राष्ट्रपति से सम्मानित बुरहानपुर की हकीकत: 2 किमी दूर से लोग लाते हैं पानी, ‘हर घर में नल कनेक्शन’ वाले देश के पहले जिले की कहानी

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42 मिनट पहले

बुरहानपुर जिला मुख्यालय से 40 किमी दूर बालन्द्रा गांव। बीच गांव में बने हौज से महिलाएं पानी भरती हुई मिलीं। गांव में टंकी और हर घर में नल कनेक्शन होने के बावजूद ये दृश्य चौंकाने वाला था। कारण पूछने पर महिलाओं ने बताया कि घर तक पानी ही नहीं पहुंचता। 10 से 15 मिनट के लिए सप्लाई मिलती है, तब तक तो बर्तन भी नहीं धुल पाते हैं। इसी तरह की समस्या कई दूसरे गांवों में भी दिखी।

ये चर्चा इस कारण कि बुरहानपुर जिला हर घर में नल कनेक्शन पहुंचाने वाला देश का पहला जिला घोषित हुआ है। 2 अक्टूबर को कलेक्टर प्रवीण सिंह राष्ट्रपति के हाथों अवॉर्ड भी ले चुके हैं। इसी दावे की पड़ताल करने दैनिक भास्कर टीम ग्राउंड जीरो पर पहुंची। हमने पांच गांवों में पहुंचकर हकीकत जानी। तीन गांवों में जहां घरों तक कनेक्शन तो पहुंचे हैं, लेकिन अलग-अलग कारणों से लोगों को पानी नहीं मिल पा रहा है। वहीं दो गांवों में तकनीकी कारणों से कनेक्शन ही नहीं पहुंच पाया। यहां लोग अब भी कुएं से पानी भरने को मजबूर हैं।

  • पहला बालन्द्रा गांव यहां ओवरहेड टंकी बनी है और घरों तक पाइप लाइन भी बिछी है, लेकिन प्रेशर न होने से सभी घरों तक पानी नहीं पहुंच पाता।
  • दूसरा हसनपुरा गांव है। यहां टंकी बनी है, घरों तक कनेक्शन भी हैं, लेकिन वाटरमैन को 8 महीने से वेतन नहीं मिला, तो उसने टंकी भरना बंद कर दिया है।
  • तीसरा पुरा गांव है। यहां सब्मर्सिबल पंप से सप्लाई होती है। तीन दिन से पाइप टूटा हुआ है। सभी घरों तक पानी नहीं पहुंचता है। टूटी लाइन की वजह से गंदा पानी आता है।
  • चौथा रामदा गांव है। ये 17 घरों का मजरा है। तकनीकी रूप से ये जेजेएम योजना में शामिल नहीं हो पाया। यहां के लोग कुएं से पानी भरने को मजबूर हैं।
  • पांचवां कोटराखेड़ा बोलदर गांव है। ये डूब क्षेत्र को विस्थापित कर बसा है। जंगल क्षेत्र होने के चलते इसे भी योजना में शामिल नहीं किया गया।
2 अक्टूबर को बुरहानपुर के कलेक्टर प्रवीण सिंह ने राष्ट्रपति अवॉर्ड लिया था। उनके साथ पीएचई विभाग के अतिरिक्त प्रमुख सचिव मलय श्रीवास्तव भी थे। यह पुरस्कार बुरहानपुर जिले के हर घर में रिकॉर्ड समय में नल कनेक्शन पहुंचाने के लिए दिया गया था।

2 अक्टूबर को बुरहानपुर के कलेक्टर प्रवीण सिंह ने राष्ट्रपति अवॉर्ड लिया था। उनके साथ पीएचई विभाग के अतिरिक्त प्रमुख सचिव मलय श्रीवास्तव भी थे। यह पुरस्कार बुरहानपुर जिले के हर घर में रिकॉर्ड समय में नल कनेक्शन पहुंचाने के लिए दिया गया था।

बुरहानपुर जिले में 167 ग्राम पंचायत (254 गांव) हैं। 2019 में जिले में जब जल जीवन मिशन के तहत हर घर में पानी पहुंचाने की योजना पर काम शुरू हुआ। उस समय 35 हजार घरों में ही पानी की सप्लाई थी। जिला कलेक्टर प्रवीण सिंह का दावा है कि मार्च 2022 तक जिले में एक लाख 1 हजार 905 घरों को नल कनेक्शन से जोड़ा जा चुका है।

इस गांव में सबसे अंतिम छोर वाले नल में पानी नहीं आता, क्योंकि वहां तक प्रेशर ही नहीं पहुंचता। यही कारण है कि यहां नल कनेक्शन का होना न होना एक बात है।

इस गांव में सबसे अंतिम छोर वाले नल में पानी नहीं आता, क्योंकि वहां तक प्रेशर ही नहीं पहुंचता। यही कारण है कि यहां नल कनेक्शन का होना न होना एक बात है।

पाइनलाइन तो बिछ गई बस प्रेशर नहीं आता
बुरहानपुर जिला मुख्यालय से 40 किमी दूर बालन्द्रा गांव की अलग कहानी है। यहां नल के लिए पाइप लाइन तो बिछी है, लेकिन प्रेशर इतना है ही नहीं कि पानी घर-घर तक पहुंच सके। जब हमारी टीम नल जल योजना की हकीकत जानने गांव पहुंची तो कुछ महिलाएं मवेशियों के लिए बने हौज के पास पानी भरती हुई मिलीं। गांव में पानी की टंकी बनी है और घर-घर पाइपलाइन भी बिछी दिखी। महिलाओं से हौज से पानी भरने की वजह पूछी तो फुलई बाई ने बताया कि दो दिन से बिजली की खराबी के चलते परेशानी है।

गांव के जालम ने बताया कि 10 मिनट ही पानी की सप्लाई होती है। महिलाएं तीन गुंडी (पानी के बर्तन) लेकर बैठती हैं। जब तक एक भरता सप्लाई बंद हो जाती है। 400 घरों वाले इस गांव में सभी खेती-किसानी से जुड़े परिवार रहते हैं। वाटरमैन नानक राम दुबे ने बताया कि गांव के हर गली में एक वॉल्व से 15 से 20 लोगों के कनेक्शन जुड़े हैं। इस कारण कुछ लोगों के घरों तक प्रेशर के साथ सप्लाई नहीं हो पाती है। पूरे गांव में सप्लाई देना होता है, इस कारण एक गली में 15 मिनट ही सप्लाई दे पाते हैं, जबकि गांव वाले कहते हैं कि पानी 10 मिनट ही आता है।

ये वो गांव है जहां 8 महीने पहले टंकी बनी और पाइपलाइन भी बिछी, लेकिन यहां टंकी में पानी चढ़ाने वाले वाटरमैन को पगार नहीं मिलती। इस कारण उसने पानी चढ़ाना ही बंद कर दिया।

ये वो गांव है जहां 8 महीने पहले टंकी बनी और पाइपलाइन भी बिछी, लेकिन यहां टंकी में पानी चढ़ाने वाले वाटरमैन को पगार नहीं मिलती। इस कारण उसने पानी चढ़ाना ही बंद कर दिया।

कोई पानी चढ़ाने वाला ही नहीं है, 8 महीने से पगार नहीं मिली
इसके बाद हमारी टीम बुरहानपुर से महज 25 किमी दूर हसनपुरा ग्राम पंचायत पहुंची। जोरदार बारिश तो हो रही थी, इसके कारण बिजली भी गुल थी। गांव में 8 महीने पहले टंकी बनने के साथ पाइपलाइन बिछी है। यहां हमारी मुलाकात किराने के साथ आटा चक्की चलाने वाले जग्गू से हुई। पानी सप्लाई के सवाल पर बोले कि 15 दिन से टंकी नहीं भरी जा रही है।

वाटरमैन को 8 महीने से पगार ही नहीं मिली। गुस्से में उसने पंप चलाना बंद कर दिया। सरपंच के पास पगार मांगने गया तो उससे कहा गया कि हर घर से जलशुल्क के तौर पर 30 रुपए वसूल कर वेतन ले लो। गांव में हैंडपंप चालू हालत में है, तो काम चल रहा है। गर्मी में तो ये भी सूख जाता है। तब वनचौकी के ट्यूबेल से पानी लाना पड़ता है।

पुरा गांव के सरस्वती विद्या मंदिर में छठवीं में पढ़ रही शीतल और उसकी छोटी बहन शिवानी मिली। हाथों में पानी भरने के बर्तन थे। सवाल करने पर बोली कि तीन दिन से पाइप लाइन टूट हुई है। पानी नहीं आ रहा है, इस कारण हैंडपंप से पानी भरने आई हूं। गर्मी में तो ये भी नहीं चलता।

पुरा गांव के सरस्वती विद्या मंदिर में छठवीं में पढ़ रही शीतल और उसकी छोटी बहन शिवानी मिली। हाथों में पानी भरने के बर्तन थे। सवाल करने पर बोली कि तीन दिन से पाइप लाइन टूट हुई है। पानी नहीं आ रहा है, इस कारण हैंडपंप से पानी भरने आई हूं। गर्मी में तो ये भी नहीं चलता।

पुरा गांव में लाइन है, लेकिन पानी गंदा आता है
बुरहानपुर से 40 किमी दूर पुरा गांव में नल है और उसमें जल भी है, लेकिन जो सप्लाई होती है वह गंदी है। इसका नतीजा यह हुआ लोग बीमार होने लगे। यहां पीएम आवास योजना के तहत बन रहे निर्माणाधीन मकान भी दिखे। सभी के घर तक पाइपलाइन बिछी मिली। टोटी वाले नल भी लगे हैं, हालांकि टोंटी गायब मिली। गांव के आखिरी छोर पर रहने वाली कलाबाई ने बताया कि बारिश में हमारे परिवार के बच्चे सहित सारे लोग बीमार हो गए थे। डॉक्टर को दिखाया तो बोले कि साफ पानी नहीं पीने से समस्या है।

गांव में 50 के लगभग बच्चे बीमार हुए थे। डॉक्टरों ने इसकी वजह खराब पानी बताई थी। इसका कारण है कि गांव में पानी सप्लाई वाली टंकी दूसरे गांव में बनी है। हमारे यहां कुएं नुमा बनाई गई टंकी में पानी आता है। इसके बाद दूसरा पंप लगाते हैं, जिससे हमारे घरों में पानी पहुंचता है। बारिश के दिनों में हमारे गांव में बनी कुएं-नुमा टंकी में खेतों का गंदा पानी जाता है और यही सप्लाई भी होता है। इससे लोग बीमार हो रहे हैं। खबर लिखे जाने तक पानी की सप्लाई तीन दिन से बंद है, क्योंकि बीच में पाइप फट गया है।

नानकी बाई और रिगलीबाई जिस कुएं से पानी भरती है वो भी बहुत साफ नहीं है, लेकिन मजबूरी है। दरअसल, एक किलाेमीटर तक और कोई जलस्रोत नहीं है। इस जलस्रोत को आप वीडियो में देख सकते हैं।

नानकी बाई और रिगलीबाई जिस कुएं से पानी भरती है वो भी बहुत साफ नहीं है, लेकिन मजबूरी है। दरअसल, एक किलाेमीटर तक और कोई जलस्रोत नहीं है। इस जलस्रोत को आप वीडियो में देख सकते हैं।

एक किमी दूर कुएं से लाते हैं पानी, रोज लगते हैं तीन चक्कर
इसके बाद हम जिला मुख्यालय से 45 किमी दूर रामदा गांव पहुंचे। जैसे ही हमारी टीम ने गांव में एंट्री की सामने से गांव की नानकी बाई अपनी 60 साल की दादी रिगलीबाई के साथ एक किमी दूर कुएं से पानी लाते हुए मिलीं। हमने सवाल दागा कि अम्मा आपके घर में नल नहीं है, तो नाराज होकर बोलीं टंकी ही नहीं तो नल कहां से आएगा। ये कुआं न हो तो हमारा गला भी तर न हो। हम रोज इसी तरह पानी की पूर्ति के लिए दो से तीन बार यहां कुएं से पानी भरकर ले जाते हैं। इसका मतलब है कि इन्हें रोज पानी के लिए कम से कम 6 किलोमीटर चलना होता है। 17 घरों वाले इस टोले में सभी का यही दर्द है। तकनीकी रूप से ये गांव जेजेएम योजना में शामिल नहीं हो पाया।

लोगों को भरपूर पानी मिले इसलिए इस गांव ने डूब की त्रासदी झेली थी, लेकिन दुर्भाग्य है कि पुनर्वास के बाद यह गांव आज भी जलसंकट झेल रहा है।

लोगों को भरपूर पानी मिले इसलिए इस गांव ने डूब की त्रासदी झेली थी, लेकिन दुर्भाग्य है कि पुनर्वास के बाद यह गांव आज भी जलसंकट झेल रहा है।

40 साल पहले पानी के कारण विस्थापित हुए, अब भी पानी ही समस्या
कोटराखेड़ा बोलदर गांव को लोग विस्थापितों का गांव भी कहते हैं। कोटराखेड़ा गांव 45 साल पहले विस्थापित हुआ था। गांव अब सुक्ता डैम में डूब चुका है। यहां के लोगों को बोलदर में बसाया गया। तभी से इस गांव का नाम कोटराखेड़ा बोलदर गांव पड़ गया। यहां पहुंचे तो बीच गांव एक बुजुर्ग टंकी से पानी भरते हुए मिले। यहीं पर हमारी मुलाकात मीना बाई से हुई। जब उनसे पूछा कि कलेक्टर कह रहे हैं कि आप के घर तक नल की लाइन बिछा दी है तो आप यहां पानी भरने क्यों आई हैं। मीना बाई ने बताया कि मेरे नहीं पूरे गांव में कोई पाइप लाइन नहीं है। पंचायत वालों ने ये टंकी लगवाई गई है।

800 मीटर दूर कुएं में पंप डालकर इस टंकी को भरते हैं। फिर इसी टंकी से गांव के लोग पानी भरते हैं। कुएं तक बांस गाड़ कर बिजली के तार पंप चलाने के लिए ले गए हैं। गर्मी में ये कुआं सूख जाता है, तो खेतों में बने कुएं से पानी बैलगाड़ी से लाते हैं। इसी गांव की मांगली बाई ने बताया कि 45 साल पहले कोटराखेड़ा गांव डैम में डूब गया था। वहां से उजड़े, तो आज तक पानी का संकट खत्म नहीं हुआ। पंचायत वालों ने एक अस्थाई व्यवस्था बनाई है। गांव के रामलाल मोरे ने बताया कि कई बार अधिकारियों के यहां आवेदन दिया। तब जाकर एक बार अधिकारी सर्वे करने आया था। तीन महीने पहले ग्राम सचिव फोटो भी ली थी, लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ।

नियमों के चक्रव्यूह में फंसी एक लाख की आबादी
मौजूदा समय में 8.86 लाख की आबादी वाले बुरहानपुर जिले में एक लाख आबादी अब भी खुद से पानी के इंतजाम करता है। जेजेएम (जल जीवन मिशन) योजना में जंगल में बसे अनधिकृत टोलों और 20 घरों से कम टोलों को शामिल नहीं किया गया है। बुरहानपुर में 50 से अधिक ऐसे टोलें हैं, जहां 20 से कम घर हैं। वहीं 45 से अधिक ऐसे मजरें हैं, जाे जंगल काटकर बस गए हैं। कलेक्टर के मुताबिक जिले में कई टोले मजरें तीन घरों से 20 घरों वाले हैं। यहां पानी पहुंचाने की लागत अधिक आएगी। इस कारण योजना में ऐसे टोले-मजराें को शामिल नहीं किया गया है। जंगल काटकर बस गए टोले तक पानी पहुंचाने के लिए वन विभाग ही अनुमति नहीं देगा।

कलेक्टर का दावा-हमने हर घर को नल कनेक्शन से जोड़ा
बुरहानपुर जिले में 254 गांव हैं। जिला कलेक्टर प्रवीण सिंह का दावा है कि मार्च 2022 तक हर घर को नल कनेक्शन से जोड़ा जा चुका है। पंप की मरम्मत और वाटरमैन के वेतन के लिए जल शुल्क वसूलने के लिए महिलाओं की समिति बनाई गई है। पाइप फटने या दूसरे फाल्ट के चलते हो सकता है कि कुछ जगह पानी पहुंचने में परेशानी मिली हो, लेकिन इस तरह की समस्या तो शहरों में भी आती है। जेजेएम योजना के नियमों के तहत आने वाले सभी गांवों में पेयजल के लिए नल कनेक्शन दिया जा चुका है।

मार्च 2020 में कोविड आने पर हमने इसे दो महीने में ही समेट लिया था। तभी तय कर लिया था कि एमपी में नंबर वन आना है। एल-1 बीडर आ चुका था। उससे संपर्क कर अपने तय कर लिया कि वर्कऑर्डर व एग्रीमेंट तो आप से ही होना है। ऐसे में मटेरियल डिस्पैच करो। सूरत, गुजरात, उदयपुर, जयपुर जहां मटेरियल तैयार हो रहा था, वहां सी-पेड से बोलकर समय पर जांच कराई। इससे हमें समय पर पाइप और पंप मिल गए। फॉरेस्ट, एमपीईबी से समन्वय बनाकर तीन महीने के कामों को 15 दिन में कराया। इसका नतीजा ये रहा कि हम 6 महीने में ही कई जगह पानी देने की स्थिति में पहुंच गए थे।

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