छोटे भाई की रगों में दौड़ेगा बहन का खून: …जब ट्रेन की बर्थ में छुपकर PM मोदी के दफ्तर पहुंचा पिता

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इंदौर6 मिनट पहलेलेखक: संतोष शितोले

आज हम आपको ऐसे परिवार से मिलाएंगे जिसकी जिद के आगे मुश्किलें हार गईं। कभी हार्ट तो कभी थैलिसिमिया से बीमार हुए बेटे को बचाने के लिए पिता, मां और बहन का जज्बा एक मिसाल है। आज बेटा बैंगलुरु के अस्पताल में हंस खेल रहा है। घर लौटने को बेताब है तो उसकी वजह यहीं हैं।

इस संघर्ष की कहानी में हम बताएंगे कि बेटे को बचाने के लिए पिता को ट्रेन की बर्थ के नीचे छुपकर 700 किमी दिल्ली तक रातोरात जाना पड़ा, मां क्यों रात 2.30 बजे उठकर खाना बनाती थी, कैसे 13 साल की बेटी ने झटके में कह दिया कि भय्यू के लिए सब करूंगी.. आगे और भी बहुत ही इमोशंस हैं..

पहले परिवार को जान लीजिए

‘मेरा परिवार मालवा के शाजापुर के शहर शुजालपुर का रहने वाला है। एक कमरे में रहते हैं। मुखिया ऑटो चलाता था। पहला ऑटो बच्चे के जन्म के समय सात साल पहले इलाज में बिक गया। दूसरा कोरोना काल में किश्त नहीं भरने पर कंपनी सीज करके ले गई।

घर में पत्नी के अलावा बेटी चुनचुन (13) और बेटा विनायक (7) है। बेटे को बचपन से ही थैलिसिमिया की बीमारी थी। इस कारण खून नहीं बनता था। हर 15 दिन में उसे एक बोतल खून चढ़ाने के लिए इंदौर एमवाय लाना पड़ता था। अब वो सात साल का है और उसकी बड़ी बहन ने उसे बोन मेरो दिया है।

अब दोनों ठीक है। अब उसे खून की जरूरत नहीं पड़ेगी। इलाज में 22 लाख का खर्च आया है।’

अब बताते हैं कि बेहद गरीब परिवार में कैसे दुख का पहाड़ आया और उसने इससे कैसे पार पाया… परिवार की जुबानी

’19 जनवरी 2015 बेटा विनायक जन्मा। खूब खुशी थी..। लेकिन कुछ देर में ही काफूर हो गई। पता चला हार्ट में प्रॉब्लम है। एक कमरे में रहते हैं। काम ऑटो चलाने का था। जो प्रॉब्लम बताई यह सुनकर हमारे पैर से जमीन खिसक गई थी। बड़ी बेटी चुनचुन तब सात साल की थी। मैंने बेटे (अब विनायक उर्फ भय्यू) को शुजालपुर में डॉ. एसएन गुप्ता को दिखाया। भोपाल में ECG कराई। रिपोर्ट देख डॉक्टर ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि इसका तत्काल ऑपरेशन होगा। इसके लिए बैंगलुरु या दिल्ली ले जाना पड़ेगा।

2015 में तब स्थिति थी कि यह ऑपरेशन मप्र में नहीं होता था। हम बच्चे को लेकर बैंगलुरु चले गए। जांच के बाद डॉक्टरों ने हार्ट के इलाज के लिए 4.5 लाख का खर्च बताया। चूंकि यह बहुत जरूरी था। जमा पूंजी के अलावा ऑटो बेचकर बेटे का ऑपरेशन करा लिया। लगा कि अब सबकुछ ठीक हो गया है। हम लौट आए। बच्चे की हार्ट की दो नसें बंद थी जिसे खोल दीं।

बहरहाल, सर्जरी अच्छी हुई और अपने लाडले को लेकर शुजालपुर आ गए। हम निश्चिंत थे कि अब बच्चे पर मंडरा रहा खतरा टल गया है लेकिन जिंदगी में फिर नई परेशानी खड़ी हो गई।

छह माह बाद एक रात भैय्यू को अचानक बुखार आया। हम उसे अस्पताल ले गए तो बताया गया कि उसे एडमिट कना पड़ेगा। यहां जांच में पता चला कि उसकी हीमोग्लोबिन 6 ग्राम है। डॉक्टरों ने बताया कि इसकी थैलेसीमिया की जांच करानी पड़ेगी। हमने जांच कराई तो थैलेसिमिया ही निकला।

बस यहीं से संघर्ष का अगला दौर शुरू हो गया। बोन मैरो ट्रांसप्लांट (BMT) कितना महंगा है यह कई बार सुना था। जब परिवार में ऐसी बात हुई तो हम घबरा गए थे। अब इतना पैसा कहां से लाएंगे।

इस बीच हमने भोपाल में बच्चे का इलाज शुरू कराया। महीने में दो बार उसे लेकर भोपाल जाना पड़ता था। हमें इसके लिए एक बार में साढ़े तीन हजार रुपए लगते थे। इस दौरान हमने नियमित बच्चे को ब्लड चढ़वाया। इस बीच हमें पता चला कि थेलेसीमिया के मरीजों को सरकार की ओर से एमवाय अस्पताल में सुविधाएं मिलती हैं और ब्लड भी फ्री में मिलता है।

बच्चा जब एक साल का हो गया तो हम उसे एमवाय अस्पताल ले जाने लगे। उसे यहां भी हर 15 दिनों में ब्लड चढ़वाने के लिए इंदौर आना पड़ता था। इस दौरान हर बार आने-जाने, ऑटो, खाने-पीने का खर्चा 1000-1200 रुपए लग जाता था। यह संघर्ष साढ़े छह साल तक चला।

बच्चे को ब्लड चढ़वाने इंदौर जाना हो तो हमें रात को ढाई बजे उठना पड़ता था। सुबह से उठकर नहाने के साथ पूजा-पाठ भी करनी होती थी। पत्नी रात को ही खाना बनाती, बेटी को स्कूल के लिए तैयार करती। तब हम दोनों बेटे को लेकर सुबह छह बजे इंदौर के लिए निकल जाते थे। घर की चाबी बेटी को ही दे देते थे कि उसकी स्कूल मिस न हो। वह अकेले ही स्कूल से आकर रहती थी। उसे भी भाई की तकलीफ का अहसास था।

इंदौर जाने से एक दिन पहले सिविल अस्पताल जाकर बेटे का एचबी भी टेस्ट कराना पड़ता था। इंदौर में दिनभर में ब्लड लगवाकर रात को 10-11 बजे शुजालपुर लौट आते थे। आर्थिक परेशानी इतनी बढ़ गई कि मुझे बच्चे के इलाज के लिए मुझे ऑटो बेचनी पड़ी। दूसरी ऑटो कोरोना में किश्त नहीं भरने के कारण फाइनेंस वाले ले गए।

मासूम विनायक उर्फ भय्यू। यह तस्वीर बैंगलुरु के अस्पताल की है।

मासूम विनायक उर्फ भय्यू। यह तस्वीर बैंगलुरु के अस्पताल की है।

इलाज के लिए 20-22 लाख रुपए सुनते ही लगता था डर

बच्चा सात साल का होने पर पता चला कि थेलेसीमिया का इलाज बोनमैरो ट्रांसप्लांट से भी हो सकता है लेकिन 20-22 लाख रु. के इलाज का खर्चा सुनते ही डर लगता था। इस बीच हम एक परिचित के माध्यम से पुरुषोत्तमजी के संपर्क में आए। उन्होंने कहा कि चिंता मत करो। भगवान के आशीर्वाद से सब हो जाएगा। बैंगलुरु जाकर से इस्टीमेट बनाकर ला दो। उधर कोल इंडिया और प्रधानमंत्री कार्यालय से इलाज की राशि की प्रक्रिया पूरी करने के साथ सांसद से भी पत्र बनवा लिया था।

ट्रेन में बर्थ के नीचे कपड़ा बिछाकर रातोरात पहुंचे दिल्ली

मुझे बच्चे की बहुत ज्यादा चिंता थी। मैंने भैया से कहा कि यह आवेदन कोरियर करेंगे तो 15 दिनों में पहुंचेगा। मैंने रेलवे में रिजर्वेशन करवा लिया है लेकिन वेटिंग में था। मैं बच्चे को देखते हुए समय जरा भी गंवाना नहीं चाहता था। ट्रेन से दिल्ली के लिए रवाना हो गया। इस दौरान बर्थ नहीं मिलने मैं स्लीपर कोच में बर्थ के नीचे ही फर्श पर कपड़ा बिछाकर सो गया। 14 घंटे बाद मैंने प्रधानमंत्री कार्यालय में आवेदन जमा कर दिया। दिल्ली में एक परिचित के माध्यम से 5-7 दिनों में ही हमारा आवेदन स्वीकृत हो गया।

मां के साथ बेटा विनायक (भय्यू)

मां के साथ बेटा विनायक (भय्यू)

पापा मैं भय्यू के लिए डोनेट करूंगी

अब बारी बोनमैरो ट्रांसप्लांट की थी। बच्चे को बेंगलूर में एडमिट करने के बाद पता चला कि बोनमैरो अगर फुल मैच होता है तो 20-22 लाख रु. तथा हॉफ मैच होता है तो 40 से 45 लाख रु. खर्च आएगा। हम पति-पत्नी ने 45 लाख का इस्टिमेट देखकर सोचा कि बच्ची का करा लेते हैं। हमने बच्ची का टेस्ट कराया तो फुल मैच मिल गया। अब बारी बेटी चुनचुन की थी जिसकी उम्र 9 साल है। उसे तो जैसे भगवान ने हिम्मत दी। हमने जब उसे सारी स्थिति बताई तो उसने कहा पापा भय्यू को दिक्कत बहुत आती है, आप बार-बार इंदौर ले जाते हो। आपको रात को ढाई बजे उठना पड़ता है। आपको इंदौर से लौटने में रात 11 बज जाती है। हम बार-बार भय्ये को ब्लड लगवाते हैं। मासूम चुनचुन ने यह बातें बताकर उसने एक बार बोनमैरो के लिए हां कर दी। उसने कहा पापा मैं भय्यू के लिए डोनेट करूंगी। यह क्षण हम जिंदगीभर नहीं भूल सकते।

मासूम बच्चों विनायक व चुनचुन के साथ परमार दंपती।

मासूम बच्चों विनायक व चुनचुन के साथ परमार दंपती।

धन्य हैं हम ऐसी बेटी पाकर

बेंगलूर में अष्टमी पर मेरी बेटी चुनचुन ने अपने छोटे भाई (भय्यू) को बीएमटी दिया है। हम धन्य हैं कि हमें ऐसी बेटी मिली। हमारी बच्ची के कारण आज हमारा भय्यू अच्छा खेल रहा है और बातचीत कर रहा है। बेटी को डिस्चार्ज कर दिया है जबकि भय्यू एडमिट हैं। हम खुशनसीब हैं ऐसी बेटी पाकर जिसने अपने से पांच साल छोटे भाई के लिए इतना बड़ा जिगर दिखाया। खुशी इस बात की भी है कि हमारे भय्यू को अब कभी दोबारा खून चढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि अब उसकी रगों बहन का खून में दौड़ रहा है।

संघर्षपूर्ण जिंदगी के बीच कुछ सुकून के पल। दाएं चुनचुन जिसने बैनमेरो दिया

संघर्षपूर्ण जिंदगी के बीच कुछ सुकून के पल। दाएं चुनचुन जिसने बैनमेरो दिया

हमारी जिंदगी में देवदूत बनकर आए ये

बोनमैरो ट्रांसप्लांट के पूर्व एक महीने तक कीमोथैरेपी हुई। फिर बोनमैरा की एक और जांच बैंगलुरु में ही 15 हजार रुपए में हुई। बेंगलूर में हमें पहले ही 20-22 लाख रुपए का इस्टिमेंट दे दिया था। तब मेरे खाते में केवल 9 हजार रुपए थे लेकिन देवदूतों के सहयोग से कोल इंडिया की ओर से अस्पताल को 10 लाख रु., प्रधानमंत्री राहत कोष से 3 लाख रु, मुख्यमंत्री कोष से 2 लाख रु., प्रदेश के स्कूली शिक्षा मंत्री इंदरसिंह परमार के व्यक्तिगत रूप से 3 लाख रु., कलेक्टर दिनेश जैन के प्रयास से रेड क्रॉस समिति की ओर से 50 हजार रु. एकत्रित हुए। समाजसेवी गीत बिंदल का भी काफी सहयोग रहा। उन्होंने डेढ़ लाख रु. से ज्यादा की मदद की। हमें मुख्य समस्या किराने के सामान की थी कि 10-20 हजार रुपए का लेना पड़ेगा तो यह भी उन्होंने अलग से दिलवाया। इसके साथ ही कहा कि अगर अभी भी और रुपए की जरूरत हो घबराए नहीं हम हैं।

सहयोग : पुरुषोत्तम पंजवानी

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