300 साल से हो रही है यहां यम की पूजा: ग्वालियर में है यमराज का मंदिर, रूप चौदस को होती है विशेष पूजा

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ग्वालियर20 मिनट पहले
- फूलबाग पर है मारकंडेश्वर मंदिर
दीपावली से ठीक एक दिन पहले रूप चौदस का त्योहार मनाया जाता है। इसे नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली भी कहते हैं। मान्यता है कि इस दिन यमराज को प्रणाम कर के दीपक जलाने से तमाम तरह की परेशानियों और पापों से मुक्ति मिल जाती है। दिवाली से पहले रूप चौदस के दिन यम के लिए दीपक जलाते हैं। ये पर्व नरकासुर और राजाबलि से भी जुड़ा हुआ है।
पुराणों के मुताबिक इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर उबटन, तेल आदि लगाकर स्नान कराया जाता है। ग्वालियर-चंबल अंचल ही नहीं पूरे प्रदेश का एक मात्र यमराज का मंदिर ग्वालियर के फूलबाग पर मारकंडेश्वर मंदिर है। यहां रूप चौदस को ही यमराज मंदिर के पट खुलते हैं। 300 सालों से यहां शहर के लोग यम की पूजा अर्चना करते हैं। यहां यम की विशेष पूजा अर्चना होती है।
सुबह से लगी है मंदिर में भीड़
– रविवार को रूप चौदस है, सिर्फ इसी दिन यम की पूजा अर्चना होती है। ग्वालियर में 300 से 350 साल पुराने मार कंडेश्वर मंदिर में ही यम विराजमान है। यह दुर्लभ मंदिर में यम मंदिर के पट साल मंे सिर्फ एक ही दिन खुलते हैं। यहां रविवार सुबह से ही लोगों की भीड़ लगी हुई है। यहां अकाल मौत से बचने के लिए विशेष पूजा अर्चना के लिए लोगों की भीड़ उमड़ती है।
उबटन और औषधि स्नान
रूप चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर शरीर पर तिल या सरसों के तेल की मालिश करनी चाहिए। औषधियों से बनाया हुआ उबटन लगाना चाहिए। इसके बाद पानी में दो बूंद गंगाजल और अपामार्ग यानी चिरचिटा के पत्ते डालकर नहाना चाहिए। फिर भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण के दर्शन करने चाहिए। ऐसा करने से उम्र बढ़ती है पाप खत्म होते हैं, साथ ही सौंदर्य भी बढ़ता है।
नरकासुर के वध से जुड़ी है यम की पूजा
विष्णु पुराण में नरकासुर वध की कथा है। द्वापर युग में भूमि देवी ने एक क्रूर पुत्र को जन्म दिया। असुर होने से उसका नाम नरकासुर पड़ा। वो प्रागज्योतिषपुर का राजा बना। उसने देवताओं और इंसानों को बहुत परेशान किया। सोलह हजार अप्सराओं को नरकासुर ने कैद किया था। फिर इन्द्र की प्रार्थना पर भगवान कृष्ण ने अत्याचारी नरकासुर की नगरी पर आक्रमण किया। युद्ध में उन्होंने मुर, हयग्रीव और पंचजन आदि राक्षसों को मारा तो नरकासुर ने हाथी का रूप लेकर आक्रमण किया। कार्तिक महीने की चतुर्दशी तिथि पर श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध कर दिया। इसके बाद अप्सराओं और अन्य लोगों को कैद से छुड़ाया। इसलिए भी यह त्योहार मनाया जाता है। इसलिए इस त्योहार का नाम नरक चौदस पड़ा।
अकाल मौत से बचने की जाती है यम की पूजा
कार्तिक महीने के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस दिन अकाल मृत्यु से बचने और अच्छी सेहत के लिए यमराज की प्रार्थना की जाती है। यम, धर्मराज, मृत्यु, अन्तक, वैनस्वत, काल, सर्वभूतक्षय, औदुम्बर, दग्ध, नील, परमेष्ठी, वृकोदर, चित्र और चित्रगुप्त नाम से प्रणाम करना चाहिए। ऐसा करने से उम्र लंबी होती है और अकाल मौत की संभावना न के बराबर रहती है।
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