Chhattisgarh

सीमा तिवारी के नेतृत्व में गोवर्द्धमठ में जांजगीर चाम्पा संगठन द्वारा किया जायेगा सेवा प्रकल्प

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

जगन्नाथपुरी – ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्द्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर अनन्तश्री विभूषित श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वतीजी महाराज गुरुपूर्णिमा के पश्चात श्रीगोवर्द्धनमठ पुरी ओड़िशा में चातुर्मास्य करते हैं। जिसमें प्रात: , सायं एवं रात्रिकालीन सत्रों में आध्यात्मिक ग्रंथों का अध्यापन कार्य करते हैं , जहां पर उपस्थित भक्तों को भी आध्यात्मिक श्रवण करने का सौभाग्य सुलभ रहता है तथा भारतवर्ष के विभिन्न राज्यों के संगठन के सदस्य मठ में विभिन्न सेवा प्रकल्प संपादित करते हैं।

इस अवसर पर कोलकता से श्रीराम संगीत समिति के लगभग 100 सदस्यीय दल द्वारा सामूहिक हनुमान चालीसा ,भजन कीर्तन करने की परम्परा रही है। छत्तीसगढ़ के संगठन द्वारा भी इस परिपाटी का पालन किया जाता रहा है। इस वर्ष भी रथयात्रा के समय धमतरी इकाई द्वारा , गुरुपूर्णिमा के अवसर पर कवर्धा एवं रायपुर इकाई द्वारा , चातुर्मास्य के मध्य बिलासपुर – भाटापारा एवं कोरबा इकाई द्वारा मठ पहुंचकर पूज्य गुरुदेव का दर्शन के साथ साथ विभिन्न सेवा प्रकल्प आयोजित किया गया।

इसी तारतम्य में आनन्दवाहिनी प्रदेश प्रमुख एवं राष्ट्रीय संयोजिका श्रीमती सीमा तिवारी के निर्देशन में अफरीद (चाम्पा) के पीठपरिषद , आदित्यवाहिनी – आनन्दवाहिनी के 34 सदस्यीय टीम 02 सितम्बर को सायं पुरी के लिये रवाना होंगे तथा 03 सितम्बर से 05 सितम्बर तक श्रीगोवर्द्धनमठ में श्री शंकराचार्य भगवानश्री का दर्शन एवं मठ तथा गोशाला में सेवाकार्य तथा प्रात: प्रभात फेरी निकाली जायेगी। गौरतलब है कि अफरीद इकाई के संगठन के सदस्य कोरोना काल के पूर्व प्रति वर्ष गुरुपूर्णिमा के अवसर पर सेवाकार्य , प्रभात फेरी करते रहे हैं तथा विभिन्न साधना शिविर ( अमरकंटक , रतनपुर , वाराणसी हरिद्वार आदि) , कुंभ महोत्सव ( हरिद्वार , उज्जैन , प्रयागराज) तथा माघ मेला प्रयागराज में भी उपस्थित रहकर भजन कीर्तन , व्यवस्था कार्य में सहयोग करते रहे हैं।

वर्तमान समय में पूज्य शंकराचार्यजी महाराज ही विश्व में एकमात्र विभूति हैं जो कि सम्पूर्ण मानवता की रक्षा के लिये हमारी शास्त्रोक्त नीति युक्त सिद्धान्तों का वर्तमान परिवेश में प्रासंगिकता के कारण परिपालन की आवश्यकता प्रतिपादित करते हैं। महाराजश्री सफलता के चार सूत्र बताते हैं कि पहला नीयत शुद्ध हो , दूसरा नीयत को क्रियान्वित करने के लिये नीति शुद्ध हो , तीसरा नीति को क्रियान्वित करने के लिये विधा व्यवस्थित हो और चौथा उस विधा को व्यवहारिक मूर्तरूप देने वाले सब सूझबूझ सम्पन्न सक्रिय हों तो शत प्रतिशत सफलता मिलती है। असफलता का कोई प्रश्न ही नही हैं ; प्रारब्ध प्रतिकूल हो तब भी इतिहास तो बनता ही है। इसी तरह से शंकराचार्यजी सनातन जीवन पद्धति की विशेषता की चर्चा करते हुये उद्घृत करते हैं कि यहां स्वतंत्र कोई चेष्टा नहीं है , भगवत् निमित्त ही सारी चेष्टा है , ये सनातन धर्म की विशेषता है। हम स्नान करते हैं तो देवी – देवता को स्नान कराने की पात्रता समर्थित करने की भावना से , हमारे यहां भोजन बनता है तो देवी – देवता को भोग लगाने की भावना से , हम भोजन करते हैं तो देवी – देवता को भोग लगाकर के , हम शयन करते हैं कि तो देवी – देवता को योगनिद्रा का लाभ कराकर , हम जागते हैं तो देवी – देवता को योगनिद्रा से उठाने की भावना से , कोई पृथक चेष्टा नहीं है।

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