नदी में बहे तहसीलदार की दूसरी बार अंत्येष्टि: 5 नाव, 50 कर्मचारी और SDRF ने 9 दिन तलाशा; फिर भी पहचानने में हो गई चूक…

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महेंद्र ठाकुर (सीहोर)36 मिनट पहले
सीहोर के रहने वाले तहसीलदार नरेंद्र ठाकुर के लापता होने और उनका शव मिलने के मामले में नया मोड़ आया है। तहसीलदार 15 अगस्त की रात सीवन नदी में बह गए थे। 5 नाव, 50 कर्मचारी और SDRF की टीम ने 9 दिन तक उन्हें खोजा। टीम को एक शव मिला। परिवार ने कद काठी देखकर उनकी शिनाख्त कर अंतिम संस्कार कर दिया। फिर 10 सितंबर को नदी में एक और शव मिला, तब पता चला कि पहले जिस शव का अंतिम संस्कार किया वो किसी और का था। जानिए इतनी बड़ी चूक कैसे हुई…
दूसरी बार सीवन नदी में मिले शव के गले में मिली चेन और टी-शर्ट से तहसीलदार के परिजनों ने उनकी शिनाख्त की। सवाल उठ रहा है कि पहले जिस शव का अंतिम संस्कार किया गया वो किसका था? अब पुलिस डीएनए जांच की बात भी कह रही है।
आइए, जानते हैं तहसीलदार के लापता होने से लेकर अब तक की पूरी कहानी…
पहले जानते हैं, मामला क्या है?
सीवन नदी में 15 अगस्त की रात तहसीलदार नरेंद्र सिंह ठाकुर और पटवारी कार समेत बह गए थे। दो दिन बाद पटवारी का शव तो मिल गया, लेकिन तहसीलदार की तलाश 9 दिन तक चली, इसके बाद जो शव मिला। परिवार ने कद-काठी देखकर उसे तहसीलदार का शव माना और अंतिम संस्कार कर दिया। साथ ही डेथ सर्टिफिकेट भी बन गया।
धीरे-धीरे परिवार इस दुख से उबर ही रहा था कि 10 सितंबर को एक शव सीवन नदी में मिला। पुलिस ने इसे लावारिस बताकर दफना दिया। शव के गले में सोने की चेन मिलने की जानकारी पता चली, तो तहसीलदार के परिजन थाने पहुंचे और शव की शिनाख्त दोबारा करने का दबाव बनाया। शव के साथ मिली चेन और टी-शर्ट की शिनाख्त करते हुए तहसीलदार के बेटे ने उसकी पहचान अपने पिता के रूप में की। शव को कब्र से निकाला गया और फिर से तहसीलदार का दोबारा अंतिम संस्कार किया गया।

25 अगस्त को पहली बार हुए अंतिम संस्कार के लिए खरीदी गई लकड़ी व कंडे की रसीद।
अब जानिए, कब, कहां और क्या हुआ?
15 अगस्त की शाम का समय। सीहोर की सीवन नदी उफान पर थी। शाजापुर जिले में पदस्थ तहसीलदार नरेंद्र ठाकुर और पटवारी महेंद्र रजक अपने घर लौट रहे थे। सीहोर जिले में दाखिल होते ही अंधेरा हो चुका था। सीवन नदी पर बना पुल पार करते समय उनकी कार असंतुलित होकर बह गई। कार के साथ तहसीलदार और पटवारी भी लापता हो गए। दो दिन बाद 17 अगस्त को पटवारी का शव तो मिल गया, लेकिन तहसीलदार का नहीं।
हादसे के 9वें दिन 24 अगस्त को सीहोर पुलिस को 330 किलोमीटर दूर श्योपुर जिले की पार्वती नदी में एक शव मिलने की सूचना दी गई। यह शव 20 अगस्त को ही मिल गया था, जिसे बड़ौद पुलिस ने दफना दिया था, लेकिन तहसीलदार का शव होने की आशंका पर इसे फिर से निकाला गया। सीहोर के मंडी थाना प्रभारी ने बताया कि यह शव तहसीलदार नरेंद्र ठाकुर का है। 25 अगस्त को सीहोर लाकर परिवार की मौजूदगी में शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया। इसके साथ ही डेथ सर्टिफिकेट भी जारी हो गया।

16 सितंबर को दूसरी बार अंतिम संस्कार के लिए खरीदी गई लकड़ी व कंडे की रसीद।
सीवन नदी में मिला शव, तो सामने आई लापरवाही
10 सितंबर को सीवन नदी में सेवनिया ग्राम के पास एक गड्ढे में शव मिला, जो पूरी तरह से सड़ चुका था। पुलिस ने इस शव को लावारिस समझकर दफना दिया। हालांकि, गले में मिली सोने की चेन में ओम वाला लॉकेट होने की बात सामने आने के बाद यह कयास लगाया जाने लगा कि यह शव तहसीलदार नरेंद्र ठाकुर का हो सकता है। इस बात की भनक लगने पर परिवार के लोग थाने पहुंचे। उन्हें सोने की चेन और शव पर मिले कपड़े का टुकड़ा दिखाया गया। सोने की चेन में ओम लिखा लॉकेट देखते ही तहसीलदार के बेटे पुष्पेंद्र ने इसकी पुष्टि कर दी। फिर क्या था। दफन किए गए शव को फिर से बाहर निकाला गया और परिजन को दूसरी बार 16 सितंबर को अंतिम संस्कार करना पड़ा।

10 सितंबर को मिले शव को लावारिस समझकर दफना दिया गया था।
अब जानते हैं कहां हुई लापरवाही
तहसीलदार को खोजने के लिए 5 नाव और 50 से अधिक कर्मचारी लगाए गए थे। इनके साथ ही SDRF की 30 सदस्यीय टीम को भी जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इतने बड़े अमले ने 9 दिन तक तहसीलदार को तलाशा। इसके बाद भी शव मिलने के बाद पहचान करने में चूक कैसे हुई यह बताने को कोई भी पुलिस अधिकारी तैयार नहीं है। श्योपुर के बड़ौद थाना क्षेत्र में पहला शव मिला था।
वहां के थाना प्रभारी राजेश शर्मा ने बताया कि 20 अगस्त को शव मिलने के बाद पुलिस ने दफना दिया था। 24 अगस्त को तहसीलदार नरेंद्र ठाकुर के बेटे, बहन और बहनोई वहां पहुंचे और शव की पहचान करने के लिए आवेदन दिया। शव को फिर से निकाला गया तो कद-काठी देखकर परिजन ने ही शव की पहचान की। इसके बाद शव को परिजन के सुपुर्द किया गया।

16 सितंबर को शव पर मिले कपड़े से पहचान करते तहसीलदार नरेंद्र ठाकुर के परिजन।
अब उलझ गई पहले शव की गुत्थी
10 सितंबर को मिले शव की तहसीलदार के रूप में पहचान होने के बाद यह सवाल उठने लगा है कि 24 अगस्त को जो शव मिला था, वो किसका था। वह शव हादसे वाली जगह से 330 किलोमीटर दूर श्योपुर में मिला था। संभव है कि पहला शव श्योपुर जिले के ही किसी व्यक्ति का हो।
इस मामले में श्योपुर जिले के बड़ौद थाना प्रभारी कहते हैं कि सीहोर के मंडी थाने को इस संबंध में मुझे सूचना देनी चाहिए थी। अगर परिवार शव की पहचान कर लेता है तो पुलिस को पंचनामा करने के बाद शव को सौंपना ही पड़ता है। उनके परिजनों से ही पहचान करने में गलती हुई होगी।

जिस शव को लावारिस समझ दफना दिया गया था, उसके गले में मिली सोने की चेन के आधार पर तहसीलदार के बेटे ने शव उनके पिता का होने की पुष्टि की।
तहसीलदार का बेटा बोला, मेरी हालत ऐसी नहीं है कि कुछ बता सकूं
तहसीलदार के बेटे पुष्पेंद्र ठाकुर से जब इस मामले पर बात की गई तो उसने बताया कि अभी हम इस बारे में कुछ भी बता पाने की स्थिति में नहीं हैं। पहले ही इतना कुछ हो चुका है कि मेरी मानसिक स्थिति ऐसी नहीं है कि कुछ बता सकूं।
कपड़े से की पहचान, श्योपुर में कदकाठी से पहचाना था: सीएसपी
सीहोर सीएसपी निरंजन राजपूत ने बताया कि 10 सितंबर को इलाके की नदी में एक अज्ञात शव मिला था। तहसीलदार के बेटे ने कपड़ों और सोने की चेन के आधार पर अपने पिता के रूप में उसकी पहचान की। ऐसे में परिवार को शव दे दिया गया। श्योपुर में भी तहसीलदार के बेटे ने शव की पहचान की थी। श्योपुर में मिला शव पूरी तरह डिकंपोज हो चुका था, कपड़े नहीं थे। ऐसे में बेटे ने शव की हाइट के अनुसार पहचान की थी। सीहोर में मिला शव तहसीलदार का ही है, इसके लिए हम DNA जांच करा रहे हैं।

16 सितंबर को शव की दोबारा शिनाख्ती के लिए शव निकालने के दौरान मौजूद सीहोर तहसीलदार पूर्णिमा शर्मा।
पहचान करने में हुई थी गलती: तहसीलदार
सीहोर की तहसीलदार पूर्णिमा शर्मा ने बताया कि शव कब्र से निकालने के लिए मेरे पास आवेदन आया था। 16 सितंबर को जिसका अंतिम संस्कार हुआ था, उसकी पहचान तहसीलदार के बेटे ने ही अपने पिता के रूप में की थी। श्योपुर में मिले जिस शव का अंतिम संस्कार किया गया था, उसे पहचानने में गलती हुई थी। दरअसल, अगस्त में श्योपुर जिले में जो शव मिला था, वो काफी डिकंपोज हो गया था, इसलिए ऐसी गलती हुई होगी।
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