सरकारी आंकड़ो में तेजी से कम हो रहा कुपोषण: हकीकत कुछ और कर रही बयां, तीन गांवों में 20 कुपोषित और 4 गंभीर मिले

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श्योपुरएक मिनट पहले
श्योपुर – महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारी कागजी आंकड़ेबाजी में जिले से कुपोषण का ग्राफ बेहद कम होने के दावे कर रहे हैं लेकिन हकीकत यह है कि, कुपोषण का ग्राफ कम होने की बजाय तेजी के साथ बढ़ रहा है।
महिला एवं बाल विकास विभाग के दावों की पोल खोल रहे कराहल और विजयपुर इलाके के 150 से ज्यादा आदिवासी समाज के गांवों में शायद ही ऐसा कोई गांव होगा जहां कुपोषित बच्चे न हो। गंभीर कुपोषित बच्चों की भी कमी नहीं है। भास्कर टीम ने विजयपुर इलाके के गोलीपुरा, पैरा और लखनपुरा में पहुंचकर हालात देखे तो वहां 20 से ज्यादा बच्चे कुपोषित और 4 बच्चे गंभीर कुपोषित मिले। गोलीपुरा गांव निवासी महिला लक्ष्मी आदिवासी से जब पूछा गया कि आपका बच्चा अति कुपोषित है तो वह बोलीं कि का करें साहब कोई देखने ही नहीं आता, न तो आंगनबाड़ी वाले आते हैं और न ही अधिकारी। अस्पताल में दिखा लिया लेकिन कोई आराम नहीं मिला।
कुछ इसी तरह की बात उर्मिला आदिवासी नाम की महिला ने कही, उर्मिला बताती हैं कि उनकी ननद की बेटी खुशी की उम्र दो वर्ष है लेकिन उसका का वजन तीन किलोग्राम ही है। हाथ पैरों से मांस लगभग गायब हो गया है। अब लटकी हुई खाल और हड्डियां नजर आने लगी लगी हैं। पैरा गांव निवासी सुआ आदिवासी के बेटे लाखन, लब्लेश भी गंभीर कुपोषित हैं। 2 साल पहले इसी परिवार के गंभीर कुपोषित की मौत भी कुपोषण की वजह से हो चुकी है। आमीन के दोनों बेटे जिंदगी और मौत से जंग लड़ रहे हैं। लखनपुरा निवासी बालिका खुशी और छाया भी गंभीर कुपोषित है। इन सभी बच्चों को तत्काल उपचार और समुचित पोषण आहार दिए जाने की बेहद आवश्यकता है। लेकिन, जिम्मेदार अधिकारी हाथ पर हाथ रखे बैठे हुए हैं।
पिछले महीने जिला मुख्यालय से सटे हुए रामपुरा गांव गांव की बालिका गुड़िया आदिवासी की कुपोषण के चलते मौत हुई थी। सीएमएचओ डॉ बीएल यादव ने मृत बच्ची को कुपोषित की श्रेणी में माना था। इससे पहले भी अनगिनत कुपोषित बच्चों को कुपोषण अपना निवाला बना चुका है। हालात को देखते हुए गंभीर कुपोषित बच्चों को तत्काल एनआरसी केंद्रों में भर्ती करवा कर उनका उपचार शुरू कराया जाना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हो रहा।
विजयपुर के महज 3 गांव में 20 से ज्यादा कुपोषित बच्चे हैं, गंभीर कुपोषित बच्चों की भी इन गांव में कमी नहीं है। सिर्फ तीन गांव में इस तरह के हालात हैं तो आप समझ ही सकते हैं कि, जिले के 400 से ज्यादा गांवों में कुपोषण के हालात कैसे होंगे। गोलीपुरा गांव में 2 साल पहले कई गंभीर कुपोषित बच्चों की मौत हुई थी तब यहां महिला एवं बाल विकास विभाग की पूर्व मंत्री इमरती देवी से लेकर तमाम आला अधिकारी पहुंचे थे। इस दौरान कुपोषण मिटाने के लिए तमाम सारी योजनाएं बनी लेकिन, 2 साल से भी ज्यादा समय बीतने के बाद स्थिति में सुधार नहीं हो सका है। आज भी ऐसे तमाम बच्चे हैं जो कुपोषण की वजह से जिंदगी और मौत से जंग लड़ने को मजबूर हैं। कुपोषण उन्हें निकलता जा रहा है, उनकी हर सांस पर उनकी पीड़ा सुनाई देने लगी है लेकिन, जिम्मेदारों की नींद कब टूटेगी और कब वह इन बच्चों को पोषण पुनर्वास केंद्रों में भर्ती कराएंगे यह देखने बाली बात होगी।
पैरा गांव निवासी कुपोषित बच्चे के पिता सुआ आदिवासी और गोली पुरा निवासी राम वकील आदिवासी का कहना है कि, उनके बच्चे कुपोषित हैं फिर भी न तो आंगनवाड़ी केंद्र वाले उनकी सुध लेते हैं और न ही विभाग के अधिकारी। इस बारे में स्वास्थ्य विभाग के विजयपुर बीएमओ संदीप यादव का कहना है कि, एक बच्चे को उसके परिजन एनआरसी केंद्र लेकर आए हैं वह कुपोषित है। उपचार किया जा रहा है।
इस बारे में विजयपुर एसडीएम नीरज शर्मा का कहना है कि, कुपोषण मिटाने के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग की टीम लगातार काम कर रही है, बच्चों को एनआरसी केंद्र तक लाना बहुत मुश्किल हो जाता है, फिर भी पुलिस बुलाकर और दूसरे तरीके अपनाकर बच्चों को लाकर उनका उपचार कराया जाता है।
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