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गंगा में विसर्जन के इंतजार में पति की अस्थियां, आर्थिक तंगी से जूझ रहे परिवार के पास नहीं दो वक्त की रोटी

आर्थिक तंगी के चलते पति की अस्थियां लगभग 1 महीने से घर पर रखी हुई हैं, 30 वर्षीय फूला का दर्द आप उसकी आंखों से समझ सकते हैं। घर में तीन मासूम बच्चों के साथ आर्थिक तंगी झेल रही फूला ने बताया कि मेरे पास जो कुछ था वो मैं अपने पति के अंतिम संस्कार में लगा चुकी हूं, मेरे पास अब इतने पैसे नहीं कि मैं अपने पति के अस्थियों को ले जाकर प्रयागराज में विसर्जित कर सकूं। घर की हालत यह है कि बच्चों के लिए दो वक्त की रोटी भी जुटाना मुश्किल पड़ जाता है।

जानकारी अनुसार छतरपुर के राजनगर तहसील अंतर्गत ग्राम कर्री निवासी फूला आदिवासी के पति हल्काई आदिवासी उम्र 35 वर्ष की 26 अगस्त को मौत हो गई थी। मौत के समय फूला अपने मायके में थी। फूला ने बताया कि उसके परिवार की हालात शुरू से ठीक नहीं है, वे लोग मजदूरी कर अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं। पति पर भारी कर्ज था और इसी चिंता में उसके पति की मौत हो गई। 

दो वक्त की रोटी का भी इंतजाम नहीं
पति की मौत की जानकारी लगते ही फूला मायके से अपने घर वापस आई और लोगों की सहायता से अपने पति का अंतिम संस्कार कर दिया। अब उसकी हालत यह है कि उसके पास दो वक्त की रोटी भी नहीं है और उसके पति की अस्थियां गरीबी के चलते गंगा में विसर्जित होने का इंतजार कर रही हैं। फूला ने सरकार से मदद की गुहार लगाई है कि उसके पति की अस्थियों को गंगा में विसर्जित करने का बंदोबस्त किया जाए।

समाजसेवियों ने बढ़ाए मदद को हाथ
फूला के पति की मौत के बाद उसके परिवार की मदद के लिए आंगनवाड़ी कार्यकर्ता आगे आई थीं। आंगनवाड़ी सहायिका कुंती रैकवार ने बताया कि फूला आदिवासी की आर्थिक हालत बेहद गंभीर है। उसके पति की मौत हो जाने के बाद उसके पास अपने बच्चों के भरण-पोषण करने के लिए कोई साधन नहीं है, साथ ही वह दिन भर अपने पति की अस्थियों को गंगा में विसर्जित करने के लिए चिंतित रहती है। हम सभी से जो कुछ बन रहा है, हम लोगों ने मदद की, लेकिन तीन मासूम बच्चों के भरण-पोषण के लिए सरकार को मदद करनी चाहिए। हालांकि स्थानीय समाजसेवी अपने स्तर पर कुछ न कुछ मदद कर रहे हैं लेकिन तीन बच्चों के भविष्य के लिए वह पर्याप्त नहीं है।

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