सिंधिया ने 200 साल पुरानी परंपरा के साथ मनाया दशहरा: केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य के शमी वृक्ष पर तलवार लगाते ही सरदारों ने लूटी पत्तियां

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ग्वालियर34 मिनट पहले

ग्वालियर में बुधवार को विजयादशमी पर केन्द्रीय मंत्री व सिंधिया घराने के मुखिया ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी 200 से ज्यादा साल पुरानी परपंरा व राजशाही ठाट के साथ दशहरा पूजन किया। पारंपरिक राजसी पोशाक में ज्योतिरादित्य सिंधिया, उनके पुत्र महाआर्यमन सिंधिया ने दशहरा पूजन किया। मांढरे की माता मंदिर के सामने मैदान में शमी वृक्ष के पास बैठकर सिंधिया परिवार के राज पुरोहित ने विधि-विधान के साथ पहले पूजन कराया।

इसके बाद सिंधिया ने शमी के वृक्ष पर तलवार चलाकर उसकी प्रतीकात्मक सोना पत्तियां गिराईं। वहां मौजूद सिंधिया परिवार के करीबी सरदारों और उनके वंशज ने यह पत्तियां लूटीं। इससे पहले सुबह सिंधिया, आर्यमन के साथ गोरखी स्थित देवघर पहुंचे। यहां उन्होंने राजसी चिन्हों का पूजन किया। हर वर्ष सिंधिया घराने के मुखिया यहां आकर पूजा करते हैं। इस मौके पर सिंधिया ने सभी शहरवासियों को दशहरा की शुभकामनाएं।

पारंपरिक परिधान में 200 साल पुरानी परंपरा के अनुसार शमी पूजन करते सिंधिया।

पारंपरिक परिधान में 200 साल पुरानी परंपरा के अनुसार शमी पूजन करते सिंधिया।

ग्वालियर में दशहरा के मौके पर वैसे तो हर घर में पूजन होता है, लेकिन सिंधिया घराने के 200 साल पुरानी परंपरागत पूजन और शमी वृक्ष की पत्तियों को लूटना अपने आप में रोचक रहता है। दशहरा के मौके पर बुधवार दोपहर 12:00 बजे केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, उनके सुपुत्र महाआर्यमन के साथ राजसी पोशाक पहनकर गोरखी देवघर पहुंचे। यहां उन्होंने राजसी पद चिन्हों का पूजन किया। इसके बाद वह शाम 6:15 बजे को मांढरे की माता मंदिर पहुंचे और यहां सामने मैदान पर शमी पूजन किया। यहां उन्होंने सिंधिया घराने की करीब 200 साल पुरानी परंपरा के आधार पर पूजन किया। इसके बाद शमी के वृक्ष की पूजा करने के बाद तलवार चलाई, जिससे सोना पत्ती उड़कर जमीन पर गिरीं, जिनको सालों साल पुरानी परंपरा के अनुसार सिंधिया घराने के सरदारों ने लूटा। माना जाता है कि यह पत्तियां बहुत शुभ होती हैं, जो इनको लूटता है उसके घर धन दौलत की कभी कोई कमी नहीं होती है। शमी का वृक्ष भी खुशहाली का प्रतीक माना जाता है।

क्यों की जाती है शमी के वृक्ष की पूजा
क्या आप जानतें है कि विजयादशमी के दिन शमी के वृक्ष के पूजन का विशेष महत्व है। क्षत्रिय समाज में भी इसके पूजन की विशेष मान्यता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार महाभारत युद्ध से पहले अपने अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने इसी वृक्ष के ऊपर अपने हथियार छुपाए थे। उसके बाद उन्होंने युद्ध में कौरवों पर विजय प्राप्त की। इस पेड़ के पत्तों को सोना पत्ती कहा जाता है। यही कारण है कि दशहरा पर हथियारों का पूजन कर इस वृक्ष की पत्तियां लूटने का चलन हैं। इस कारण घर या समाज का मुखिया पूजन के बाद इसकी पत्तियों को बांटते हैं। मान्यता है कि विजयादशमी के दिन शमी वृक्ष का पूजन करने से धन, वैभव, सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसीलिए राजा-महाराजा भी राज्य और प्रजा की खुशहाली की कामना को लेकर पूजन करते थे।

200 साल पुरानी है परंपरा
200 साल से सिंधिया घराने के मुखिया हर दशहरा पर शमी पेड़ की विशेष पूजा-अर्चना करता आ रहे हैं। यह पूजा राजवंश की धार्मिक मान्यताओं के अनुसार और रीति-रिवाजों के अनुसार राजवंश के पुरोहितों द्वारा कराई जाती है, इसके बाद सिंधिया घराने का प्रमुख तलवार से शमी पेड़ को छूता है, उसके बाद पूजा संपन्न होती है। जैसे ही सिंधिया तलवार से उस पेड़ को छूते हैं, वैसे ही वहां पर मौजूद लोग पेड़ से पत्तियों को लेने के लिए दौड़ते हैं, इस दौरान सुखमय जीवन और सुख समृद्धि की कामना की जाती है।

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