2 बच्चों पर 2 टीचर…: MP के सरकारी स्कूलों से 40 हजार बच्चे कहां गए…

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भोपाल40 मिनट पहलेलेखक: अनूप दुबे
देश में पहला चाइल्ड बजट पेश करने वाले MP के सरकारी स्कूलों में बच्चे कम हुए हैं। कुछ स्कूलों में 2 से 5 स्टूडेंट हैं। उनके लिए 2 टीचर हैं। कई स्कूलों में ज्यादा बच्चे दर्ज हैं, लेकिन आते नहीं हैं।
भोपाल से 60 किलोमीटर दूर बैरसिया का रुनाहा गांव। सरकारी प्राइमरी स्कूल में क्लास लगी है। 2 बच्चों को पढ़ाने के लिए 2 टीचर मौजूद हैं। टीचर हेमलता ने बताया कि इस स्कूल में कुल 7 बच्चे दर्ज हैं। आते 2-3 ही हैं। राजधानी के नजदीकी गांवों में रुनाहा के स्कूल जैसे कई स्कूल हैं, जिनमें बच्चों का टोटा है। दरअसल, इस साल प्रदेश के कई सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या घट गई है। इसका खुलासा शिक्षा विभाग द्वारा हाल ही में तैयार एक रिपोर्ट में हुआ है।
शिक्षा विभाग की रिपोर्ट के अनुसार इस साल 2 हजार से ज्यादा ऐसे सरकारी स्कूल हैं, जहां 20 या इससे ज्यादा बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया। 40 हजार से ज्यादा बच्चे टीसी लेकर प्राइवेट स्कूलों में जा चुके हैं। भोपाल जिले में 500 और इंदौर में 2500 से ज्यादा स्टूडेंट्स के सरकारी स्कूलों में नामांकन कम हुए। कई स्कूलों में हालात ये हैं कि छात्रों से ज्यादा संख्या टीचर्स की है। एक स्कूल में तो 2 छात्रों पर 2 टीचर हैं।
दैनिक भास्कर ने सरकारी स्कूलों में घटती छात्रों की संख्या को लेकर पड़ताल की तो सामने आया कि ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोनाकाल के दौरान सरकारी स्कूलों में संख्या बढ़ी थी। स्कूल बंद होने के बावजूद फीस की मांग के कारण लोगों ने अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल से निकालकर सरकारी में भर्ती कराया था।
राजधानी के आसपास के गांवों में कैसे हैं सरकारी स्कूलों के हाल, पढ़िए लाइव रिपोर्ट में…
एक कमरे में 3 क्लास लग रहीं, बच्चे 5
♦ स्कूल: शासकीय माध्यमिक शाला बरखेड़ा कलां
♦ कुल बच्चे: 5 ♦ क्लास: 6वीं, 7वीं और 8वीं ♦ टीचर: 2

शासकीय माध्यमिक शाला बरखेड़ा कलां में 3 क्लासों के कुल 5 बच्चे हैं। इनको पढ़ाने के लिए 2 टीचर नियुक्त हैं। स्कूल के फर्श और दीवारों पर सीलन है, जहां बैठ पाना मुश्किल है।
टीचर समय से पहले 10 बजे स्कूल पहुंचे। दरअसल, उनके आने पर ही ताला खुलता है, क्योंकि चाबी टीचर के पास होती है। महिला टीचर ने चैनल गेट का ताला खोला। अंदर गए तो 3 कमरों पर कक्षा 6वीं, 7वीं और 8वीं लिखा था। पढ़ाई के लिए एक ही कमरा खुला, बाकी कमरों पर लटके तालों की धूल बता रही है कि इन्हें लंबे समय से बंद ही रखा गया है। साढ़े 10 बजे एक बच्चा स्कूल पहुंचा। इसके बाद स्कूल शाला प्रभारी भी पहुंचे। अब तक सिर्फ 2 ही बच्चे क्लास में थे।
बच्चों ने कहा कि साढ़े 3 बजे मैडम के जाते ही स्कूल बंद हो जाता है। सरकार के अनुसार स्कूल का समय सुबह 10.30 बजे से 4.30 बजे तक है, लेकिन यहां टीचर ने अपने हिसाब से आधा घंटा पहले एडजस्ट कर लिया है। यहां बच्चों को सुबह 10 बजे बुला लिया जाता है और साढ़े 3 बजे छोड़ दिया जाता है।
नदी पार करके आते हैं बच्चे
♦ स्कूल: प्राइमरी शाला, बरखेड़ा कलां ♦ बच्चे: 15
♦ मिले: 10 ♦ क्लास : पहली से 5वीं ♦ टीचर: 1

बरखेड़ा कलां के प्राइमरी स्कूल में बच्चे ही सफाई करते हैं। टीचर 2 कमी पैदल चलकर स्कूल पहुंचते हैं। रास्ते में नदी है। नदी पर पुल नहीं है। कई पेरेंट्स अपने बच्चों को कंधे पर बिठाकर नदी पार कराते हैं।
स्कूल के बाहर काफी संख्या में छोटे-छोटे बच्चे खेलते नजर आए। साढ़े 10 बज रहे हैं। टीचर अभी तक नहीं हैं। थोड़ी देर बाद वे दौड़ते हुए स्कूल पहुंचे। स्कूल तक पहुंचना टीचर्स के लिए कम संघर्षपूर्ण नहीं है। 2 किलोमीटर पैदल चलकर वे स्कूल पहुंचे हैं। उन्होंने बताया कि रास्ते में नदी पड़ती है। नदी उतरकर स्कूल आना पड़ता है। जब पानी ज्यादा होता, तो कई पेरेंट्स अपने बच्चों को कंधे पर बिठाकर नदी पार कराते हैं। बच्चों को बीते 3 दिन से मिड डे मील वाला खाना नहीं मिल रहा है। स्कूल में 15 बच्चे दर्ज हैं, लेकिन आज 10 ही आए हैं। खाना नहीं मिलने से उनकी संख्या कम हो गई।
बारिश के सीजन में बंद रहता है स्कूल
♦ स्कूल: प्राइमरी शाला भंरवदा ♦ बच्चे: 17 ♦ मिले: 5
♦ क्लास: पहली से 5वीं ♦ टीचर: 2

प्राइमरी शाला भंरवदा में बच्चों को बैठाने के लिए खाद की खाली बोरियों की चटाई बनाई गई है। स्कूल के दोनों कमरों की दीवारों और छत पर सीलन रहती है। इससे बच्चों के बीमार होने की आशंका भी रहती है।
भंरवदा का प्राइमरी स्कूल खेतों के बीच बना है। यह स्कूल बारिश के दिनों में बंद रहता है। क्योंकि रास्ता ठीक नहीं है। बताया जाता है कि यहां पर कुल 17 बच्चे हैं, लेकिन हमें स्कूल में 5 ही बच्चे मिले। 2 कमरों में लाइट की व्यवस्था नहीं है। एक कमरे में कबाड़ रखा है। अंधेरा और बारिश की सीलन होने के कारण बच्चों को बाहर के ही कमरे में बैठाया जाता है। स्कूल में बच्चों को नीचे बैठाया जाता है। बच्चों ने बताया कि उनको मध्याह्न भोजन मिल रहा है।
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टीचर अंदर बैठे थे, बच्चे बाहर खेल रहे थे
♦ स्कूल: प्राइमरी स्कूल धतुरिया ♦ बच्चे: 30
♦ मिले: 13 ♦ क्लास: पहली से 5वीं ♦ टीचर: 2

प्राइमरी स्कूल धतुरिया में बच्चे तो ज्यादा थे, लेकिन स्कूल सभी नहीं आते। जितने बच्चे आते हैं वे क्लास की बजाय बाहर बैठकर पढ़ते हैं। हालांकि, टीचर क्लासरूम में बैठे हुए थे।
सड़क किनारे बने स्कूल भवन की स्थिति अन्य स्कूलों से अच्छी मिली। शिक्षक क्लासरूम में बैठे हुए थे। बच्चे बाहर खेलते नजर आए। कुछ बच्चे एक पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ रहे थे। धतुरिया के इस स्कूल में 30 बच्चे दर्ज हैं, लेकिन जब हम पहुंचे, तब 13 बच्चे ही थे।
इतना कीचड़ कैसे जाते होंगे बच्चे
♦ स्कूल: माध्यमिक स्कूल धतुरिया ♦ बच्चे: 80
♦ मिले: 20 ♦ क्लास: पहली से 8वीं ♦ टीचर: 4

माध्यमिक स्कूल धतुरिया में प्रवेश करते ही कीचड़ मिला। स्कूल के 2 कमरों में क्लास लगती है। यहां बच्चे फर्श पर बैठकर पढ़ते हैं। बारिश के कारण मैदान के हाल तो और बुरे हो चुके हैं।
माध्यमिक स्कूल धतुरिया के गेट से अंदर जाने के पहले कीचड़ ही कीचड़ है। परिसर बड़ी-बड़ी घास से भरा है। बाउंड्री वॉल नहीं है। अंदर 2 कमरों में क्लास लगी मिली। जमीन पर बैठे बच्चों को शिक्षक पढ़ाते नजर आए। यहां पर न तो पानी और न ही शौचालय की व्यवस्था थी। इन असुविधाओं के बीच 20 बच्चों की क्लास लगी थी।


20 से ज्यादा स्कूलों में छात्र ही नहीं
प्रदेश के 2 हजार से ज्यादा ऐसे सरकारी स्कूल सामने आए हैं, जहां पर पिछले साल की तुलना में बच्चों की संख्या कम हुई है। इनमें से हर स्कूल में 20 या उससे अधिक छात्रों ने अगली क्लास में दाखिला नहीं लिया है। 20 से ज्यादा स्कूल में तो एक भी बच्चे ने अगली क्लास में एडमिशन नहीं लिया। ऐसे में यह स्कूल शून्य हो रहे हैं।

चाइल्ड बजट पेश करने वाला पहला राज्य
मध्यप्रदेश चाइल्ड बजट पेश करने वाला देश में पहला राज्य है। वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा ने 2022-23 का बजट पेश करते हुए कहा था- बच्चों के शैक्षणिक, सामाजिक, भावनात्मक और शारीरिक विकास पर ध्यान देना जरूरी है, इसलिए पहली बार चाइल्ड बजट लाया जा रहा है। इसके जरिए बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण जैसी व्यवस्थाएं सुनिश्चित हो सकेंगी। अभी तक 17 विभागों में बच्चों के लिए चल रही योजनाओं को चिह्नित किया गया है। इनमें चलने वाली योजनाओं को पहली बार एक साथ लिया गया है। सरकार ने बजट में इसके लिए 57 हजार 800 रुपए का प्रावधान किया है।
फैक्ट…
- 10% बजट शिक्षा का है प्रदेश के कुल बजट में।
- 27,792 करोड़ रुपए का बजट रखा है साल 2022-23 में स्कूलों के लिए।
- 10,500 करोड़ का बजट है प्राइमरी स्कूलों की स्थापना के लिए।

करीब 2 हजार स्कूलों में बच्चों की संख्या घटी
इस साल प्रदेश के 52 जिलों में से करीब 2 हजार स्कूलों में छात्रों की संख्या 20 या उससे ज्यादा घट गई है। यह स्थिति सितंबर 2022 के नामांकन के आधार पर की गई है। इसके अनुसार वर्ष 2022-23 सत्र के लिए अब तक नामांकन में स्टूडेंट्स की संख्या में काफी कमी आई है।
वर्ष 2021-22 में 6 लाख छात्र बढ़े थे
साल 2020-21 में प्राइवेट स्कूलों में करीब 71 लाख स्टूडेंट्स थे। कोरोना के कारण वर्ष 2021-22 में निजी स्कूलों में यह संख्या करीब 6 लाख घटकर 65 लाख पर आ गई थी। इस दौरान सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या 75 लाख से बढ़कर 80 लाख के पार पहुंच गई थी। वर्ष 2022-23 के लिए एक बार 2 हजार से ज्यादा स्कूलों में से हर स्कूल में 20 या उससे ज्यादा छात्रों की कमी होने से विभाग में चिंता बढ़ गई है।


ग्राफिक्स- जितेंद्र ठाकुर
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