प्रेरणा देते हुए मुनिश्री ने कहा: भगवंत हमारे भीतर है, उसे पहचानने की है आवश्यकता

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बड़वानीएक घंटा पहले
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प्रवचन देते मुनि श्री 108 संधान सागर महाराज।
भगवंत हमारे भीतर है। बाहर नहीं। बस उसे पहचानने की आवश्यकता है। हम भी पतित से पावन, पामर से परमेश्वर, कंकर से शंकर, अकिउयन से महान बन सकते हैं। तब जब भीतर के विकारों, दुर्गुणों, दुर्बलता, दुर्भावना को हटाना होगा। बावनगजा में भगवान महावीर स्वामी के सिद्धातों को जीवन में अपनाने की प्रेरणा देते हुए मुनि श्री 108 संधान सागर महाराज ने यह बात कही। गुरुवर ने कहा मारीच से महावीर, भील से भगवान और अंजन से निरंजन बना जा सकता है। इसके लिए आत्मा को पहचानना जरुरी है। उन्होंने कहा गीता महाभारत युद्ध, वहीं भगवान महावीर की अहिंसा। दोनों समान है।
महाभारत में एक तरफ 11 अश्वधारी सेना है तो दूसरी ओर श्री कृष्ण वे भी निहत्थे। मुनि श्री ने कहा 5 कर्म इंद्रीय व 5 ज्ञान इंद्रीय व एक मन ये 11 तथा दूसरी और आत्मा है। आध्यात्मिक साधना करने वाला मात्र आत्मा की ओर दृष्टि रखता है। संसार को बढ़ाने वाले इंद्रीय विषय व मन को ही चाहने लग जाता है। मुनि श्री ने कहा मन को जीतना बहुत जरूरी है। भगवान महावीर से किसी ने पूछा दुनिया का विजेता कौन है। उत्तर दिया मनो विजेता जगतो विजेता। मन को जितने वाला ही जगत को जीत सकता है। आचार्य श्री का एक हायकू मन का काम नहीं करो मन से काम लो मोक्ष।
मुनि श्री ने कहा मन का काम मत करो। आज का व्यक्ति मन का ही काम करने में लगा है। मन को ठंडे बस्ते में डाल दो। जिसने मन को जीत लिया। उसने सब को जीत लिया। जिसकाे मन ने जीत लिया वह सबसे हार गया। इंसान वह जिसकी लगाम उसके हाथ में हो। दूसरों के हाथ में लगाम हो तो वह जानवर है। इस दौरान दिनभर विभिन्न धार्मिक आयोजन हुए। बड़ी संख्या में समाजजन मुनि श्री के दर्शन व प्रवचन सुनने के लिए पहुंचे।
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