जगमग महाकाल: प्रधानमंत्री आज भक्तों को समर्पित करेंगे ‘महाकाल लोक’; गर्भगृह में करेंगे महाकाल का पूजन

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उज्जैन43 मिनट पहलेलेखक: ओमप्रकाश सोनोवणे
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पहली बार एक ही तस्वीर में देखिए… महाकाल लोक, मंदिर और रुद्र सागर
बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के नए दर्शन परिसर ‘महाकाल लोक’ काे मंगलवार शाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भक्तों को समर्पित करेंगे। इस मौके पर नगर में महामहोत्सव होगा और दीपोत्सव मनाया जाएगा। प्रधानमंत्री शाम 5.30 बजे आएंगे।
वे सबसे पहले भगवान महाकालेश्वर का पूजन करेंगे। इसके बाद महाकाल लोक का शुभारंभ कर अवलोकन करेंगे। यहां से वे कार्तिक मेला मैदान पहुंचकर सभा को संबोधित करेंगे। सभा में मालवा-निमाड़ के साथ प्रदेश के विभिन्न अंचलों से लोग आएंगे।
महाकाल का महोत्सव तीन हजार साल पहले भी होता था। चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य के प्राप्त पुरातात्विक प्रमाणों ने यह साबित किया है कि रुद्र महोत्सव और उज्जयिनी महोत्सव मनाने की भी परंपरा रही है। विक्रमादित्य से जुड़े पुरावशेषों की खोज और इनके प्रमाणीकरण में जुटी मप्र महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ ने ऐसे प्रमाण जुटाए हैं जिनमें महाकाल के महोत्सव की परंपरा का पता चलता है।
शोध पीठ के पूर्व निदेशक व संस्कृतिविद् डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित बताते हैं उज्जैन के गढ़कालिका क्षेत्र से ऐसे सिक्के, मुद्रा और शिलालेख मिले हैं, जिन पर महाकाल के महोत्सव का उल्लेख मिलता है। पुरावशेषों पर रुद्र महोत्सव और उज्जयिनी महोत्सव का भी उल्लेख मिलता है।

डॉ. राजपुरोहित के अनुसार विक्रमादित्य महाकाल की पूजा रुद्र के रूप में करते थे, क्योंकि स्कंद पुराण में कहा गया है कि शिव की पूजा यदि शिवलिंग के स्वरूप में की जाती है तो उसे रुद्र पूजा कहा जाता है। विक्रमादित्य ने जब महाकाल के महोत्सव की शुरुआत की, तब संभवत: यादगार के तौर पर तालाब का निर्माण कराया जिसका नाम रुद्र के नाम पर रखा जो अब रुद्र सागर कहलाता है।
प्रद्योत और विक्रमादित्य ने भी किया था महाकाल का महोत्सव, उज्जयिनी व रुद्र महोत्सव भी होता था, संग्रहालय में रखे सिक्के, सील और शिलालेख इसके गवाह
मुद्रा पर ‘क त स विक्रम रुद्रस म ह व’ यानी रुद्र का महोत्सव

महोत्सव वाली मुद्रा- मुद्रा पर विक्रम रुद्रस म ह व लिखा है। जिसका अर्थ है विक्रम शिव का उत्सव। यह मुद्रा ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी की है।
डॉ. राजपुरोहित के अनुसार पहला प्रमाण राजा प्रद्योत द्वारा महाकाल का महोत्सव मनाने का मिलता है। इसके 400 साल बाद विक्रमादित्य द्वारा महोत्सव मनाने के प्रमाण हैं। प्राप्त पुरावशेषों पर ‘क त स विक्रम रुद्रस म ह व’ व ‘महाकाल महो’ लिखा मिला है।
गढ़कालिका क्षेत्र से मिले एक शिलालेख पर भी महोत्सव का उल्लेख है। इन प्रमाणों से जाहिर है कि महाकाल का महोत्सव मनाया जाता रहा है। उज्जैन में मनाए गए शैव महोत्सव के दौरान विक्रमादित्य के महोत्सव को दर्शाने वाली सील पर डाक टिकट भी जारी किया गया था।
कालदंडधारी महाकाल का 2600 साल पुराना सिक्का
अश्विनी शोध संस्थान के प्रमुख डॉ. आरसी ठाकुर के संग्रहालय में यह पुरावशेष संग्रहित हैं। डॉ. ठाकुर के अनुसार महाकाल के चित्र वाला सबसे पुराना सिक्का 2600 साल पुराना है। महाकाल कालदंड हाथ में लिए हैं।
महाकाल को काल का देवता कहा जाता है इसलिए उनके हाथ में त्रिशूल की जगह कालदंड हैं। 2100 साल पुरानी ताम्र सील पर विक्रम रुद्रस म ह व अंकित है। विक्रमादित्य से जुड़ी अनेक पुरा सामग्री प्राप्त हुई है। विक्रमादित्य के चक्रवर्ती होने, उत्सव मनाने और रोम तक विजय का पता चलता है।
भविष्य पुराण में विक्रम की राजसभा, सिंहासन बत्तीसी का उल्लेख
संस्थान द्वारा विक्रमादित्य से संबंधित अनेक प्रमाण खोजे गए हैं। भविष्य पुराण में उल्लेख है विक्रमादित्य ने उज्जैन में राजसभा बनाई और बत्तीस पुतलियों वाला सिंहासन स्थापित किया। विक्रमादित्य ने ही अयोध्या में श्रीराम की चरण पादुका खोजने के लिए उत्खनन कराया था। विदेशियों को हरा कर विक्रम संवत् लागू किया था, जिसे अब राष्ट्रीय कैलेंडर का आधार बनाने पर काम चल रहा है। केंद्र सरकार को भी इस संबंध में प्रस्ताव दिए गए हैं। वैदिक घड़ी की स्थापना उज्जैन में की जाना है, जो बनकर तैयार है। स्थान का चयन होना है।
श्रीराम तिवारी, शोध पीठ के वर्तमान निदेशक
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