इससे पता चलता है सरकार की नीयत का

-सुनील दास
राज्य की कोई समस्या है तो उसका समाधान तो सरकार को ही करना पड़ता है। उसके लिए कोई योजना बनानी पड़ती है, योजना की सफलता के लिए काम करना पड़ता है। सरकार के काम व उसकी योजना से ही तो सरकार की नीयत का पता चलता है कि यह वाकई में समस्या का समाधान चाहती है कि पहले की सरकारों की तरह समस्या के समाधान का महज दिखावा करना चाहती है ताकि समस्या का समाधन हो न हो लोगों को दिखाया जा सके कि देखों हम तो दिन रात समस्या के समाधान में ही लगे हुए हैं।
छत्तीसगढ़ की नक्सल समस्या इसी तरह की समस्या है। यह छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पहले से बस्तर में है और छत्तीसगढ़ राज्य बन जाने के दो दशक बाद भी है।इसकी एक वजह यह है कि किसी सरकार ने इसे असंंभव माना। यानी मान लिया कि इस समस्या का कोई समाधान नहीं हो सकता।इसकी दूसरी वजह यह रही कि किसी सरकार ने इसे असंभव तो नहींं माना लेकिन समाधान के लिए गंभीर प्रयास नहीं किए। यानी समस्या समाधान के लिए काम करने का दिखावा किया। ताकि लोगों को लगे की सरकार समस्या के समाधान के लिए प्रयास तो कर रही है लेकिन यह इतनी गंभीर समस्या है कि इसमें वक्त लगता है।
छत्तीसगढ़ में साय सरकार बनने के बाद पहली बार गंभीरता से नक्सली समस्या के समाधान के लिए काम शुरु हुआ। साय सरकार ने साफ कहा कि उसे बस्तर को नक्सलमुक्त करना है। कैसे करना है यह साय सरकार ने कुछ ही महीनों के कार्यकाल में ११२ नक्सलियों का मार कर बता दिया है। सरकार के चार सफळ नक्सल आपरेशन का मकसद नक्सलियों को संदेश देना था कि सरकार उनके सफाए के लिए गंभीर है। सरकार इस तरह के आपरेशन कर नक्सलियों को बताना चाहती थी कि इस सरकार व दूसरी सरकार में जमीन आसंमान का अंतर है।यह सरकार जो कहती है उसके लिए गंभीरता से काम भी करती है।
सरकार चार सफल आपरेशन के जरिए नक्सलियों में मारे जाने का डर पैदा करना चाहती थी,साय सरकार जानती है कि नक्सलियों के सफाए के लिए जरूरी है कि उसमें पुलिस व जवानों का खौफ होना चाहिय़। यह खौफ जब तक पैदा नहीं होगा, नक्सली सरेंडर नहीं करेंगे। सरकार के चार आपरेशन से नक्सलियों में डर पैदा हुआ है कि पुलिस व जवान उसे अब कभी भी,कहीं भी मार सकते हैं। इसी वजह से बस्तर में नक्सलियों ने बड़ी संख्या में सरेंडर करना शुरू कर दिया है। रोज कहीं न कहीं से खबर आ रही है कि आज इतने नक्सलियों ने सरेंडर किया।
सरकार ने नक्सली सफाए के पहले चरण में चार सफल आपरेशन चलाकर नक्सलियों में खौफ पैदा किया कि वह सरेंडर नहीं करेंगे तो मार दिए जाएंगे। अब नक्सलियों के सफाए का दूसरा चरण शुरू हो गया है।सरकार जानती है कि नक्सलियों के सफाए का एक तरीका तो मुठभे़ड़ में घेरकर मार देना है।इस रास्ते मे बाधाएं बहुत हैं। इस रास्ते में बड़ी संख्या में नक्सलियों के मारे जाने पर कई तरह के विवाद होंगे, कई आरोप लगाए जाएंगे, आपरेशन को फर्झी बताया जाएगा। आदिवासियों पर अत्याचार बताया जाएगा।
इससे दूसरा सुरक्षित रास्ता है कि ज्यादा से ज्यादा नक्सलियों का सरेंडर कराना । नक्सलियों का सरेंडर मारे जाने के खौफ से भी होता है और अच्छी पुनर्वास नीति से भी होता है। इसलिए सरकार ने नक्सलियों के सफाए के दूसरे चरण में नक्सलियों से ही आनलाइन सुझाव मांगें है कि वह सुझाव दें कि सरेेंडर करने के बाद उनका पुनर्वास कैसा होना चाहिए। यानी पुनर्वास में उनको और क्या सुविधाएं चाहिए। यानी सरकार अब नक्सलियों के लिए जो नई पुनर्वास नीति बनाएगी वह नक्सलियों के आनलाइन दिए सुझाव के आधार पर बनाई जाएगी।यानी अब छत्तीसगढ़ में नक्सलियों का पुनर्वास नक्सलियों के सुझाव के अनुसार होगा।
नक्सलियों के सफाए के दूसरे चरण मे सरकार नक्सलियों को यह संदेश दे रही है कि सरकार नक्सलियों का सफाया दो तरह से कर सकती है। एक अगर वह सरेंडर नहीं करते हैं तो सीधे आपेरशन चलाकर उनको उनके ही प्रभाव क्षेत्र में मार गिराया जाएगा। दूसरा वह सरेंडर करते हैं तो उनको जैसा पुनर्वास चाहिए वैसा पुनर्वास करने को सरकार तैयार है। साय सरकार राज्य की पहली सरकार है जो नक्सलियों के सफाए के लिए सख्त व नर्म दोनों तरह के कदन उठा सकती है।
नक्सलियों को चार सफल आपरेशन कर बता दिया है कि वह सरेंडर न करने वाले नक्सलियों के लिए कितनी सख्त हो सकती है और पुनर्वास के लिए सुझाव मांग कर यह भी साफ कर दिया है कि वह नक्सलियों के लिए नरम हो सकती है तो कितनी नर्म हो सकती है। साय सरकार ने अब गेंद नक्सलियों के पाले में डाल दी है। अब नक्सलियों को तय करना है कि वह क्या चाहते है।