148 साल पुराना है मांढरे वाली माता मंदिर: अष्टभुजा वाली मां काली की प्रतिमा है अद्भुत, सिंधिया घराने की हैं कुलदेवी

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  • The Idol Of Goddess Kali With Octagonal Shape Is Amazing, Kuldevi Belongs To The Scindia Family.

ग्वालियर19 मिनट पहले

मध्य प्रदेश के सबसे प्रसिद्ध माता मंदिरों में एक है ग्वालियर का मांढरे वाली माता का मंदिर। इस मंदिर की स्थापत्य कला तो अद्वितीय है ही लेकिन अष्टभुजा वाली मां काली की प्रतिमा सबसे दिव्य और अद्भुत है। कहा जाता है कि महिषासुर मर्दिनी माता महाकाली की कृपा के कारण ही सिंधिया राजवंश का आज तक पतन नहीं हुआ, जबकि भारत के ज्यादातर राज्य रजवाड़े विलुप्त हो चुके हैं।

ग्वालियर शहर के कैंसर पहाड़ी पर स्थित यह मांढरे वाली माता का मंदिर 148 साल पुराना है। मंदिर की स्थापना के पीछे भी रोचक कहानी है। सिंधिया रियासत के एक कर्नल को मां ने सपना दिया था। उसके बाद तत्कालीन महाराज ने यह मंदिर का निर्माण कराया था। सिंधिया महल में एक विशेष खिड़की है जहां से सीधे मां के दर्शन होते हैं। यह सिंधिया घराने की कुलदेवी हैं। इसलिए यहां नौ दिन विशेष श्रृंगार किया जाता है। लगभग डेढ़ सौं साल पुराने इस मंदिर में पूजा अर्चना का विशेष महत्व भी होता है।

मांढरे वाली माता मंदिर , नौ दिन बदलेंगी नौ स्वरूप

मांढरे वाली माता मंदिर , नौ दिन बदलेंगी नौ स्वरूप

148 साल पहले हुई मंदिर की स्थापना

ग्वालियर के कैंसर पहाड़िया रोड पर स्थित 148 साल पुराने इस मंदिर की स्थापना सिंधिया राजवंश के कर्नल रहे आनंद राव मांढरे ने की थी। आनंद राव मांढरे महाराष्ट्र के सतारा के बायपास रोड पर स्थित प्राचीन मांढरे वाली माता के परम भक्त थे। जब सिंधिया रियासत में वे यहां पदाधिकारी बनकर ग्वालियर आए तो अपने साथ माता को भी यहां लेकर आए थे। मांढरे वाली माता की मान्यता है कि एक दिन आनंद राव को माता ने सपने में दर्शन दिए और किसी अच्छे स्थान पर प्राण प्रतिष्ठा कराने के लिए मांढरे से कहा, इस पर उन्होंने तत्कालीन महाराजा को सपने में माता के आदेश के बारे में बताया। महाराजा सिंधिया के प्रयासों से कैंसर पहाड़िया पर इस मंदिर की स्थापना की गई।

महल से भी होते हैं सीधे दर्शन

इस मंदिर की खास बात यह है कि यह सिंधिया राजवंश के महल जयविलास पैलेस से 1 किलोमीटर दूर होने के बावजूद महल की एक विशेष खिड़की से माता के दर्शन सिंधिया राजपरिवार के सदस्यों को होते थे। इस प्राचीन मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मुराद मांगने पर वह जरूर पूरी होती है। यहां बड़ी संख्या में महिला पुरुष और बच्चे आते हैं।

दशहरे पर होता है शमी पूजन
दशहरे पर होता है शमी का पूजन मंदिर के व्यवस्थापक मांढरे परिवार के अनुसार इस मंदिर पर लगे शमी के वृक्ष का प्राचीन काल से सिंधिया राजवंश दशहरे के दिन पूजन किया करता है। आज भी पारंपरिक परिधान धारण कर सिंधिया राजवंश के प्रतिनिधि ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने बेटे तथा व सरदारों के साथ यहां दशहरे पर मत्था टेकने और शमी का पूजन करने आते हैं।

मंदिर आए भक्तों का कहना

मांढरे वाली माता के दर्शन करने आई नेहा श्रीवास्तव मैं आज मांढरे की माता के मंदिर आई हूं मांढरे की माता का नाम बहुत है। माता से जो भी मन्नत मांगों को पूरी हो जाती है। मैं ग्वालियर की रहने वाली हूं शादी होने के बाद बाहर चली गई लेकिन मेरा जब भी ग्वालियर आना होता है तो में मांढरे की माता के दर्शन करने जरूर मंदिर आती हूं। सिंधिया रियासत में यह मंदिर बनवाया था।

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