डकैत गुड्डा के पहले मर्डर की कहानी…: खुद की बहन का कत्ल किया, फिर आरोप में एक युवक की खोपड़ी उड़ा दी

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भाेपाल\मुरैना42 मिनट पहलेलेखक: संतोष सिंह

चंबल का कुख्यात डकैत गुड्डा गुर्जर अब जेल में है। उसने एक 19 साल के लड़के की हत्या कर अपराध की दुनिया में कदम रखा था। आज आपको बताते हैं उस परिवार की कहानी, जिस पर गुड्‌डा ने पहला कहर ढाया था।

बात 21 साल पुरानी 2001 की 24-25 जनवरी की रात की है। जगह लोहगढ़ थी। लोहगढ़, ​​मुरैना-ग्वालियर रोड पर जड़ेरुआ औद्योगिक पार्क के पीछे बसा एक छोटा सा गांव है। गुड्डा गुर्जर आया और उसने 19 साल के परशुराम के सिर में गोली मार दी। इस हत्या के बाद परशुराम का परिवार इतना टूट गया कि उसने गांव ही छोड़ दिया। बेटे की हत्या का सदमा पिता बर्दाश्त नहीं कर पाया। उसकी मौत हो गई। चार बच्चों को लेकर उनकी विधवा रामवती को गांव से पलायन करना पड़ा।

ये परिवार उस दर्दनाक मंजर से आज भी उबर नहीं पाया। अब भी दहशत में है। दैनिक भास्कर परशुराम के परिवार को ढूंढ निकाला। जब उनके घर पहुंचे, तो परिवार के एक सदस्य ने बंदूक निकाल ली। बोला- यहां का पता कैसे मिला, मेरा पता तो पुलिस को भी नहीं मालूम है। हमने उसे समझाया, तब जाकर वह बात करने को तैयार हुआ।

परशुराम के भाई का कहना है कि गांव छोड़े हमें 21 साल हो गए। हमारा नया पता न तो पुलिस जानती है, न प्रशासन तो तुम कैसे पहुंच गए। जब उसे समझाया तो वो बात करने के लिए तैयार हुआ।

परशुराम के भाई का कहना है कि गांव छोड़े हमें 21 साल हो गए। हमारा नया पता न तो पुलिस जानती है, न प्रशासन तो तुम कैसे पहुंच गए। जब उसे समझाया तो वो बात करने के लिए तैयार हुआ।

बंदूक निकाल लाया; बोला- यहां तक कैसे आ गए
भोपाल से 427 किमी की दूरी तय कर हम मुरैना पहुंचे। मुरैना से 25 किमी दूर लोहगढ़ गांव है। बेटे परशुराम गुर्जर की हत्या के कुछ समय बाद ही परिवार गांव छोड़कर चला गया। परिवार का बड़ा बेटा मुरैना में रहता है। मां रामवती और दूसरे बेटे मुरैना से 50 किमी दूर जौरा के महावीरपुरा गांव में रह रहे हैं। महावीरपुरा गांव के लोग भी इस परिवार को पूरी तरह से नहीं जानते। महावीरपुरा गांव चंबल के किनारे का आखिरी गांव है। बीच में नदी है और इसके बाद राजस्थान की सीमा शुरू हो जाती है।

परशुराम के बड़े भाई बादाम के बारे में एक छोटी सी सूचना मिली थी। इसी आधार पर मुरैना कस्बे में उसकी तलाश शुरू की। 20 से ज्यादा लोगों से पूछताछ, गलियों में 6 किमी भटकते हुए आखिरकार हमें बादाम के घर का पता लग पाया। यहां हमारी मुलाकात बादाम से हुई। परिचय देकर बातचीत शुरू की। बातचीत के दौरान हमारी कार का ड्राइवर बंटी पहुंच गया। बंटी के लोकल होने की वजह से बादाम भड़क गया। उसे संदेह हुआ कि ड्राइवर ही हमें उस तक लेकर आया है।

वह कमरे में गया और बंदूक उठा लाया। बोला- मेरे घर का पता गांव में किसी को नहीं मालूम, पुलिस प्रशासन तक को कुछ नहीं पता। मैं 21 साल से गांव के किसी व्यक्ति से संपर्क नहीं हूं। फिर आप कैसे आ गए? उसे बड़ी मुश्किल से समझाया। अपने आईडी कार्ड दिखाए, मुरैना एएसपी रायसिंह नरवरिया से फोन पर बात कराई, तब जाकर वह आगे बातचीत को तैयार हुआ।

परशुराम के बड़े भाई बादाम बताते हैं कि पहले डकैत गुड्डा गुर्जर ने परशुराम के सिर में गोली मारी, फिर उसे कुल्हाड़ी से काट दिया। ऐसा लग रहा था कि वह परशुराम को मारने के ही इरादे से आया था। अगले पैरा में पढ़िए, क्या हुआ था उस रात...

परशुराम के बड़े भाई बादाम बताते हैं कि पहले डकैत गुड्डा गुर्जर ने परशुराम के सिर में गोली मारी, फिर उसे कुल्हाड़ी से काट दिया। ऐसा लग रहा था कि वह परशुराम को मारने के ही इरादे से आया था। अगले पैरा में पढ़िए, क्या हुआ था उस रात…

फिर लौटते हैं 2021 में, जिस दिन गुड्डा ने परशुराम की हत्या की थी
बादाम गुर्जर कहते हैं आज भी वो पल नहीं भूला हूं। हम 5 भाई थे। मैं सबसे बड़ा (43 वर्ष) का हूं। मेरे से छोटा दूसरे नंबर का परशुराम था। 2001 में तब उसकी उम्र 19 साल थी। तीन और भाई घनश्याम, धर्मेंद्र व रामराज हैं। लोहगढ़ गांव में हमारा हंसता-खेलता परिवार था। 10 बीघा जमीन थी। खेती से परिवार का खर्च आराम से चलता था। 24 जनवरी 2001 की सर्द रात थी। भाई परशुराम और परिवार का ही जंडैल गुर्जर कुएं के पास सो रहे थे।

गुड्डा, उसका भाई पप्पू, पिता दाताराम, करतार और महेश कुएं के पास पहुंचे। सभी के हाथ में बंदूक और कुल्हाड़ी थी। आते ही गुड्‌डा ने परशुराम के सिर में गोली मार दी। इसके बाद उसने कुल्हाड़ी से उसे काट दिया और सब भाग गए। जंडैल को कुछ नहीं किया। वह चीखते हुए आधी रात को हमारे घर पहुंचा। हम सो रहे थे। उसने बताया कि गुड्डा ने परशुराम को मार डाला। मैं, पापा सरदार सिंह और मां रामवती के साथ दूसरे भाई दौड़कर मौके पर पहुंचे। तब तक परशुराम दम तोड़ चुका था। पुलिस ने अगले दिन पीएम कर हमें लाश सौंप दी।

पीछे जो महिला हैं, वो बादाम की पत्नी हैं। एक समय ऐसा भी आया था कि गुड्डा के डर से इनकी सगाई टूट गई थी। समाज के बड़े लोगों ने रिश्तेदारों ने समझाया, तब जाकर बादाम की इनसे शादी हो पाई। पास में जिसे देख रहे हैं, वो बादाम की बिटिया है।

पीछे जो महिला हैं, वो बादाम की पत्नी हैं। एक समय ऐसा भी आया था कि गुड्डा के डर से इनकी सगाई टूट गई थी। समाज के बड़े लोगों ने रिश्तेदारों ने समझाया, तब जाकर बादाम की इनसे शादी हो पाई। पास में जिसे देख रहे हैं, वो बादाम की बिटिया है।

अपनी बहन की हत्या का दोष भाई पर मढ़ता था
बादाम आगे कहते हैं कि पुलिस ने रंजिश का मामला दर्ज किया था, लेकिन परशुराम की हत्या के 6 महीने पहले गुड्‌डा ने अपनी बहन की हत्या कर उसकी लाश को जला दिया था। इस मामले में कोई केस दर्ज नहीं हुआ था। गुड्डा इसका आरोप परशुराम पर मढ़ता था। उसका कहना था कि परशुराम के कारण उसे अपनी बहन को मारना पड़ा। हालांकि, आज तक इस बात का कोई आधार नहीं मिला है।

लड़की वाले कहते थे एक की हत्या हो गई, दूसरे का क्या भरोसा
बादाम बताते हैं, भाई की हत्या से पहले मेरी सगाई गुड्‌डी बाई से हो चुकी थी। एक महीने बाद शादी की तारीख तय हुई थी। इस हत्या के बाद मेरी सगाई टूट गई। सदमे में 9 महीने बाद सितंबर 2001 में पिता सरदार सिंह की मौत हो गई। मेरे परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा।

गुड्‌डी बाई के घरवाले ये कहते थे कि उस परिवार में कैसी अपनी छोरी ब्याह दूं, अभी एक भाई की हत्या हुई है, पता नहीं कितने लोगों की होगी। वो तो रिश्तेदारों का दबाव था कि एक साल बाद 28 जनवरी 2022 को गुड्‌डी से शादी हो पाई। उस समय गुड्‌डा और दूसरे आरोपी जेल में थे। वो जेल से छूट कर आए तो हमें दहशत के चलते घर-गांव दोनों छोड़ देना पड़े।

यही वह जगह है, जहां परशुराम और उसका परिवार अच्छे से रहता था, लेकिन गुड्डा के कारण उन्हें अपना घर और जमीन दोनों छोड़ना पड़ी। अब इस गांव में विकास हो रहा है। पानी की टंकी बन रही है। स्कूल बेहतर हाे रहा है।

यही वह जगह है, जहां परशुराम और उसका परिवार अच्छे से रहता था, लेकिन गुड्डा के कारण उन्हें अपना घर और जमीन दोनों छोड़ना पड़ी। अब इस गांव में विकास हो रहा है। पानी की टंकी बन रही है। स्कूल बेहतर हाे रहा है।

समाज की पंचायत हो या कोर्ट सब मुकर गए
गांव में समाज की पंचायत हुई। किसी ने साथ नहीं दिया। सभी गुड्‌डा से समझौता करने का दबाव डालने लगे। सब उसी का साथ दे रहे थे। यहां तक कि मेरे पक्ष के सभी गवाह पलट गए। कोर्ट में मेरे समर्थन में कुछ नहीं बचा। मजबूरी में आकर मेरा परिवार भी समझौते को तैयार हो गया। आखिर में हम लोगों ने गांव की 10 बीघा जमीन बेच दी। वहां से मां रामवती हम सभी भाइयों को लेकर मायके जौरा (मुरैना) के महावीर पुरा आ गईं। 50 किमी दूर मामा लोगों के सहयोग से 10 बीघा जमीन खरीदी और वहीं घर बनाकर रहने लगे। भाई की हत्या के बाद प्रशासन ने मुझे बंदूक का लाइसेंस जारी कर दिया था। बंदूक खरीद ली, इस दहशत में कि कहीं गुड्‌डा न हमला कर दे।

बादाम का परिवार नए पते पर सबसे आखिरी छोर पर रहता है। वहां पहुंचने के लिए खेत से होकर जाना पड़ता है। यह सब उन्होंने उस खौफ में किया है, जो 21 साल से इनके दिल में बैठा है। अब गुड्‌डा अब गिरफ्तार हुआ है, तो चिंता कुछ कम हुई।

बादाम का परिवार नए पते पर सबसे आखिरी छोर पर रहता है। वहां पहुंचने के लिए खेत से होकर जाना पड़ता है। यह सब उन्होंने उस खौफ में किया है, जो 21 साल से इनके दिल में बैठा है। अब गुड्‌डा अब गिरफ्तार हुआ है, तो चिंता कुछ कम हुई।

गांव छोड़ा और सिक्योरिटी गार्ड बन गया
परिवार में मैं सबसे बड़ा हूं। परिवार का खर्च चलाने की खातिर मैं मुरैना आ गया। यहां प्राइवेट जॉब करने लगा। पहले एक फैक्ट्री में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी मिली। अब दूसरी जगह काम करता हूं। पत्नी गुड्‌डी बाई के साथ मैं अब मुरैना में रहता हूं। मां रामवती छोटे भाई घनश्याम सहित अन्य के साथ महावीरपुरा में रह रही हैं। मैं भी जाता रहता हूं। भाई की हत्या के 21 साल हो चुके, लेकिन अब भी मेरा परिवार दहशत के साए में जी रहा है। जब तक गुड्‌डा बीहड़ों में था, डर बना रहता था कि कहीं वह मुझ पर या मेरे परिवार पर हमला न कर दे। अब गिरफ्तार हुआ है, तो चिंता कुछ कम हुई।

ये दिन भगवान किसी को न दिखाए
बादाम से छोटे भाई परशुराम की तस्वीर दिखाने को कहा, तो उसने मना कर दिया। बोला कि 2001 में तब कहां इस तरह के मोबाइल थे। उसकी कोई फोटो हमारे परिवार के पास नहीं है। रुंआसा होते हुए कहा कि मेरा भाई मेरे जैसा था। उसकी फोटो नहीं है, लेकिन मेरे दिल में उसकी तस्वीर कैद है। मेरे मरने के बाद ही ये तस्वीर मिटेगी। मेरे भाई का कोई कसूर नहीं था। अपना घर-गांव होते हुए भी हमें पलायन करना पड़ा। ये दिन भगवान किसी को न दिखाए।

बादाम से मुलाकात करने के बाद हम उनकी मां से मिलने महावीरपुरा के लिए निकले। हमने बादाम से कहा कि वहां मां और दूसरे भाइयों को बता दो कि दैनिक भास्कर वाले आ रहे हैं। इस तरह से परशुराम के परिवार से बात हो पाई।

रामवती बताती हैं कि पहले बेटे की हत्या हो गई। फिर इसके सदमे में मेरे पति चल बसे। मां ने अकेले ही परिवार को संभाला। परिवार के सदस्य आज भी सदमे में हैं।

रामवती बताती हैं कि पहले बेटे की हत्या हो गई। फिर इसके सदमे में मेरे पति चल बसे। मां ने अकेले ही परिवार को संभाला। परिवार के सदस्य आज भी सदमे में हैं।

बेटे के सदमे ने पति की जान ले ली
मुरैना से हम बादाम की मां रामवती से मिलने जौरा से आगे महावीरपुरा गांव पहुंचे। यहां गांव वालों से पता पूछा। गांव से 500 मीटर दूर खेत में एक मकान दिखाते हुए ग्रामीण बोले कि वहां चले जाइए। घर तक पहुंचने का रास्ता नहीं था। खेत की पगडंडियों से होकर हम वहां पहुंचे। घर पर उस समय रामवती और उनकी छोटी बहू बच्चों के साथ थीं।

घनश्याम सहित दूसरे बेटे मजदूरी करने गए हुए थे। रामवती से सवाल किया कि आखिर उस दिन क्या हुआ था? बोलीं- मेरे बेटे की कोई गलती नहीं थी। गुड्‌डा ने उसे गोली मार दी। बेटे की मौत का सदमा मेरे पति सरदार सिंह नहीं बर्दाश्त कर पाए। नौ महीने बाद उनकी भी मौत हो गई। बच्चों को लेकर मैंने कैसे जिंदगी गुजारी है, मैं ही जानती हूं। वो तो मायके वालों का सहयोग मिल गया, वरना पता नहीं क्या होता?

आखिर परशुराम मर्डर केस में क्या हुआ
24 जनवरी 2001 में परशुराम मर्डर केस के सारे गवाह पलट गए। किसी ने गुड्‌डा गुर्जर के खिलाफ गवाही देने की हिम्मत नहीं जुटाई। जो वकील था, वो भी पाला बदल गया। ऊपर से पीड़ित बादाम के परिवार पर समाज की पंचायत का दबाव पड़ा। पूरा गांव गुड्‌डा गुर्जर का साथ दे रहा था। पीड़ित परिवार को भी जान से मारने की धमकी मिल रही थी। मजबूरी में वे समझौते के लिए राजी हो गए। बदले में गुड्‌डा के परिवार की ओर से कुछ जमीन दी गई थी। उसे बेच कर परिवार उस गांव से 50 किमी दूर जौरा के महावीरपुरा में बस चुका है। अब इस परिवार के बारे में गांव के अधिकतर लोगों को कुछ पता नहीं। ये परिवार एक तरह से गुमनामी में जी रहा है।

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