MGM मेडिकल कॉलेज में बनेगा प्रदेश का पहला बोन बैंक: जानिए कैंसर, ज्वाइंट रिप्लेसमेंट व बोन डिफेक्ट वाले पेशेंट्स को कैसे मिलेगा फायदा

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इंदौर28 मिनट पहले
मेडिकल क्षेत्र में नई-नई तकनीकों की खोज हो रही है। इसी कड़ी में जल्द ही शहर को एक उम्दा सौगात मिलने वाली है। एमजीएम मेडिकल कॉलेज में जल्द ही बोन बैंक शुरू किया जाएगा। यह मध्य प्रदेश का पहला बोन बैंक होगा। बोन बैंक में खराब हड्डियों को ठीक कर प्रिजर्व करके रखा जाएगा। जिन लोगों के हाथ-पैरों या शरीर के किसी हिस्से की हड्डियां टूट या गल चुकी हैं, उन्हें इस बोन बैंक से खास फायदा मिलेगा। इसके तहत बोन बैंक के माध्यम से टूटी हुई हड्डियां रिप्लेस हो सकेंगी। यहां पढ़िए कब से चल रही थी बोन बैंक बनाने की कवायद, कैसे काम करता है यह बैंक और कैसे होगा इसका संचालन…

दरअसल, इस दिशा में करीब तीन महीने से प्रोसेस चल रही है। इसके तहत एमजीएम मेडिकल कॉलेज ने स्टेट ऑर्गन्स ट्रांस्प्लांट आर्गेनाइजेशन (SOTO) को पत्र लिखकर बोन बैंक शुरू करने की अनुमति मांगी है। मामले में SOTO की टीम ने हाल ही में कॉलेज में इंस्पेक्शन भी किया है। संकेत हैं कि जल्द ही अनुमति मिलने के बाद इसका काम शुरू हो जाएगा। हालांकि इसके लिए कोई विशेष बजट या इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत नहीं है।
कैसे काम करता है बोन बैंक
दरअसल बोन बैंक आई बैंक की तरह होता है। इसमें डोनर द्वारा दान की गई या ऑपरेशन के दौरान निकाली जाने वाली हड्डियों को डीप फ्रीजर में -40 से -80 डिग्री सेल्सियस तापमान में रखा जाता है। इसके पूर्व प्रिजर्व की जाने वाली हड्डियों में एंटीजन, इंफेक्शन की पूरी जांच की जाती है और छह माह डीप फ्रीजर में रखने के बाद इनका उपयोग किया जाता है।
ऐसे होगा बोन बैंक का संचालन
– कई बार ऑपरेशन के दौरान कुछ हड्डियां निकालना पड़ती हैं, जो अच्छी होती है। इन हडिड्यों को प्रिजर्व कर बैंक में रखा जाएगा।
– कुछ हड्डियां जो खराब हो जाती हैं, लेकिन उन्हें ठीक किया जा सकता है। ऐसी हड्डियां भी बोन बैंक में ठीक कर रखी जाएंगी।
– खास बात यह कि खून की तरह हड्डियों में किसी ग्रुप का मैच होना जरूरी नहीं होता।
– कैंसर के पेशेंट जिनकी हडि्डयां बीच में से गल जाती है, जॉइंट रिप्लेसमेंट या हड्डी में कोई बड़ा डिफेक्ट हो, उन पेशेंट्स की हड्डियां बोन बैंक के माध्यम से रिप्लेस हो सकेंगी।

– दुर्घटना या हादसे में टूटी हडिड्यां भी रिप्लेस की जा सकती हैं, लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है कि मानव शरीर में कमर के पास उसका खुद का बोन बैंक है। कुछ हड्डियां वहीं से रिप्लेस की जा सकती हैं। ऐसे में हादसे में टूटी हड्डियों के मामलों में बोन बैंक की जरूरत कम ही पड़ेगी। बोन बैंक का फायदा उन पेशेंट्स को ज्यादा मिलेगा, जिनकी हड्डियां कैंसर या अन्य बीमारियों के कारण गल चुकी है।
– मृत व्यक्ति के परिजन की सहमति से भी बोन ली जा सकती है। इसके लिए बोन का निचला हिस्सा कल्चर टेस्ट के लिए भेजा जाता है। उसे आधे घंटे तक एंटीबायोटिक्स सॉल्यूशन में रखा जाता है।
– किसी भी प्रकार की बोन को स्टेंडर्ड प्रोटोकॉल के तहत स्टरलाइज करके ही बोन बैंक में रखा जाता है।
– जहां तक एमजीएम मेडिकल कॉलेज का सवाल है, उसके पास -80 डिग्री सेल्सियस के पैरामीटर वाला फ्रीजर है। इसके साथ ही अन्य संसाधन भी हैं और आर्थोपेडिक एक्सपर्ट्स भी। ऐसे में बोन बैंक के लिए खास इन्वेस्टमेंट या संसाधन की जरूरत नहीं है।
– देश में बोन बैंक टाटा मेमोरियल अस्पताल, कोटा, सूरत व कुछ सीमित शहरों में ही है। मप्र में पहला बोन बैंक इंदौर में होगा।
इंडियन ऑर्थोपेडिक की नेशनल कॉन्फ्रेंस में भी लगी मुहर
शनिवार को इंडियन ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन एमपी चैप्टर की 40वीं नेशनल कॉन्फ्रेंस के दूसरे दिन आयोजित वर्कशॉप में एमजीएम मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. संजय दीक्षित ने कॉन्फ्रेंस की मैनेजिंग बॉडी को 6 पॉइंट मिलने की बधाई दी। इसके साथ ही उन्होंने प्रदेश के पहले बोन बैंक को बनाने की घोषणा भी की। उन्होंने कहा हम जल्द ही एमजीएम मेडिकल कॉलेज में बोन बैंक बनाने जा रहे हैं, जिसका फायदा मरीजों के साथ डॉक्टरों को भी होगा। कार्यक्रम के अतिथि सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जे.के माहेश्वरी थे। उन्होंने कहा कि डॉक्टरों की सामाजिक छवि ईश्वर के समान है। मैंने हमेशा चिकित्सकों को समाज के लिए अच्छा करते देखा है, इसलिए डॉक्टरों को परोपकार से पीछे नहीं हटना चाहिए और आने वाली पीढ़ी को भी समाज सेवा के हित में काम करना सीखना चाहिए।
हर सर्जरी में इन्फेक्शन से बचाव की स्ट्रैटजी तैयार करें

कार्यक्रम मे डॉ. डी.के. तनेजा को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया
कार्यक्रम मे डॉ. डी.के. तनेजा को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। को-ऑर्गनाइजिंग सेक्रेटरी डॉ. अरविन्द वर्मा जांगिड को उत्कृष्ट कार्य हेतु सम्मानित किया गया। इस मौके पर इंडियन ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन एमपी चैप्टर के सेक्रेटरी डॉ. साकेत जती ने इन्फेक्शन को कैंसर और हार्ट की बीमारी जैसा घातक बताया। उन्होंने कहा हमें जोड़ की हर सर्जरी में इन्फेक्शन से बचाव की स्ट्रैटजी तैयार करके सर्जरी करनी चाहिए। कॉन्फ्रेंस को नेशनल और इंटरनेशनल फैकल्टी ने संबोधित किया।
रिप्लेसमेंट को आखिरी ऑप्शन में रखें
गठिया की बीमारी पहले 65-70 की उम्र में दिखती थी। लेकिन अब 45-50 की उम्र के लोग प्रायमरी ओस्टियो आर्थराइटिस से पीड़ित हैं। लोग ये नहीं जानते कि रिप्लेसमेंट से पहले इसके और भी इलाज मौजूद हैं। जैसे एक्सरसाइज जो मसल्स को स्ट्रांग करें, लाइफ स्टाइल में बदलाव और वजन कम रखना जरूरी है। फूड और न्यूट्रिशन भी जोड़ को बचाने के लिए कारगर होते हैं। यह कहना है पुणे से आए सीनियर ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. पराग संचेती का। उन्होंने कहा इन दिनों जॉइंट प्रिजर्वेशन सर्जरी (एचटीओ) को भी बहुत महत्व दिया जा रहा है। जिसमें बैंड हो चुकी हड्डी को चीरा लगा कर सीधा कर दिया जाता है। महिलाओं में रिप्लेसमेंट सर्जरी पुरुषों के मुकाबले ज्यादा हो रही है। पहले जहां देश में साल भर में नी रिप्लेसमेंट की सिर्फ 50 हजार सर्जरी होती थी। वहीं अब यह आंकड़ा तीन लाख तक पहुंच गया है।
डॉक्टर्स को करनी चाहिए चैरिटी
एसोसिएशन के एमपी चैप्टर के प्रेसिडेंट डॉ. प्रमोद नीमा ने कहा कि पुराने समय में वैद्य मरीजों का इलाज करते थे, लेकिन धन की अपेक्षा नहीं रखते थे। वे बगैर कोई शुल्क लिए सेवा भाव से इलाज देते थे। समय के साथ डॉक्टर्स पर कई तरह के भार बढ़ गए व जिम्मेदारियां आ गईं। अब तनाव वाली लाइफ हो गई, जिसके कारण सेवा भाव पीछे छूट गया। अब एक बार फिर डॉक्टर्स को इससे बाहर आने के लिए चैरिटेबल वर्क करने का सोचना चाहिए।
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