Chhattisgarh

आज आंवला नवमीं विशेष : रत्नों के समान मूल्यवान है आंवला का फल

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

रायपुर – कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमीं यानि आज आंँवला नवमीं मनायी जा रही है। इसे अक्षय नवमीं भी कहा जाता है। श्रुतिस्मृति पुराणों के अनुसार त्रेतायुग का प्रारंभ इसी दिन हुआ था। इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये श्री सुदर्शन संस्थानम , पुरी शंकराचार्य आश्रम / मीडिया प्रभारी अरविन्द तिवारी ने बताया कि श्रुतिस्मृति पुराणों के अनुसार आंवला नवमी के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन की गलियां छोड़कर मथुरा प्रस्थान किया था। इसी दिन उन्होंने अपनी बाल लीलाओं का त्याग करके कर्तव्य के पथ पर पहला कदम रखा था।

इसी दिन से वृंदावन की परिक्रमा भी प्रारंभ होती है। आंवला नवमी का व्रत संतान और पारिवारिक सुखों की प्राप्ति के लिये किया जाता है। यह व्रत पति-पत्नी साथ में रखें तो उन्हें इसका दोगुना शुभ फल प्राप्त होता है। आज के दिन आंवले के पेड़ की विधिवत तरीके से पूजा कर इसी वृक्ष के नीचे सपरिवार भोजन किया जाता है। अगर आसपास आँवले का पेंड़ नही है और उसके नीचे भोजन करना संभव नही है इस दिन आँवले के फल खाने का भी प्रावधान है। वहीं अक्षय नवमीं के दिन स्नान , तर्पण ,अन्न दान तथा पूजा आदि करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है।

धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक आंँवले के पेड़ में देवों के देव महादेव और भगवान विष्णु वास करते हैं इसलिये इसकी पूजा करने का खास महत्व है। कहा जाता है कि आंँवले की पूजा करने से आरोग्य और सुख समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। वहीं पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आंँवला नवमी के दिन पूजा करने और जप – तप , दान करने से अनंत गुना फल मिलता है। आँवला विष्णुप्रिय और साक्षात भगवान विष्णु का ही स्वरूप है। इसके स्मरण मात्र से गोदान के बराबर फल मिलता है , इसे स्पर्श करने पर दोगुना तथा फल सेवन करने पर तीन गुना फल मिलता है , यह फल सदा सेवन योग्य है। जो प्राणी इस वृक्ष का रोपण करता है उसे उत्तम लोक की प्राप्ति होती है।

महत्व

शास्त्रों में आंँवला , पीपल , वटवृक्ष , शमी , आम और कदम्ब के वृक्षों को हिन्दू धर्म में वर्णित चारों पुरुषार्थ दिलाने वाला बताया गया है। इन वृक्षों की पूजा करने से भगवान प्रसन्न होते हैं और अपनी कृपा भक्तों पर बरसाते हैं। आंवला नवमी के दिन आंवला वृक्ष का पूजन कई यज्ञों के बराबर शुभ फल देने वाला बताया गया है। आंँवला नवमी पर आंँवले के पेड़ के नीचे पूजा और भोजन करने की प्रथा की शुरुआत माता लक्ष्मी ने की थी। कथा के अनुसार एक बार मांँ लक्ष्मी पृथ्वी पर घूमने के लिये आयी। धरती पर आकर मांँ लक्ष्मी सोचने लगीं कि भगवान विष्णु और शिवजी की पूजा एक साथ कैसे की जा सकती है ? तभी उन्हें याद आया कि तुलसी और बेल के गुण आंँवले में पाये जाते हैं। तुलसी भगवान विष्णु को और बेल शिवजी को प्रिय है। उसके बाद मांँ लक्ष्मी ने आंँवले के पेड़ की पूजा करने का निश्चय किया। मांँ लक्ष्मी की भक्ति और पूजा से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु और शिवजी साक्षात प्रकट हुये। माता लक्ष्मी ने आंँवले के पेड़ के नीचे भोजन तैयार करके भगवान विष्णु व शिवजी को भोजन कराया और उसके बाद उन्होंने खुद भी वहीं भोजन ग्रहण किया।मान्यताओं के अनुसार आंवला नवमी के दिन अगर कोई महिला आंँवले के पेड़ की पूजा कर उसके नीचे बैठकर भोजन ग्रहण करती है , तो भगवान विष्णु और शिवजी उसकी सभी इच्छायें पूर्ण करते हैं। इस दिन महिलायें अपनी संतना की दीर्घायु तथा अच्छे स्वास्थ्य लेकर कामना करती हैं। इस दिन आँवला नवमीं की कथा भी सुनी जाती है। मान्यता है कि इस कथा को सुनने से व्रत रखने वाली महिलाओं को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। माता लक्ष्मी भी उनके परिवार पर प्रसन्न होती है।

आंँवला दान के प्रभाव से हुई स्वर्ण की वर्षा

एक कथा के अनुसार गुरूकुल में रहते हुये एक बार आदि शंकराचार्यजी भिक्षा मांगने एक कुटिया के सामने रुके। वहां एक बूढ़ी औरत रहती थी , जो अत्यंत गरीबी और दयनीय स्थिति में थी। शंकराचार्यजी की आवाज सुनकर वह बूढ़ी औरत बाहर आई , उसके हाथ में एक आमलकी फल (आंवला) था। वह बोली महात्मन मेरे पास इस आंवले के सिवाय कुछ नहीं है जो आपको भिक्षा में दे सकूं। शंकराचार्यजी को उसकी स्थिति पर दया आ गई और उन्होंने उसी समय उसकी मदद करने का प्रण लिया। उन्होंने अपनी आंखें बंद की और मंत्र रूपी कनकधारा स्तोत्र के बाईस श्लोक बोले। इससे प्रसन्न होकर मां लक्ष्मी ने उन्हें दिव्य दर्शन दिये और कहा कि इस औरत ने अपने पूर्व जन्म में कोई भी वस्तु दान नहीं की। यह अत्यंत कंजूस थी और कभी किसी को कुछ देना ही पड़ जाये तो यह बुरे मन से दान करती थी। इसलिये इस जन्म में इसकी यह हालत हुई है , यह अपने क्मों का फल भोग रही है इसलिये मैं इसकी कोई सहायता नहीं कर सकती। शंकराचार्यजी ने देवी लक्ष्मी की बात सुनकर कहा – हे महालक्ष्मी इसने पूर्व जन्म में अवश्य दान-धर्म नहीं किया है , लेकिन इस जन्म में इसने पूर्ण श्रद्धा से मुझे यह आंवला भेंट किया है। इसके घर में कुछ नहीं होते हुये भी इसने यह मुझे सौंप दिया। इस समय इसके पास यही सबसे बड़ी पूंजी है , क्या इतना भैंट करना पर्याप्त नहीं है ? शंकराचार्य की इस बात से देवी लक्ष्मी प्रसन्न हुई और उसी समय उन्होंने गरीब महिला की कुटिया में स्वर्ण के आंवलों की वर्षा कर दी और महिला की कुटिया में सोने के आंवले बरसने लगे। अत: आंवला नवमी के दिन यह कथा पढ़ने और सुनने का बहुत महत्व माना गया है। इस फल का प्रयोग कार्तिक मास से आरम्भ करना अनुकूल माना जाता है। इस फल के सटीक प्रयोग से आयु , सौन्दर्य और अच्छे स्वस्थ्य की प्राप्ति होती है। मात्र यही ऐसा फल है जो सामान्यतः नुकसान नहीं करता है।

आंँवले के फल का विशेष प्रयोग

अगर धन का अभाव हो तो हर बुधवार को भगवान को आंँवला अर्पित करें। अगर उत्तम स्वास्थ्य चाहिये तो कार्तिक माह में आंँवले के रस का नियमित प्रयोग करें। आंँवले के वृक्ष के नीचे शयन, विश्राम और भोजन करने गोपनीय से गोपनीय बीमारियांँ और चिंतायें दूर हो जाती हैं। आंँवले के फल को दान देने से मानसिक चिंतायें दूर होती हैं। आंवले का चूर्ण खाने से वृद्धावास्था का प्रकोप नहीं होता है। कार्तिक मास में आंँवले को भोजन में शामिल करें अथवा आंँवले के रस में तुलसी मिलाकर सेवन करें। कार्तिक में आंँवले का पौधा लगाने से संतान और धन की कामनायें पूर्ण होती हैं , आंँवले के फल को सामने रखकर कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से दरिद्रता दूर होती है। अगर कर्ज से परेशान हों तो घर में आंँवले का पौधा लगाकर इसमें रोज सुबह पानी डालें।

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