6 स्टेप्स में समझिए, कैसे बनती है गोल्ड ज्वैलरी: 10 से ज्यादा कारीगरों के हाथों से होकर गुजरते हैं आपके जेवर

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अमित सालगट/दिव्यराज सिंह राठौर। इंदौर/रतलाम19 मिनट पहले
आज धनतेरस पर आपका प्लान गोल्ड ज्वैलरी खरीदने का तो होगा ही। ज्वैलरी की खूबसूरती और इस पर की गई कारीगरी देखकर ही आप इसे खरीदने का मन बनाएंगे। लेकिन, क्या आपको पता है ज्वैलरी को बनाया कैसे जाता है? इसे तैयार होने में कितना वक्त लगता है? क्यों कहा जाता है सोने से ज्यादा इसकी गढ़ाई (तराशना) महंगी होती है? कितने हाथों से होकर आपकी ज्वैलरी बनकर तैयार होती है?
दैनिक भास्कर ने रतलाम और इंदौर से रिपोर्ट की। प्रदेश में रतलाम का सोना खनक तो इंदौर सोने की सबसे ज्यादा खपत के लिए जाना जाता है। हम आपको ये भी बताएंगे रतलाम की ज्वैलरी सबसे बेस्ट क्यों मानी जाती है? पहले जानते हैं गोल्ड ज्वैलरी कैसे तैयार होती है…
इंदौर और रतलाम के बंगाली कारीगर बताते हैं कि सबसे पहले ज्वैलर्स से उन्हें फाइन गोल्ड मिलता है। इसी से वे ज्वैलरी बनाते हैं। 6 स्लाइड्स में जानिए, आपकी सोने की ज्वैलरी कैसे बनती है…







अब जानते हैं क्यों शुद्ध मानी जाती है रतलामी गोल्ड ज्वैलरी
रतलाम के सोने की शुद्धता और हॉलमार्क पर ग्राहकों का अटूट विश्वास रियासत काल से ही है। पीढ़ियों से यहां के चांदनी चौक में सोने और चांदी का व्यापार हो रहा है। रतलाम का सराफा बाजार प्रदेश ही नहीं, देशभर में सोने की शुद्धता और आभूषणों की कारीगरी के लिए जाना जाता है। यहां बने जेवर पर रतलाम के हॉलमार्क का होना अपने आप में सोने की क्वालिटी की गारंटी माना जाता है। यही वजह है कि यहां खरीदारी करने के लिए राजस्थान और गुजरात के बड़े शहरों से लोग पहुंचते हैं।
सराफा बाजार के व्यापारी मनोज शर्मा बताते हैं कि रतलाम के सराफा मार्केट को यहां की 2 चीजें खास बनाती हैं। पहली- सोने की शुद्धता और दूसरी- आभूषण निर्माण की कारीगरी। यहां के व्यापारियों ने ग्राहकों का ऐसा विश्वास हासिल किया कि स्टैंडर्ड हॉलमार्क व्यवस्था लागू होने के बाद भी रतलाम के स्वर्ण आभूषण शुद्धता के पैमाने पर बेहतर आंके जाते हैं।
आभूषणों में स्टैंडर्ड हॉलमार्क व्यवस्था पिछले कुछ समय से लागू की गई है। लेकिन, रतलाम के सराफा का अपना एक अलग ही स्टैंडर्ड और हॉलमार्क है। वर्तमान स्टैंडर्ड हॉलमार्क लगी हुई ज्वैलरी 91.6 प्रतिशत की होती है। लेकिन, रतलाम सराफा में निर्मित आभूषणों की गुणवत्ता 92 प्रतिशत की होती है। आमतौर पर सामान्य दिनों में भी बाजार में चहल-पहल बनी रहती है। दिवाली और शादियों के सीजन की वजह से रतलाम का सराफा बाजार और भी गुलजार रहता है।

एक नेकलेस को तैयार होने में करीब 4 दिन का वक्त लगता है। इंदौर के सराफा बाजार में करीब 25 हजार बंगाली कारीगर हैं। सराफा बाजार की गलियों में बनी बिल्डिंग की छोटी-छोटी दुकानों में ये बंगाली कारीगर काम करते हैं। जगह इतनी होती है कि वे वहां बैठकर अपना काम कर सकें।
रतलाम सराफा में हर दिन 6 से 10 करोड़ का कारोबार
रतलाम शहर में 200 से अधिक ज्वैलरी शॉप्स हैं। यहां के व्यापारियों के अनुसार सामान्य दिनों में हर दिन 6-7 करोड़, जबकि त्योहार और शादियों के सीजन में हर दिन 10 करोड़ से अधिक का व्यवसाय होता है। रतलाम में मध्यप्रदेश का पहला गोल्ड कॉम्प्लेक्स भी आकार लेने जा रहा है।
पीपीपी मॉडल में बनने वाले गोल्ड कॉम्प्लेक्स की नींव नगर निगम के सामने रखी जाएगी। गोल्ड कॉम्प्लेक्स को जबलपुर की निजी कंपनी बनाएगी। इस गोल्ड कॉम्प्लेक्स में 600 से अधिक दुकान और ज्वैलरी निर्माण की वर्कशॉप होंगी। गोल्ड कॉम्प्लेक्स के प्रोजेक्ट को पीपीपी मॉडल में बनाने के लिए राज्य स्तरीय अधिकार समिति ने मंजूरी दी थी, जिसके बाद जबलपुर के समदड़िया ग्रुप ने इस प्रोजेक्ट को 134 करोड़ रुपए की बोली लगाकर लिया है।

इंदौर में काम करने वाले बंगाली कारीगर अमल जाना ने बताया कि उनके पास 1375 तरह की डिजाइन है। इसमें लॉकेट, कान के झुमके सहित अन्य तरह की डिजाइन है। अगर किसी को डिमांड पर ज्वैलरी बनवाना होती है, तो उसके लिए डाई तलाश करना पड़ती है।
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