स्मार्ट पार्किंग की एक महीने में खुली पोल: फास्ट टैग सेंसर ठीक से नहीं कर रहे काम, कार खड़ी करने पर हो रही डबल वसूली

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इंदौरएक घंटा पहले

शहर में पहली स्मार्ट पार्किंग की शुरुआत राजवाड़ा के पास खजूरी बाजार में जनप्रतिनिधियों ने उपलब्धियां गिनाते हुए की थी लेकिन एक महीने में ही इसकी पोल खुल गई है। स्थिति ये है कि कारों की नंबर प्लेट और फास्ट टैग पढ़ने के लिए मौके पर लगाए गए सेंसर ठीक से काम नहीं कर रहे हैं। जिसका खामियाजा कार चालकों को भुगतना पड़ रहा है।‌ पार्किंग शुल्क की डबल वसूली तक वाहन चालकों से हो रही है। ऐसे समझिए इसे…

स्मार्ट पार्किंग का इंट्री गेट।

स्मार्ट पार्किंग का इंट्री गेट।

आप कार लेकर जाएंगे तो पहले एंट्री गेट पर लगे स्टॉपर से आपका सामना होगा। कार में लगे फास्ट टैग को स्टॉपर के ऊपर की ओर लगा सेंसर रीड करेगा और इसका बाद स्टॉपर ऊपर हो जाएगा और आप कार को अंदर ले जाकर पार्क कर सकते है। जैसे ही कार का नंबर सेंसर रीड करेगा वहां मौजूद कर्मचारी जिसके हाथों में पीओएस मशीन की तरह एक मशीन है, उसमें मैसेज आ जाएगा। मैसेज में गाड़ी का नंबर, समय आदि की जानकारी रहती है। जिससे एग्जिट के समय कितने घंटे खाड़ी पार्किंग में खड़ी रही यह पता चल सके और पार्किंग शुल्क लिया जा सके। मगर हो क्या रहा है उसे पढ़िए…

एंट्री गेट पर लगा सेंसर कई बार कार का नंबर और फास्ट टैग रीड ही नहीं करता है, जिसके कारण कार में बैठे लोग स्टॉपर के हटने का इंतजार ही करते रहते हैं। समय ज्यादा लगने पर यहां हल्की सी चढ़ाई होने से कार अक्सर रिवर्स होने लगती है और पीछे वाली गाड़ी से टकरा भी जाती है। इस वजह से सड़क पर जाम की स्थिति भी बनती है। सेंसर के रीड नहीं करने पर वहां मौजूद कर्मचारी कार को पार्किंग में लेने के लिए रिमोट के जरिए स्टॉपर को ऊपर करता है। इसके बाद कर्मचारी उसके पास मौजूद मशीन में कार का नंबर, टाईम डाल एंट्री करता है। इस दौरान कई बार ऐसा होता है कि बाद में सेंसर से भी कार की एंट्री हो जाती है। इतना ही नहीं सेंसर नंबर प्लेट के स्थान पर अन्य नंबरों के साथ तक कार की एंट्री कर लेता है। एंट्री गेट पर सेंसर ने ठीक से काम करते हुए यदि स्टॉपर को समय पर खोल भी दिया है तो एंट्री में गड़बड़ी कर देता है। कर्मचारी के पास मौजूद मशीन पर जो मैसेज आता है, उसमें कार के नंबर के स्थान पर अलग नंबर ही डिस्प्ले होता है। ऐसे में ये एक पहेली हो जाती है कि कौन-सी गाड़ी किस समय पर पार्किंग में आई थी। इस समस्या के निपटने के लिए टाईम और गाड़ी के नंबर को अलग से नोट करते है। ताकि जब गाड़ी एग्जिट हो तो कितना पार्किंग शुल्क लेना है ये क्लियर हो सके। इसे लेकर कई बार गाड़ी वालों के विवाद भी होते है,क्योंकि उनकी गाड़ी का नंबर नहीं होने से आपत्ति ली जाती है।

एग्जिट के समय ये समस्या

वहीं एंट्री के बाद स्मार्ट पार्किंग से एग्जिट करना भी कार चालक के लिए आसान नहीं है। तय व्यवस्था के तहत जैसे ही कार एग्जिट पॉइंट पर पहुंचेगी वहां नीचे लगा सेंसर कार के पहियों को रीड करने के बाद स्टॉपर को ऊपर कर देगा और कार में लगे फास्ट टैग से जितनी देर कार पार्किंग में खड़ी रही उतने रुपए ऑनलाइन ही वसूल लिए जाएंगे। पार्किंग शुल्क का भुगतान हो चुका है, इसका मैसेज कर्मचारी के हाथ में मौजूद आने पर वह गाड़ी जाने देगा। मगर ऐसा होता नहीं है। कई बार सेंसर नंबर प्लेट और फास्ट टैग रीड ही नहीं करता है। फास्ट टैग से पैमेंट होने के बाद मैसेज आने में समय लगता है। जिस पर कर्मचारी कार चालक से नकद या वहां मौजूद बार कोड को मोबाइल से स्कैन करवाकर शुल्क वसूलता है। एक के पीछे एक कार होने पर इस पूरी प्रक्रिया में समय लगने पर वाहन चालकों को इंतजार करना पड़ता है वहीं कई बार बाद में वाहन चालक ये शिकायत भी करते है कि उन्होंने नकद या मोबाइल से ऑनलाइन पेमेंट कर दिया था और बाद में फास्ट टैग से भी रुपए अकाउंट में से कट गए। बाहर की गाड़ी होने पर कोई शिकायत करने भी वापस नहीं आता है। लोकल वाले जरूर दोबारा आकर शिकायत करते हैं।

कार और बाइक के लिए ये है शुल्क।

कार और बाइक के लिए ये है शुल्क।

रोजाना इतनी कार और बाइक आती है पार्किंग में

कर्मचारियों के अनुसार प्रतिदिन कार की संख्या 125 से 175 के बीच रहती है, जबकि 90 से 100 बाइक पार्किंग के लिए आती है।

बाइक की पार्किंग।

बाइक की पार्किंग।

बाइक और कार का नंबर एक जैसे तो नहीं होगी इंट्री

वहीं एक और समस्या का वाहन चालकों को सामना करना पड़ रहा है। तीन मंजिला पार्किंग में सबसे नीचे खड़ी किसी बाइक का नंबर और कार का नंबर एक जैसा है तो वह एंट्री नहीं करती है। भले ही एमपी 09 के स्थान पर एमएच या अन्य स्टेट लिखा हो या फिर एमपी 09 डब्ल्यूएच या सीझेड हो। वहीं कार पार्किंग में ऊपर मंजिल पर जाने के लिए बना टर्न संकरा होने से कार के बंपर भी क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।

फर्म का कर्मचारी तक नहीं, दिल्ली ही होगी बात

नगर निगम ने पार्क प्लस नाम की फर्म को स्मार्ट पार्किंग का काम दिया है लेकिन यहां कंपनी का एक भी कर्मचारी मौजूद नहीं है। ऐसे में तकनीकी समस्या आने पर कर्मचारी बार-बार कंपनी के दिल्ली स्थित ऑफिस पर फोन करते हैं। तब तक कार चालक इंतजार ही करते रहते है। कई बार रिमोट से भी स्टॉपर नहीं हटता है तो फिर उसे मैन्युअल हटाना पड़ता है।

क्षेत्र के व्यापारी और कर्मचारियों की ये पीड़ा

वहीं क्षेत्र के जो व्यापारी और कर्मचारी दो पहिया वाहन पार्क करने आ रहे है उनका कहना है कि 24 घंटे का पार्किंग शुल्क 50 शुल्क रखा गया है। 4 घंटे के 10 रुपए है और इसके बाद प्रति घंटा 5 रुपए पार्किंग के लगेंगे। क्षेत्र में काम करने वाले वाले कर्मचारी की गाड़ी यदि 10 से 12 या 8 से 10 घंटे भी यहां खड़ी रहती है तो उसे पार्किंग के ही महीने में 1 हजार रुपए से अधिक देना पड़ेंगे जबकि यहां कई कर्मचारी 6 हजार, 8 हजार, 10 हजार रुपए सैलरी पर काम कर रहे है। पहले 300 रुपए महीना लिया जाता है। पार्किंग के पास उपलब्ध करवाने की मांग भी क्षेत्र के व्यापारी और उनके यहां काम करने वाले कर्मचारियों ने की है। फिलहाल औसत 300 रुपए ही महीने के व्यापारी और कर्मचारियों से वसूले जा रहे हैं।

4 नवंबर तक इतना कलेक्शन हुआ

नगर निगम के राजस्व प्रभारी निरंजन सिंह चौहान (गुड्‌डू) ने बताया कि 4 नवंबर तक ऑनलाइन 2 लाख 33 हजार और नकद 2 लाख से अधिक इस तरह कुल करीब साढ़े 4 लाख रुपए की स्मार्ट पार्किंग से वसूली हुई है। स्मार्ट पार्किंग में आ रही समस्याओं को लेकर उन्होंने कहा कि शुरुआत में कुछ परेशानी आती है, जिसे जल्द ही दूर किया जाएगा।

पार्किंग के लिए कार को ऊपर ले जाने वाले हिस्से में टर्न संकरा होने से कई बार कार के बंपर दीवार से टकराकर क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। इसके दीवार पर निशान तक बन गए हैं।

पार्किंग के लिए कार को ऊपर ले जाने वाले हिस्से में टर्न संकरा होने से कई बार कार के बंपर दीवार से टकराकर क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। इसके दीवार पर निशान तक बन गए हैं।

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