बात बेबाक: बधाई हो, हैप्पीनेस इंडेक्स ‘मरकरी’ तोड़ चुका है, खुशियों ने माप देना बंद कर दिया है

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भोपालएक घंटा पहले
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- उत्सव के बहाने ‘इनर इंजीनियरिंग’ का मौका, जो हौसले-उम्मीदों के पुर्जे जोड़ अगली दिवाली तक दौड़ने को तैयार कर दे।
मप्र सरकार की हैप्पीनेस मिनिस्ट्री के मुताबिक जब कोई एक व्यक्ति खुश हो तो हैप्पीनेस इंडेक्स जरा सा ऊपर खिसकता है, बहुत जरा सा। जब एक खुश हो और उसे कोई दुखी मिल जाए तो ये इंडेक्स धड़ाम से नीचे भी आ जाता है। लेकिन, अगर कई खुश लोग एक साथ होते हैं तो हैप्पीनेस इंडेक्स बेधड़क बढ़ता जाता है। और अपने सारे हिसाब, सभी रिकॉर्ड तोड़ डालता है। मरकरी तोड़ खुशियों वाले ऐसे ही दिन चौखट पर हैं। और सच मानिए अब तो खुशियों के इंडेक्स ने भी स्वीकार किया है कि त्योहारों के इस मौसम के शुरू होते ही खुशियां इतनी लंबी-चौड़ी हो चुकी हैं कि माप देना बंद कर दिया है।
माना कि बीते दो सालों ने हम-आप में से कइयों की रोशनी छीनी है। बीते वक्त ने चुनौतियां भी कम नहीं दी होंगी। लेकिन बांचना शुरू करें तो नाखुश करने की ये फेहरिस्त इतनी लंबी है कि चौक बाजार की सारी गलियों को सीधा करके नाप लें तो भी कम पड़ जाएं।
सुनो भोपाल…! आज मौका भी है और दस्तूर भी। तो क्यों न सारे गम सब सर्द-गर्म, जिंदगी की रेत पर लिखकर मिटा दें। और वो जो हिस्से आईं अच्छाइयां हैं, खुशियां हैं ना, उन्हें पत्थरों पर दर्ज कर दें, हमेशा के लिए। याद करें वो परंपराएं जो हर घर में मौजूद हैं। बस जरा सा झाड़-पौंछकर फिर उठाने की जरूरत है। वो जो न जाने कितनी पीढ़ियों से साथ हैं।
भोपाल शायद इकलौता शहर होगा, जहां दीपावली पर मेवे-इलायची और जाफरान वाले गुटखे से मेहमानों का स्वागत करने का रिवाज है। भले जमाने भर के रंग और आवाज वाले पटाखे आ गए हों, पर हमारे लड़कों को पोटाश वाली गचकुंडी से दिवाली को गुंजाने का शौक अब भी भरपूर है। पुराने शहर की सेठ-सेठानी वाली गलियां आज भी दिवाली पर बल्ब और फुलझड़ियों से ज्यादा उन जवाहरातों से जगमग होती हैं, जिन्हें बड़े ठाठ से खानदान की बहुएं पहनकर निकलेंगी। तो क्यों न इन संस्कारों के सहारे हथेलियों को खुशियों की दौलत से बोरमबोर कर लें। ठीक वैसे, जैसे बीती बारिशों ने हमारे शहर के तालाब और डेम भरे थे। आखिर 3500 करोड़ रुपए हिस्से आए हैं सरकारी मुलाजिमों के। और हमारा शहर ठहरा बाबुओं का शहर। तो क्या इस दौलत को खर्चने आपकी हथेलियां नहीं खुजला रहीं?
चलिए मत कीजिए पैसे खर्च, लेकिन इस उत्सव के बहाने ‘इनर इंजीनियरिंग’ कर ही डालें। नए चकाचक हौसले, उम्मीदों के पुर्जे जोड़कर एक नई मशीन तैयार कर लें खुद की। जो सालभर दौड़ती रहे… दमा दम। अगली दिवाली तक।
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