37 साल बाद परिवार में जन्मी बेटी तो मनाई दिवाली: ढोल-ढमाके के साथ बेटी का गृहप्रवेश- झूम उठे परिवार के लोग, पूरी हुई भाटिया परिवार की ‘अरज’

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बड़वाह3 घंटे पहले
बड़वाह में समाजिक बदलाव का एक सुंदर उदहारण उस समय देखने को मिला, जब विवेकानंद कॉलोनी में रहने वाले एक सिक्ख परिवार ने परिवार की सबसे छोटी सदस्य के आगमन पर उसका गृह प्रवेश ढ़ोल-ढमाकों के शोर के बीच नाच-गाकर करवाया।
इस दौरान भाटिया परिवार की ख़ुशी देखते ही बन रही थी। छोटे से लेकर बढ़े सभी इस नन्ही परी के आगमन पर बेहद खुश लग रहे थे। आकर्षक विद्युतलड़ियों से जगमगाता घर, मुख्य द्वार पर सजी रंगोली, रंग-बिरंगे गुब्बारों से इठलाती दीवारे और दियो की रोशनी से जगमगाता घर देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो इस कॉलोनी में आज ही दिवाली मनाई जा रही है और हो भी क्यों न 37 वर्षों बाद आज इस घर में बालिका की किलकारी जो गूंजी है। कॉलोनी के अन्य परिवार भी सेवानिवृत प्रधान पाठक सुरजीत भाटिया की खुशियों में शामिल हुए। उन्होंने भाटिया परिवार के कदम की बेहद सराहना की।
दादा बोले हमारी ‘अरज’ पूरी हुई
‘अरज’ जी हां यही नाम है इस नन्ही परी का। ये नाम भी उसके दादा सुरजीत सिंह ने ही दिया है। पोती के गृह प्रवेश के बाद उन्होंने बताया कि बड़े बेटे हरदीप सिंह भाटिया और प्रीतपाल की शादी 11 वर्ष पूर्व हुई थी।इस पूरी अवधि में वह परिवार के पहले बच्चे का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। सुरजीत सिंह अपनी पत्नी के साथ जब भी गुरुद्वारे जाते या बाबाजी को याद करते तो एक ही अरज करते की उनका एवं उनके बेटे का घर बच्चे की किलकारी से गूंज उठे। इतने साल बाद ईश्वर ने उनकी ‘अरज’ सुन ली। बेटी के रूप में जब नन्ही परी घर आई तो उन्होंने पोती का नाम ‘अरज’ रखा है। सुरजीत ने बताया कि उनके दोनों बेटे होने के बाद लम्बे समय से उनकी चाह थी कि घर में एक बेटी का आगमन हो, अपनी पोती को पाकर वे बेहद खुश हूं।
पुणे से छुट्टी लेकर आए चाचा-चाची
सुरजीत सिंह ने बताया कि बड़ा बेटा हरदीप वर्तमान में मुंबई की एक बैंक में ब्रांच मैनेजर है और पिछले दो साल से मुंबई में ही रह रहा है। 29 अगस्त को मुंबई में ही ‘अरज’ का जन्म हुआ था। करीब एक माह तक मुंबई में रहने के बाद अरज अपनी माताजी के साथ नाना-नानी के घर खिड़कियां चली गई थी। जिसके बाद पहली बार वह अपने दादा-दादी के घर आई है। चूंकि पिता को छुट्टी नहीं मिलने पर वह इस ख़ुशी के मौके पर नहीं आ सके, लेकिन पुणे की निजी कम्पनी में कार्यरत अरज के चाचा दिवजोत और चाची हरप्रीत उससे मिलने के लिए छुट्टी लेकर बड़वाह आए है। गृह प्रवेश के पूर्व अरज और उसकी मम्मी को भी चाचा-चाची ही खिड़कियां से लेकर आए थे।
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