सागर में कंधों पर बैठाकर दी मां दुर्गा को विदाई: चल माई, चल माई के जयघोषों से गूंजा शहर, बारिश के बीच निकलीं कांधे वाली काली

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सागरएक घंटा पहले

माता की एक झलक देखने कटरा बाजार में उमड़ा भक्तों का सैलाब।

सागर में बुधवार को दुर्गा विसर्जन चल समारोह निकाला गया। देर शाम से शुरू हुआ विसर्जन चल समारोह देर रात तक चला। इस दौरान माता के जयकारे गूंजते रहे। तीन बत्ती से राधा टॉकीज तक का इलाका लोगों से खचाखच भरा रहा। मां दुर्गा की झांकियां निकल रही थी। आकर्षक साज-सज्जा। आस्था का सैलाब उमड़ा हुआ था। सड़क के दोनों ओर किनारों पर हजारों की संख्या में लोग बैठे हुए थे। सभी आस्था से सराबोर थे। शहर की सबसे प्रसिद्ध पुरव्याऊ की कांधे वाली काली का चल समारोह शुरू हुआ। पुरव्याऊ से माता को कंधों पर बैठाकर भक्त विसर्जन के लिए लेकर निकले। इसके बाद हर ओर चल माई-चल माई के जयघोष ही सुनाई दिए। लोगों ने पुष्पवर्षा कर मां को विदाई दी। आगे मशाल चल रही थी। सैकड़ों की संख्या में युवा सड़क पर दौड़ लगा रहे थे। वहीं पीछे श्रद्धालुओं के कंधों पर सवार मां दुर्गा की प्रतिमा चल रही थी। इस दृश्य को निहारने के लिए चल समारोह मार्ग पर हजारों लोग पहुंचे।

प्रसिद्ध कांधे वाली काली।

प्रसिद्ध कांधे वाली काली।

माता का दिव्य और अलौकिक दृश्य हर कोई अपने कैमरे में कैद करने में जुटा था। रात करीब 3 बजे माता का विसर्जन चकराघाट पर किया गया। शहर की प्रसिद्ध पुरव्याऊ की कांधे वाली काली का एक सदी से भी ज्यादा का गरिमामय इतिहास है। पहली बार वर्ष 1905 में मां की स्थापना हुई थी। तभी से मां महसासुर मर्दनी के वैभव और स्वरूप में कहीं कोई परिवर्तन नहीं आया। इसके बाद से लगातार माता की स्थापना की जा रही है और पुरानी परंपराओं को निभाते हुए त्योहार मनाया जाता है। 118 वर्षों से माता की स्थापना की जा रही है।

अखाड़ों में प्रस्तुति देते हुए कलाकार।

अखाड़ों में प्रस्तुति देते हुए कलाकार।

कटरा बाजार में माता की झलक देखने उमड़े भक्त
कांधे वाली काली के दर्शन करने के लिए कटरा बाजार में पूरी रात भक्त जमे रहे। जैसे ही कोतवाली से कटरा की ओर मशाल नजर आई तो चल माई, चल माई के जयकारें गूंजने लगे। हर कोई माता की एक झलक देखने के लिए आतुर था। जैसे ही माता तीनबत्ती चौराहे पर पहुंचे तो माहौल भक्तिमय हो गया। हर तरफ माता के जयकारे गूंज रहे थे।

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