परेशानी एक समस्या थी। किसके साथ स्कूल जाती, इसलिए पिता के कोडक्या गांव के शासकीय स्कूल में ही एडमिशन करवाकर दो सालों से साथ मे ले जा रहे है। जहां वो अन्य छात्रों को बोलकर पढ़ाई गई बातें याद रखती और घर आकर उनकी आवाज सुनकर रिहर्सल करती है।
Source link