Entertainment

Cawing Sound : अब नहीं सुनाई देती है कांव-कांव की आवाज, कई पक्षियों की प्रजाति हो रही विलुप्त

काविंग साउंड : वर्तमान समय में शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में जब से मोबाइल टावर का निर्माण हुआ है। टैब से ड्यूक ऑफ आर्काइव्स संकट में पढ़ा गया है। प्राकृतिक पर्यावरण के परिवर्तन एवं मानव जीवन के हस्तक्षेप से भी विभिन्न जानवरों के जीवों पर खतरा मंडराने लगा है। अक्षय तृतीया पर हर घर में पितरों का आशीर्वाद मिलता है लेकिन काऊं को नैवेद्य दिया जाता है, अब काऊ के दर्शन भी दुर्लभ हो गए हैं, यह वास्तु होने के कारण जब सूर्योदय होता है तो लोगों को इसका आभास ही नहीं होता है। समाज में किसी भी मेहमान के आने की पूर्व सूचना देने वाले समाज का सिद्धांत पूरी तरह से समाप्त हो गया है। किसी भी तरह से डाक के डिब्बे में जब कोई घर की मुंडेर पर बैठ कर काँव-काँव की आवाज़ देता है तो लोग मेहमानों के आगमन की निश्चितता बता देते हैं। इन बेजुबान पक्षियों को याद किया जाता था, लेकिन अब लोगों के कान टारे सुनने के लिए चले गए। शहर के चुनिंदा पक्षी प्रेमियों ने अलग-अलग अनोखी संख्या पर अफसोस जताया है। वर्तमान में विभिन्न पक्षी-पक्षियों के समूह होने के कारण अंतिम संस्कार पर पहुंच गए हैं, रोज सुबह दिखने वाले कोए की आंख के अंधेरे में खो गए हैं, प्रातकाल में कौए की कांव-कांव और उनके दीदार की किसी शुभ घटना का सच सामने आ रहा है। भारतीय त्योहारों पर पिंडदान में किन लोगों को भोजन कराना भी समाज की परंपरा समझी गई। इसी प्रकार के पितृ मोक्ष और अक्षय तृतीया पर हर घर में पितरों का आशीर्वाद मिलता है, लेकिन अब कोए के दर्शन भी दुर्लभ हो गए हैं, यह पितृ मोक्ष के कारण होता है, जब सूर्योदय होता है तो लोगों को इसका आभास होता है। ऐसा नहीं होता. इसके लिए मोबाइल टावर का कारण बनता है।

वन विभागों की अनदेखी का असर

वर्षों पूर्व पर्यटन स्थलों व खेत खलियानों में पक्षियों का जमावड़ा देखा जाता था, लेकिन अब इन पक्षियों के नाम व चित्र पुस्तक के पन्नों तक ही सीमित रह गई है। शोभा बढ़ाने वाली बेजुबान पशु पक्षियों के जीवन को सुरक्षित व संवर्धन करने की जिम्मेदारी वन विभाग रही मगर वनविभाग द्वारा इस ओर कोताही बरतने का दुष्परिणाम है कि इनकी दुर्गति समाज को दिख रही है।

Related Articles

Back to top button