बैतूल के इंजीनियर दोस्त खेती से बने लखपति: एक लाख से शुरू किया शहद का बिजनेस, तीन साल में चार राज्यों में फैला कारोबार

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बैतूल17 मिनट पहले
बैतूल जिले के दो युवा किसान इन दिनों शहद बेचकर लाखों रुपए कमा रहे हैं। दोनों ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। कुछ समय नौकरी करने के बाद दोनों खेती करने लगे। ट्रेडिशनल फार्मिंग के दौरान मुनाफा कम था, इसलिए कुछ नया करने की सोची। किसी मित्र ने मधुमक्खी पालन की सलाह दी। इसके बाद दोनों ने मधुमक्खी पालन की बारिकियों को समझा और तीन साल पहले इसकी शुरुआत कर दी। एक लाख रुपए से कंपनी बनाकर शहद जुटाने और उसे बेचने की शुरुआत की। अब उनकी कंपनी मप्र सहित चार राज्यों से शहद इकट्ठा कर उसकी प्रोसेसिंग करके बाजार में बेचती है। वे लोगों तक शहद ऑनलाइन पहुंचा रहे हैं।
बैतूल के आकाश वर्मा और आकाश मगरूरकर बचपन में साथ खेले और स्कूल में साथ पढ़े। दोनों ने साथ में इंजीनियरिंग की। आकाश ने 2012 में राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय से बीई की पढ़ाई की। 2013 में एक एलईडी कंपनी में जॉइन किया। 2016 में दूसरी नौकरी बदली। 2018 में नौकरी छोड़कर खेती करने की सोची और घर लौट आए। जब मधुमक्खी पालन करने का विचार आया तो इसके लिए पुणे के खादी और विलेज इंडस्ट्री कॉर्पोरेशन से मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण लिया। इसके बाद खुला शहद बेचना शुरू कर दिया।


ई-कॉमर्स कंपनी से पहुंचा रहे घर-घर
दोनों ने 2019 में अपनी कंपनी रजिस्टर्ड कर खुद की पैकेजिंग के साथ शहद बेचना शुरू किया। आज दोनों हर साल 5 टन से ज्यादा शहद का उत्पादन कर रहे हैं। दोनों दोस्तों ने राजस्थान, हिमाचल, पंजाब में मधुमक्खियों के डिब्बे रख दिए हैं। मधुमक्खी पालन कर शहद उत्पादन करते हैं। डिब्बों में शहद भरने के बाद इसे निकालकर पैकेजिंग की जाती है। उसे आसपास के जिलों समेत ई-कॉमर्स कंपनी के द्वारा बेचा जाता है। दोनों युवा किसान मधुमक्खियों को ब्रीडिंग भी करवाते हैं। इससे दोनों को सालाना तीन लाख रुपए की आमदनी हो रही है।

शुरुआत में कीड़ों ने नष्ट कर दिए डिब्बे
आकाश ने शहद के उत्पादन की योजना बनाकर इसे बतौर बिजनेस शुरू करने की प्लानिंग की तो समझ आया कि यह बैतूल में संभव नहीं है। यहां उत्पादन में जोखिम था। 2019 में उन्होंने बैतूल में मधुमक्खियों के 15 डिब्बे रखे, लेकिन यहां उम्मीद पर पानी फिर गया। कम फ्लोरा के कारण मधुमक्खियां यहां बच नहीं पाईं। यहां कीड़े लगने से सारे डिब्बे खत्म हो गए। फ्लोरा की कमी दूर करने के लिए सरसों की खेती की लेकिन मधुमक्खियों के वैक्स को कीड़ों ने खा लिया, कई छत्ते नष्ट हो गए। कोरोना वायरस की दोनों लहरों के दौरान उनका व्यवसाय प्रभावित हुआ, लेकिन अब फिर से पटरी पर आ गया है।

राजस्थान, हिमाचल, पंजाब को बनाया ठिकाना
पहली बार असफलता मिलने के बाद आकाश वर्मा और मगरुलकर ने हिम्मत नहीं हारी, उन्होंने मधुमक्खियों के और डिब्बे खरीदे। इन्हें फ्लोरा वाले इलाकों में भेजने की तैयारी की। पंजाब के लुधियाना, राजस्थान के झालावाड़, सीकर और हिमाचल के कई जिलों में यह डिब्बे भेजे गए। जहां फूलों की फसल होती है। एक-एक साइट पर 150-150 डिब्बे रखे गए। यह योजना काम कर गई और मधुमक्खियों को मिलने वाले फ्लोरा ने शहद उत्पादन को नई उड़ान दे दी। अब दोनों दोस्त मौसम के हिसाब से शहद उत्पादन कर रहे हैं। अब उन्हें राजस्थान से बेरी, बाजरा, सरसों की फसल के दौरान शहद मिल जाता है। पंजाब में अजवाइन, नीलगिरी और सूरजमुखी की फसल के दौरान शहद मिल जाता है, जबकि मल्टी फ्लोरा का शहद हिमाचल से आ जाता है।

सेल्स बढ़ने पर पैकिंग व लेवल लगाने का सेटअप तैयार किया है।
सेल्स बढ़ने पर खुद की मशीनें लगाई
दोनों दोस्तों ने एक-एक लाख रुपए की पूंजी से यह कंपनी शुरू की, जो आज बढ़कर तीस लाख रुपए टर्नओवर तक पहुंच गई है। शहद का उत्पादन और बिक्री बढ़ने से कंपनी में काम आने वाला स्टॉक, रॉ मटेरियल, पैकेजिंग, सिलर, मिक्सर, ग्राइंडर, प्रिंटिंग जैसी मशीनें इंस्टाल की गई हैं।

घरेलू उत्पाद बेचकर महिलाओं को देंगे रोजगार
जून 2020 में दोनों दोस्तों ने कच्चे आम का अचार बनाना शुरू किया है। अब वे साल भर में सात से आठ टन अचार बेच देते हैं। आम के मौसम में आम लेकर उसे बड़ी बड़ी टंकियों में सुरक्षित कर रख दिया जाता है। जिसे आर्डर के हिसाब से तैयार कर मार्केट में भेज दिया जाता है। जिसके लिए स्थानीय और बाहरी स्तर के लिए सेल्समैन रखे गए हैं। दोनों ने बताया कि अब महिलाओं को रोजगार देने के लिए वे घरेलू उत्पाद (पापड़, बड़ी) बनाकर बेचेंगे।

आकाश वर्मा और आकाश मगरूरकर हर गतिविधि पर खुद नजर रखते हैं।
निजी कंपनी के दबाव ने बनाया दिया उद्यमी
आकाश ने बताया कि पांच साल तक निजी कंपनियों में बतौर मैनेजर नौकरी की। इसमें मन नहीं लगा। नौकरी करने में आनंद नहीं मिलने पर उन्होंने कंपनी शुरू करने का फैसला किया। आकाश मगरुरकर ने बताया कि कॉलेज में साथ पढ़ते समय सोच बन गई थी कि खुद का कुछ करेंगे। यही वजह रही कि ऑटोमोबाइल की दो कंपनियों में जॉब मिलने के बाद उन्होंने जॉइन नहीं किया।

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