हिंदी सलाहकार समिति के राष्ट्रीय सदस्य बने डॉ. माणिक विश्वकर्मा

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
रायपुर – मध्य भारत के छत्तीसगढ़ राज्य से संबंध रखने वाले डॉ.माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’ को कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय की हिंदी सलाहकार समिति में राष्ट्रीय सदस्य के रूप में चुना गया है। यह नियुक्ति भारत सरकार के गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग द्वारा केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय की अनुमति के बाद की गई है। राजभाषा विभाग की संयुक्त सचिव मीनाक्षी जौली द्वारा इस संबंध में आधिकारिक सूचना विगत दिवस 08 अगस्त को जारी की गई है।
डॉ.माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’ को यह जिम्मेदारी एक गैर- सरकारी सदस्य के रूप में सौंपी गई है। इस राष्ट्रीय समिति में पूरे देश से केवल तीन सदस्यों को नामित किया गया है , जिनमें डॉ. माणिक विश्वकर्मा के अलावा हरियाणा से नेहा धवन और चेन्नई से श्रीश्री कांथा कन्नन का नाम भी शामिल है। डॉ.माणिक विश्वकर्मा ने कहा कि वे मंत्रालय के साथ मिलकर तकनीकी शिक्षा और कौशल विकास में हिंदी भाषा के समावेश और प्रचार-प्रसार के लिये कार्य करेंगे , उन्होंने भरोसा दिलाया कि इस जिम्मेदारी को पूरी निष्ठा और ईमानदारी से निभायेंगे। एनटीपीसी कोरबा से उप महाप्रबंधक के पद पर सेवानिवृत्त लब्धप्रतिष्ठ वरिष्ठ साहित्यकार , समीक्षक , लेखक , प्रखर वक्ता एवं नवछंद विधान हिंदकी के निर्माता डॉ.माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग ‘ने विज्ञान में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल करने के बावजूद अपना पूरा जीवन हिंदी भाषा एवं साहित्य के उन्नयन एवं विकास के लिये समर्पित कर दिया। वर्ष 1971 से वे हिंदी भाषा की सेवा एवं साहित्य सृजन कर रहे हैं और उनका लेखन प्रतिष्ठित पत्र- पत्रिकाओं में नियमित रूप से छप रहे हैं। इनके अलावा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी ये सम्मानित हो चुके हैं। इनकी पंद्रह कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी है एवं पाँच प्रकाशित होनी है और ये पाँच काव्य संग्रहों का संपादन कर चुके हैं। सैकड़ों पत्र- पत्रिकाओं में इनकी रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं और दो सौ से अधिक समीक्षायें कर चुके हैं।
विगत चवालीस वर्षों से संकेत साहित्य समिति जिसके वे संस्थापक भी हैं , जिनके माध्यम से ये नये रचनाकारों को बेहतर लिखने के लिये प्रोत्साहित कर रहे हैं। डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’ का रचना संसार विशाल एवं बहुआयामी है। उनकी भाषा सरल , सुबोश , आकर्षक एवं ललित है। इनकी रचनायें – रचना कौशल , भाषा शैली , अर्थ विश्लेषण एवं विवेचना की हर कसौटी में खरी उतरती है। उनकी अभिव्यक्ति की सहजता हृदय स्पर्शी है। इनकी रचनायें मानव मूल्यों को संपूर्णता प्रदान करती हैं। रचनाओं में नयापन , नयी बानगी , नयी रवानगी एवं नित नये प्रतीक- बिंबों का प्रयोग उन्हें अन्य रचनाकारों से अलग पहचान दिलाता है। यही उनकी ख़ूबी भी है। उनके जैसा बेलागी एवं बेबाकी से लिखने वाले छत्तीसगढ़ में बहुत कम होंगे। आम आदमी की लड़ाई हो या पर्यावरण संरक्षण की बात इन्होंने इस अभियान में हरदम बढ़कर हिस्सा लिया है। तीस वर्षों तक पर्यावरण प्रबंधन एवं प्रदूषण नियंत्रण का कार्य देखते हुये उन्होंने हजारों पेड़ लगवाये हैं। वे साहित्य जगत में अपने विशिष्ट लेखन शैली एवं प्रस्तुतीकरण के लिये जाने हैं। आज वे मंच , प्रकाशन , प्रसारण एवं व्याख्यान के क्षेत्र में समान रूप से सक्रिय हैं। मानव मूल्यों के पक्षधर कवि के रूप में भी उन्हें ख्याति मिली है। मित्रों के एवं विरोधियों के बीच समान रूप से लोकप्रिय नवरंग व्यावसायिकता से दूरी बनाते हुये पूरी ईमानदारी के साथ हिंदी सेवा , साहित्य सृजन एवं लेखन में जुटे हैं। वे राष्ट्र भाषा हिन्दी की सेवा करने को पुनीत कार्य मानते हैं। उन्होंने इस चयन को छत्तीसगढ़ एवं अपने परिवार के लिये गौरव की बात बताया। उन्होंने कहा कि मध्य भारत से प्रतिनिधित्व मिलना उनके लिये सौभाग्य की बात है। इस उपलब्धि के लिये उन्होंने राज्य सरकार , केंद्र सरकार और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का आभार व्यक्त किया है। उन्होंने शिक्षा में हिंदी की महत्ता को बढ़ावा देने की अपनी प्रतिबद्धता भी जताई। वर्तमान में ये अनेकों साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़कर हैं अपना मार्गदर्शन दे रहे हैं। जिनमें संस्थापक (1981) एवं प्रांतीय अध्यक्ष – संकेत साहित्य समिति छत्तीसगढ़ , प्रातीय संरक्षक – मय-मनु विश्वकर्मा संघ छत्तीसगढ़ , संरक्षक – पं.मुकुटधर पांडे साहित्य भवन समिति कोरबा एवं राष्ट्रीय कवि संगम रायपुर (छत्तीसगढ़) , प्रांतीय कार्याध्यक्ष – संस्कार भारती छत्तीसगढ़ और मार्गदर्शक – हिन्दी साहित्य भारती छत्तीसगढ़ है।