श्रीमद्भागवत कथा में वक्ता और श्रोता दोनों की अटूट श्रद्धा आवश्यक – आचार्य झम्मन शास्त्री

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
रायपुर – अग्रोहा कालोनी , विप्र नगर विष्णु मंगलम भवन में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा ज्ञानयज्ञ सप्ताह के अंतर्गत आचार्य पंडित झम्मन शास्त्री महाराज ने कहा कि मानव जीवन बड़ा ही दुर्लभ जीवन है। यह बड़े सौभाग्य से प्राप्त होता है तथा मनुष्य जीवन में ही परमात्म तत्व की प्राप्ति सुलभ हो सकती है। भागवत कथा का आनंद भी इस मनुष्य जीवन में ही जीव को प्राप्त होता है। अन्य योनियों में नहीं क्योंकि मनुष्य भजन , दान , पूजन , जप , तप इत्यादि करने में सक्षम है। इस मृत्यु लोक में सांसारिक सुख साधनों का भोग करता हुआ सेवा , दान , भजन द्वारा परलोक में काम आने वाला पुण्य भी कमा लेता है। जिन पुण्य के द्वारा परलोक से सुख भोगते हुये परमात्मा की प्राप्ति कर लेता है।
जरूरी नहीं है जो कुछ मनुष्य ने संग्रह किया वह भोग स्वरूप प्राप्त हो क्योंकि वह कभी भी मृत्यु का ग्रास बन सकता है। इसलिये मनुष्य को सेवाधर्म , दान ,भजन के द्वारा अपने जीवन को सार्थक कर लेना चाहिये। क्योंकि यह जीवन बड़ा ही अनमोल है। वैसे ही गज , ग्राह , गणिका भी श्रीहरि के नाम के प्रभाव से मुक्ति को प्राप्त किये। आज राम नाम नरसिंह भगवान है , कलयुग हिरण्यकश्यप के समान है और जप करने वाला मनुष्य प्रहलाद के समान है। कलयुग में दान की विशेष महत्व बताते हुये महाराजश्री ने राजा बली की दानवीरता का वर्णन किया , प्रहलाद के पौत्र महाराज बलि ने भगवान श्रीवामन को अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया। समग्र समर्पण करने वाले के यहां स्वयं भगवान ही उनके रक्षक बनकर रहते हैं। सुतल लोक में आज भी भगवान उनके द्वारपाल है। जहां स्वयं माता लक्ष्मी भी मनुष्य वंश में बली को भाई के रूप में सूत्र बांधकर दक्षिणा के रूप में अपने पति भगवान श्री नारायण को मांगने गई थी । जीवन में उपासना करने वालों को मां लक्ष्मी के साथ साथ भगवान श्री नारायण की उपासना करनी चाहिये। हमारे यहां एक – एक अवतार के एक – एक पुराण की रचना हुई है। इस कथा का विस्तार वामन पुराण में तथा मत्स्य पुराण में है। आचार्यश्री कथा भाग के चतुर्थ दिवस में समुद्र मंथन एवं वामन अवतार की कथा सुनाये , उन्होंने बताया कि भागवत कथा आयोजन कोई मनोरंजन की वस्तु नहीं है , बल्कि यह मोक्ष और ईश्वर प्राप्ति का साधन है। लेकिन आजकल के कथाकार व्यास पीठ की मर्यादायें लांघ रहे हैं। श्रीमद्भागवत जैसे पुण्य ग्रंथ को मनोरंजन का साधन बनाकर नाच गाना कर रहे हैं , इसके लिये श्रद्धालु दोषी नहीं है। व्यास पीठ के महत्व नहीं समझना और अल्पज्ञ कथाकार ही इसके लिये दोषी हैं। भागवत श्रद्धा का विषय है , इसे शुद्ध हृदय से सांसारिक बंधनों को छोड़कर सुनना चाहिये।
उन्होंने आगे कहा कि श्रीमद्भागवत कथा को सुनने और सुनाने वाले दोनों को इसके प्रति अटूट आस्था और प्रेम होना चाहिये , तभी आयोजन की सार्थकता है। व्यासजी ने कहा कि हमें प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करने की आवश्यकता है एवं सप्ताह में एक दिन सामूहिक रूप से हनुमान चालीसा का पाठ हो। कथा के चतुर्थ दिन समुद्र मंथन और वामन अवतार के दौरान वामन भगवान के दिव्य झांकी निकाली गई। इस अवसर पर समस्त श्रद्धालु भक्त वामन भगवान का दर्शन पूजन पश्चात महाआरती हुई।