राष्ट्रसंत कमलमुनि कमलेश बोले: साधना के स्थल को विलासिता के रूप में विकसित करना संस्कृति के साथ कुठाराघात

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मंदसौर6 घंटे पहले
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मंदसौर। तीर्थ स्थल हमारी आस्था का प्रतीक है।महापुरुषों की साधना और उपासना का केंद्र है। मानवीय गुणों के विकास के लिए ऑक्सीजन से भी महत्वपूर्ण है। ऐसे में तीर्थ स्थल को पर्यटन के रूप में बदलने की सरकारी की नीति का मैं कड़ा विरोध करता हूँ। उक्त उद्गार राष्ट्र संत श्री कमलमुनि कमलेश ने विश्व पर्यटन दिवस पर कहें। संतश्री ने कहा कि साधना के स्थल को विलासिता का स्थल बनाना संस्कृति के साथ कुठाराघात होगा। इससे बड़ा महापुरुषों का और अपमान कोई नहीं हो सकता है। मुनि कमलेश ने बताया कि दूल्हे और साधक के परिवेश में जितना अंतर होता है उतना ही अंतर तीर्थ स्थल और पर्यटन स्थल में होना चाहिए।
राष्ट्रसंत ने दुख के साथ कहां की सरकार ने जिनको पवित्र तीर्थ स्थल के रूप में घोषित कर रखा है, वहां से तत्काल शराब, मांस की दुकानें हटाए अथवा पवित्र तीर्थस्थल शब्द को वापस लें। संत श्री ने कहा कि धर्मस्थल की आचार संहिता के खिलाफ कोई अनैतिक कार्य करना महापुरुषों के सिद्धांतों को कुचलने के समान है। इसे क़तई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
इस अफ़सर पर अखिल भारतीय जैन दिवाकर विचार मंच नई दिल्ली के पूर्व राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मदनलाल जैन उदयपुर का संघ की ओर से स्वागत किया गया। संचालन अजीत खटोड़ ने किया।
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