पाड़ों की लड़ाई में भारी भीड़-वीडियो: शंकर और भीमा, जानी और बाबा,सहित टाइगर भी मैदान में उतरा

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एक घंटा पहले

धार्मिक नगरी उज्जैन में दीपावली पर्व के बाद प्रतिवर्ष अनूठी परंपराएं अलग अलग क्षेत्रों में देखने को मिलती है। सुबह गोवेर्धन पूजन के बाद इंसानों के ऊपर से गायों को दौड़ाने की परंपरा का निर्वहन हुआ तो वहीं दोपहर में पाड़ों की लड़ाई का नजारा देखने को मिला।

कोरोना के दो वर्ष बाद दीपावली पर्व के बाद एक बार फिर शहर में पाड़ों की लड़ाई देखने को मिली। भूखी माता मंदिर क्षेत्र में कुल 8 जोड़े पाड़ों को मैदान में उतारा गया। जिसमें जानी और बाबा, चौधरी और गेंदीया, टाइगर भी मैदान में आए, और कई घंटो तक जमकर चली लड़ाई। आयोजन में बड़ी संख्या में लोग पहुंचे थे। पाड़ों की लड़ाई का आयोजन शहरी क्षेत्रो से दूर खेतों में किया जाता है पाड़ों के मालिक बताते है की समाज अपने पाड़ों की जोर आजमाइश के लिए दंगल का भी आयोजन रखते हैं, जिसमे दो पाड़ों का आमने सामने मुकाबला होता है। समाजजन कहते है की ऐसे आपस मे मिलना भी नहीं हो पाता लेकिन इस दंगल के बहाने सब समाज जन एक जगह पर इक्कट्ठा हो जाते हैं। दंगल को लेकर पाड़ों की विशेष तौर पर साज सज्जा की जाती है। जिसे देखने बड़ी संख्या में हर वर्ष लोग यहां एकत्रित होते हैं और इस दंगल को लेकर लोगों में खास उत्साह नजर आता है।

पाड़ों के लिए 400 ग्राम सरसो अलसी का तेल, 250 ग्राम शुध्द देशी घी की खुराक

पाड़ों के मालिक ने बताया कि कई वर्षों से उनके पूर्वज पाड़ों की लड़ाई का आयोजन करते आ रहे हैं। यह प्रथा कब से है इसकी जानकारी उन्हें भी नहीं है, आयोजन के दौरान समाज के लोग एक जगह एकत्रित हो सके संभवतः इसी वजह से यह सदियों पुरानी परंपरा चली आ रही है। विशेष आयोजन किया जाता है, पाड़ो की खिलाई पिलाई में काफी ध्यान रखा जाता है, पाड़ो को वजन के हिसाब से नहीँ लड़ाया जाता इन्हें बस सामान्य तरह से लड़वाया जाता है। पाड़ो की खिलाई पिलाई में शुद्ध घी, अंडे, चारा, भूसा, सरसो का तेल व अन्य शामिल है एक दिन का 1000रु तक का खर्च होता है जिसमें 400 ग्राम सरसो या अलसी का तेल 6 से 7 अंडे, 250 ग्राम शुध्द देशी घी खुराक में दिया जाता है। इन्हें मौसम अनुसार डॉ का ट्रीटमेंट साथ ही इनके लिए पंखे कूलर की हवा का भी इंतजाम किया जाता है

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