एकल व्याख्यान: किसी भी देश को गुलाम बनाने सबसे पहले संस्कृति को नष्ट किया जाता है- डॉ. ओझा

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सागरएक घंटा पहले
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- डॉ. हरीसिंह गौर विवि के नंददुलारे वाजपेयी सभागार में एकल व्याख्यान
भारतीयता की वास्तविक वाहक और रोशनी भारतीय भाषाओं के पास है, जो समूची भारतीय चेतना, एकात्मता एवं आत्मनिर्भर समाज की दिशा को निर्धारित करती थी। जब भारत में औपनिवेशिक साम्राज्य की स्थापना हुई तो उसने सबसे पहली चोट भारतीय भाषाओं की उसी निधि पर की। किसी भी देश को यदि गुलाम बनाना हो तो सबसे पहले उसकी संस्कृति को नष्ट किया जाता है। इतिहास की गति को अपने अनुकूल मोड़ा जाता है। सबसे जरुरी है कि भारत को अपनी चेतना का संचालन अपने हाथ में रखना होगा। यह विचार प्रख्यात चिन्तक, लेखक और फिल्मकार डॉ. अनुपम ओझा ने व्यक्त किए।
वे नंददुलारे बाजपेई सभागार में डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग एवं वनमाली सृजन पीठ के संयुक्त तत्वावधान एवं आजादी के अमृत महोत्सव के तहत आयोजित एकल व्याख्यान को संबोधित कर रहे थे। व्याख्यान के बाद विद्यार्थियों की मांग पर डॉ. अनुपम ने अपनी कविताएं सुनाई। तु मुझमें है मेरे होने की तरह, मेरी अंगूठी में सोने की तरह एवं मेरे लिए प्रेम किसी पक्षी को उड़ने का अवकाश देना है को श्रोताओं की भरपूर सराहना मिली। काव्य-पाठ के बाद डॉ. अनुपम ने विश्व सिनेमा पर विद्यार्थियों के सवालों के उत्तर भी दिए। इस दौरान प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी, राजेन्द्र यादव, हिमांशु कुमार, आशुतोष, अफरोज बेगम, शशि कुमार सिंह, राघवेन्द्र प्रताप सिंह, कृष्ण कुमार, लक्ष्मी पाण्डेय सहित बड़ी संख्या में शोध छात्र एवं विद्यार्थी मौजूद रहे।
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